निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में एक ऐसे संविदा प्रवक्ता की सेवा नियमित करने का आदेश दिया है जो पिछले 22 वर्षों से लगातार कार्यरत हैं। यह प्रवक्ता डी.एन.एस. रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट, पटना में नवंबर 2001 से काम कर रहे हैं और हर बार संविदा बढ़ाई जाती रही है।
याचिकाकर्ता ने कई बार नियमितीकरण के लिए आवेदन किया और संस्थान से अच्छे प्रदर्शन के प्रमाणपत्र भी प्राप्त किए, लेकिन अगस्त 2023 में एनसीसीटी (राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद) ने यह कहते हुए अनुरोध ठुकरा दिया कि नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली।
कोर्ट ने पाया कि यह इनकार संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता को वैध चयन प्रक्रिया के तहत एक स्वीकृत पद पर नियुक्त किया गया था और उन्होंने कभी सेवा में बाधा नहीं आने दी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों – उमा देवी बनाम कर्नाटक राज्य और नरेंद्र कुमार तिवारी बनाम झारखंड राज्य – में यह स्पष्ट किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति एक दशक से अधिक समय तक निरंतर सेवा दे रहा हो, तो उसका नियमितीकरण होना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि कोई नियम नहीं है, किसी को उसका हक नहीं छीन सकते। याचिकाकर्ता अब नई नियुक्तियों की आयु सीमा पार कर चुके हैं और सेवा समाप्ति के करीब हैं, ऐसे में उन्हें स्थायीत्व से वंचित करना अन्यायपूर्ण होगा।
अंततः, कोर्ट ने 10.08.2023 को पारित इनकार आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को उनके समान पद पर कार्य कर रहे अन्य प्रवक्ताओं की तरह नियमित करने का आदेश दिया और तीन महीने के भीतर वेतन भत्ते के भुगतान का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय बिहार और भारत के उन हजारों संविदा कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है जो वर्षों से अस्थायी व्यवस्था में कार्यरत हैं। यह स्पष्ट करता है कि जब किसी की नियुक्ति विधिपूर्वक हुई हो और सेवा निरंतर रही हो, तो नियमों की अनुपस्थिति को अधिकारों की अनदेखी का बहाना नहीं बनाया जा सकता।
यह सरकार और उसके विभागों को यह संदेश देता है कि दीर्घकालीन सेवा करने वाले कर्मचारियों के साथ न्याय करना सिर्फ नैतिक ही नहीं बल्कि संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। आम नागरिकों के लिए यह निर्णय यह भरोसा देता है कि न्यायालय संविदा कर्मियों के अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या एक लंबे समय से संविदा पर कार्यरत व्यक्ति को सिर्फ नियमों की कमी के कारण नियमित नहीं किया जा सकता?
- न्यायालय ने कहा: नहीं, लगातार सेवा करने वाले व्यक्ति को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
- क्या अनुच्छेद 14 और 16 के तहत समानता का उल्लंघन हुआ?
- न्यायालय ने माना: हां, याचिकाकर्ता के साथ भेदभाव हुआ है।
- क्या अन्य प्रवक्ताओं के समान याचिकाकर्ता को भी नियमित करना आवश्यक है?
- न्यायालय ने कहा: हां, समान स्थिति वाले कर्मचारियों को समान लाभ मिलना चाहिए।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Secretary, State of Karnataka vs. Uma Devi (2006) 4 SCC 1
- Narendra Kumar Tiwary vs. State of Jharkhand (2018) 8 SCC 238
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Sheo Narain Nagar vs. State of U.P. (2018) 13 SCC 432
- State of Haryana vs. Piara Singh (1992) 4 SCC 118
- M.P. State Coop. Bank Ltd. vs. Nanuram Yadav (2007) 8 SCC 264
- State of M.P. vs. Lalit Kumar Verma (2007) 1 SCC 575
- Vinod Kumar vs. Union of India (2024)
मामले का शीर्षक
(Dr.) Rajesh Kumar बनाम भारत सरकार एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 13373 of 2023
उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 247
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पुर्णेन्दु सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री ललित किशोर (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अरविंद कुमार सिंह, श्री आयुष कुमार, श्री कनिष्क शंकर, श्री चंदन कुमार
- प्रतिवादियों की ओर से (भारत सरकार): डॉ. के.एन. सिंह (असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल), श्री ए.बी. माथुर, श्री अमरजीत, सुश्री प्रकृति शर्मा, श्री कनिष्क कौस्तुभ, श्री रंजीत कुमार
निर्णय का लिंक
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