निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने पूर्वी चंपारण जिले के घोड़ासहन गांव में स्थित एक सार्वजनिक पोखरे की रक्षा और पुनर्स्थापन को लेकर दायर दो जनहित याचिकाओं पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि यह पोखरा, जो वर्षों से गाँव के लोगों के लिए पानी का स्रोत रहा है, अब जिला परिषद द्वारा व्यावसायिक निर्माण के लिए कब्जा किया जा रहा है और उसमें दुकानें बनाई जा रही हैं।
याचिका में यह भी बताया गया कि कोर्ट द्वारा पहले से दिए गए रोक आदेश के बावजूद, निर्माण कार्य जारी रहा और पंप के जरिए पोखरे का पानी सुखाया गया। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच में यह सामने आया कि निर्माण कार्य न सिर्फ पोखरे के किनारे, बल्कि उसके अंदर तक किया जा रहा था। बोर्ड ने यह भी बताया कि पोखरे में अब पानी की गुणवत्ता इतनी खराब हो चुकी है कि वह न तो घरेलू उपयोग के योग्य है और न ही जलीय जीवों के लिए सुरक्षित।
जिला परिषद ने बचाव में कहा कि निर्माण सिर्फ बंजर ज़मीन पर हो रहा है, लेकिन अंचलाधिकारी और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दोनों ने स्वीकार किया कि निर्माण पोखरे के भीतर भी हो रहा है। सरकार की 2016 की नीति का हवाला देते हुए यह भी स्पष्ट किया गया कि सभी जल स्रोतों की रक्षा और पुनर्जीवन की जिम्मेदारी सरकार की है।
कोर्ट ने जल स्रोतों की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता, चाहे वह राजस्व बढ़ाने के लिए ही क्यों न हो। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), 48A (पर्यावरण की सुरक्षा) और 51A(g) (नागरिक का कर्तव्य) के तहत सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन जल स्रोतों की रक्षा करे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार में सार्वजनिक जल स्रोतों की रक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश करता है। यह स्पष्ट करता है कि किसी भी सरकारी निकाय को तालाब या पोखरे जैसे प्राकृतिक संसाधनों का व्यावसायिक उपयोग करने का अधिकार नहीं है। यह फैसला उन क्षेत्रों में लागू हो सकता है जहां स्थानीय जल स्रोतों पर अतिक्रमण हो रहा है। साथ ही यह दिखाता है कि जनहित याचिका के माध्यम से आम जनता कैसे पर्यावरणीय न्याय सुनिश्चित कर सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या जिला परिषद सार्वजनिक पोखरे के आसपास दुकानें बना सकती है?
- नहीं, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अवैध है।
- क्या याचिकाकर्ता पोखरे की बहाली के लिए राहत पाने के हकदार थे?
- हां, कोर्ट ने बहाली का आदेश दिया।
- क्या अधिकारियों ने कोर्ट के अंतरिम आदेश की अवहेलना की?
- हां, निर्माण जारी रहा जबकि कोर्ट ने 16.02.2018 को रोक लगाई थी।
- सरकार की पोखरों और जल स्रोतों के प्रति क्या जिम्मेदारी है?
- सरकार इनका संरक्षक (Public Trustee) है और इनकी रक्षा करना उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Hinch Lal Tiwari v. Kamala Devi, (2001) 6 SCC 496
- M.C. Mehta v. Union of India, (1997) 3 SCC 715
- M.K. Balakrishnan v. Union of India, (2009) 5 SCC 507
- M.C. Mehta v. Kamal Nath, (1997) 1 SCC 388
- Shailesh R. Shah v. State of Gujarat, (2002) 3 GLH 642
मामले का शीर्षक
Abdul Salam & Anr. v. State of Bihar & Ors. (साथ में Sanjeew Jayasawal v. State of Bihar & Ors.)
केस नंबर (in english)
CWJC No. 6345 of 2017 with CWJC No. 7861 of 2018
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 226
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री मुकेश आर. शाह
माननीय डॉ. न्यायमूर्ति रवि रंजन
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री शक्ति सुमन कुमार (याचिकाकर्ता, CWJC 6345/2017 के लिए)
- श्री बिनोद कुमार सिन्हा (याचिकाकर्ता, CWJC 7861/2018 के लिए)
- श्री अजय, GA-5 और श्री प्रतीक कुमार सिन्हा (राज्य सरकार की ओर से)
- श्री शिवेन्द्र किशोर, वरिष्ठ अधिवक्ता और श्रीमती बिनिता सिंह (प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNjM0NSMyMDE3IzEjTg==-h75tIxJir18=
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