बम फेंकने और गोली चलाने के मामले में पटना हाई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपी को किया बरी

बम फेंकने और गोली चलाने के मामले में पटना हाई कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपी को किया बरी

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 2 दिसंबर 2024 को एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें एक युवक को हत्या की कोशिश, रंगदारी मांगने और अवैध हथियार रखने के आरोप में सजा मिलने के बाद बरी कर दिया गया। निचली अदालत ने उसे 10 साल की सजा दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए सजा रद्द कर दी कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य आपस में मेल नहीं खाते और विश्वास के योग्य नहीं हैं।

यह मामला मार्च 2018 का है। पीड़ित और उसका भाई मोटरसाइकिल से रिफाइनरी जा रहे थे। रास्ते में पेट्रोल पंप के पास दो लोगों ने उन्हें रोका और ₹5 लाख की रंगदारी मांगी। जब उन्होंने मना किया, तो आरोपियों ने गोली चलाई और बम फेंका, जिससे पीड़ित का भाई घायल हो गया।

इस मामले में आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास), 341, 387, 120B, आर्म्स एक्ट की धारा 27 और विस्फोटक अधिनियम की धारा 3/4 के तहत मामला दर्ज किया गया था। ट्रायल के बाद निचली अदालत ने अभियुक्त को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

लेकिन हाई कोर्ट में अपील पर जब सारे साक्ष्य दोबारा परखे गए, तो कई गंभीर खामियां सामने आईं। पीड़ित ने कहा कि उसके दोनों पैरों पर बम के टुकड़ों से चोट लगी, लेकिन डॉक्टर की रिपोर्ट में सिर्फ पीठ पर गोली की चोट पाई गई। मेडिकल रिपोर्ट में बम से संबंधित कोई चोट नहीं पाई गई।

डॉक्टर ने भी गवाही में शुरुआत में गलत नाम से मरीज को चिन्हित किया और फिर बाद में सुधार किया। साथ ही, जिस बम की बात की गई, उसके धागे और खाली कारतूस के कोई वैज्ञानिक प्रमाण कोर्ट में पेश नहीं किए गए। अदालत ने पाया कि ऐसे साक्ष्य बिना पुख्ता सबूतों के मान्य नहीं हो सकते।

निचली अदालत ने पहले ही आरोपी को विस्फोटक अधिनियम की धाराओं से बरी कर दिया था। इसके अलावा, जिस व्यक्ति पर मुख्य साजिशकर्ता होने का आरोप था, उसे भी बरी किया गया। ऐसे में साजिश की धाराएं (धारा 120B) भी आरोपी पर लागू नहीं हो सकती थीं।

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रहा। इसलिए सजा को रद्द कर दिया गया और आरोपी को रिहा करने का आदेश दिया गया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बताता है कि जब तक अभियोजन पक्ष पुख्ता और मेल खाते हुए साक्ष्य प्रस्तुत नहीं करता, तब तक किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इससे उन मामलों में राहत मिल सकती है, जहाँ अभियुक्त को बिना पर्याप्त सबूत के जेल में रखा गया हो।

यह निर्णय पुलिस और अभियोजन तंत्र को भी यह याद दिलाता है कि केस की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्ष्य कितने मजबूत और संगत हैं। आम जनता के लिए यह उदाहरण है कि न्यायालय हर मामले की गहराई से जांच करता है, और केवल साक्ष्य के आधार पर ही फैसला सुनाता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या आरोपी के खिलाफ हत्या के प्रयास का आरोप साबित हुआ?
    • नहीं, मेडिकल रिपोर्ट और गवाहों के बयान में विरोधाभास थे।
  • क्या आरोपी पर साजिश (धारा 120B) का आरोप बना?
    • नहीं, मुख्य साजिशकर्ता को बरी किया जा चुका था।
  • क्या बम फेंकने का आरोप साबित हुआ?
    • नहीं, मेडिकल रिपोर्ट और वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण नहीं।
  • क्या जब्ती की कार्रवाई और सबूत पर्याप्त थे?
    • नहीं, जब्त वस्तुओं पर न पुलिस का, न ही न्यायिक अधिकारी का कोई हस्ताक्षर था।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Jage Ram v. State of Haryana, (2015) 11 SCC 366

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of M.P. v. Kashiram, (2009) 4 SCC 26
  • Vadivelu Thevar v. State of Madras, AIR 1957 SC 614
  • Nand Lal v. State of Chhattisgarh, (2023) 10 SCC 470

मामले का शीर्षक
Chandan Kumar vs. The State of Bihar

केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 4216 of 2023

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 184

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चंद्र शेखर झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री रामाकांत शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता (अपीलकर्ता की ओर से)
  • श्री बिपिन कुमार, अधिवक्ता (अपीलकर्ता की ओर से)
  • श्रीमती सरिता कुमारी, अधिवक्ता (अपीलकर्ता की ओर से)
  • श्रीमती अनिता कुमारी सिंह, अपर लोक अभियोजक (राज्य की ओर से)

निर्णय का लिंक
MjQjNDIxNiMyMDIzIzEjTg==-j4suXKtlSz4=

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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