पटना हाई कोर्ट ने मुखिया पद पर निर्वाचित उम्मीदवार की अयोग्यता के आदेश को रद्द किया, मामला पुनः सुनवाई के लिए भेजा

पटना हाई कोर्ट ने मुखिया पद पर निर्वाचित उम्मीदवार की अयोग्यता के आदेश को रद्द किया, मामला पुनः सुनवाई के लिए भेजा

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में पटना हाई कोर्ट ने बिहार राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा एक निर्वाचित मुखिया को अयोग्य घोषित करने के आदेश को रद्द कर दिया। आरोप था कि संबंधित महिला उम्मीदवार ने नामांकन दाखिल करते समय न्यूनतम उम्र यानी 21 वर्ष पूरी नहीं की थी, इसलिए उसे मुखिया पद के लिए अयोग्य ठहराया गया।

यह उम्मीदवार गया जिले के असलेमपुर ग्राम पंचायत की मुखिया पद के लिए सफल घोषित हुई थी। हारने वाले प्रत्याशियों में से एक ने शिकायत की कि वह 21 वर्ष से कम उम्र की थी और चुनाव लड़ने के अयोग्य थी। राज्य निर्वाचन आयोग ने इस शिकायत के आधार पर, बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा 136(2) के तहत उसे अयोग्य घोषित कर दिया और पद को रिक्त मान लिया।

याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी। एकल पीठ ने निर्वाचन आयोग के आदेश को सही ठहराया, जिसके खिलाफ यह लेटर्स पेटेंट अपील (LPA) दायर की गई।

मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव के बाद किसी उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है, खासकर जब यह विवाद तथ्यों पर आधारित हो—जैसे आयु संबंधी विवाद—जिसके लिए साक्ष्य और सुनवाई की आवश्यकता हो।

कोर्ट ने इस संबंध में पहले दिए गए पूर्णपीठ (Full Bench) के निर्णय का हवाला दिया। उस निर्णय में कहा गया कि आयोग को प्री और पोस्ट-इलेक्शन अयोग्यता पर विचार करने का अधिकार है, लेकिन जब मामला विवादित तथ्य और सबूत पर आधारित हो, तो आयोग को फैसला देने से पहले मामले को सक्षम अदालत या जांच प्राधिकरण के पास भेजना चाहिए।

इस केस में हाई कोर्ट ने यह पाया कि राज्य निर्वाचन आयुक्त ने स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, बल्कि जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया। यह प्रक्रिया विधिसम्मत नहीं मानी गई।

सुनवाई के दौरान सभी पक्षों ने इस बात पर सहमति जताई कि मामला पुनः आयोग को विचारार्थ भेजा जाए। हाई कोर्ट ने पहले दिया गया अयोग्यता आदेश रद्द कर दिया और आयोग को निर्देश दिया कि वह कानून के अनुरूप मामले का निपटारा करे। दोनों पक्षों को एक नियत तिथि पर आयोग के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश भी दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन आयोग जैसे वैधानिक निकायों को सीमित अधिकार के भीतर काम करना चाहिए और वे केवल उन्हीं मामलों पर निर्णय लें जहां तथ्य स्पष्ट और निर्विवाद हों। जहां कोई विवाद हो, वहां उचित सुनवाई और साक्ष्य के आधार पर ही निर्णय लिया जाना चाहिए।

यह पंचायत चुनाव लड़ने वाले नागरिकों के लिए यह संदेश देता है कि यदि आपके साथ अन्याय होता है तो कानून आपको न्याय दिला सकता है। सरकार और चुनाव आयोग को यह सीख मिलती है कि प्रक्रियात्मक न्याय का पालन करना अनिवार्य है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या चुनाव के बाद निर्वाचन आयोग उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है?
    • निर्णय: हां, लेकिन केवल उन्हीं मामलों में जहां तथ्य स्पष्ट हों और कानूनी रूप से निर्विवाद हों।
  • क्या आयोग ने बिना स्वतंत्र विचार के निर्णय लिया?
    • निर्णय: हां। आयोग ने जिलाधिकारी की रिपोर्ट पर आधारित निर्णय लिया, जो उचित नहीं था।
  • क्या मामला दोबारा विचार हेतु वापस भेजा जाना चाहिए?
    • निर्णय: हां। हाई कोर्ट ने मामला आयोग को लौटा दिया ताकि वह नए सिरे से सुनवाई करे।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • कोई विशेष निर्णय स्पष्ट रूप से दर्ज नहीं है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • पूर्णपीठ का निर्णय — धारा 136(2), बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की व्याख्या पर आधारित
  • बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 की धारा 476 और 479 का विश्लेषण

मामले का शीर्षक

Rajani Kumari v. The State Election Commission, Bihar & Ors.

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 566 of 2017
In CWJC No. 3265 of 2017

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 188

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे
  • माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री वाई.वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता एवं श्री अशोक कुमार — अपीलकर्ता की ओर से
  • श्री अमित श्रीवास्तव एवं श्री गिरीश पांडे — निर्वाचन आयोग की ओर से
  • श्री मृत्युंजय कुमार, एसी टू एएजी-8 — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM1NjYjMjAxNyMyI04=-njplvkiag–am1–M=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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