पटना हाई कोर्ट ने नौकरी से बर्खास्तगी का आदेश रद्द किया, नियम 76 का गलत प्रयोग बताया

पटना हाई कोर्ट ने नौकरी से बर्खास्तगी का आदेश रद्द किया, नियम 76 का गलत प्रयोग बताया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस फैसले में पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के प्रेस एंड फॉर्म्स, गया में कार्यरत एक कर्मचारी (याचिकाकर्ता) की सेवा से बर्खास्तगी को असंवैधानिक करार दिया। याचिकाकर्ता एक मज़दूर यूनियन के पदाधिकारी भी थे।

24 अगस्त 2013 को उन्हें कारण बताओ नोटिस (चार्ज मेमो) जारी किया गया, जिसमें तीन आरोप लगाए गए थे। पहले दो आरोपों में कहा गया कि वे 7 अप्रैल 2009 से लगातार अनुपस्थित थे। तीसरे आरोप में कहा गया कि उनकी गैरमौजूदगी के कारण सहकारी समिति में गड़बड़ी हुई। जांच के दौरान तीसरा आरोप साबित नहीं हुआ।

याचिकाकर्ता ने जांच में भाग लिया और बताया कि वह 31 मार्च 2010 से 23 जनवरी 2011 तक निलंबित थे। यह अवधि गैरहाज़िरी में नहीं गिनी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि यूनियन में सक्रियता के कारण उन्हें जान का खतरा था और उन्होंने ट्रांसफर की मांग की थी जो नामंजूर कर दी गई।

बावजूद इसके, विभागीय अनुशासनिक प्राधिकारी ने 23 जून 2014 को बिहार सेवा संहिता के नियम 76 के तहत उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया। इस नियम के तहत कोई कर्मचारी 5 साल या अधिक समय तक अनधिकृत रूप से अनुपस्थित रहे तो उसे बर्खास्त किया जा सकता है।

कोर्ट ने पाया कि चार्ज मेमो में केवल 7 अप्रैल 2009 से 24 अगस्त 2013 तक की अनुपस्थिति का उल्लेख है, जो 5 वर्षों से कम है। इसके अतिरिक्त, जांच में भाग लेने के कारण भी बाद की अवधि को अनुपस्थिति नहीं माना जा सकता।

कोर्ट ने M.V. Bijlani बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2006) के सुप्रीम कोर्ट फैसले का हवाला देते हुए कहा कि जिन आरोपों का उल्लेख ही नहीं किया गया, उनके आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती। इसलिए, बर्खास्तगी और अपील खारिज करने का आदेश रद्द कर दिया गया और मामले को पुनः विचार हेतु अनुशासनिक प्राधिकारी को भेजा गया।

इस दौरान याचिकाकर्ता को निलंबित माना जाएगा और उसे उस अनुसार लाभ मिलेगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि सरकारी नियमों का अनुपालन केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि विधिवत रूप से किया जाना चाहिए। कर्मचारियों को तभी सज़ा दी जा सकती है जब उनके खिलाफ आरोप प्रमाणित हों और सज़ा उचित नियमों के तहत दी जाए।

यूनियन में कार्यरत कर्मचारियों को यह आश्वासन देता है कि न्यायालय उन्हें मनमाने कार्रवाई से सुरक्षा देगा। सरकार को यह याद दिलाता है कि सेवा नियमों के अंतर्गत कठोर कार्रवाई से पहले तथ्यों और प्रक्रिया की पुष्टि करना आवश्यक है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या नियम 76 के तहत 5 वर्ष की अनधिकृत अनुपस्थिति के बिना बर्खास्त किया जा सकता है?
    ➤ नहीं, कोर्ट ने कहा कि आरोपित अनुपस्थिति की अवधि 5 वर्ष से कम थी।
  • क्या ऐसे आरोपों के आधार पर सज़ा दी जा सकती है जो चार्ज मेमो में नहीं थे?
    ➤ नहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह गलत है।
  • क्या विभागीय कार्यवाही उचित प्रक्रिया के अनुसार हुई?
    ➤ नहीं, अनुशासनिक प्राधिकारी ने आरोपों से बाहर की अवधि को भी आधार बना लिया।
  • अगर बर्खास्तगी अवैध हो तो क्या होता है?
    ➤ बर्खास्तगी रद्द कर दी जाती है और कर्मचारी को निलंबित माना जाता है, साथ ही पुनः विचार हेतु मामला लौटाया जाता है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
M.V. Bijlani बनाम Union of India, (2006) 5 SCC 88

मामले का शीर्षक
Dinesh बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
CWJC No. 5995 of 2015

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 196

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अजय कुमार – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री हिमांशु कुमार अकेला (AC to PAAG2) – राज्य सरकार की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNTk5NSMyMDE1IzEjTg==-Nrv9hWv5Km0=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News