पटना हाईकोर्ट का फैसला: मतदाता जागरूकता अभियान भी मानी जाएगी चुनाव ड्यूटी, विधवा को मिलेगा मुआवज़ा

पटना हाईकोर्ट का फैसला: मतदाता जागरूकता अभियान भी मानी जाएगी चुनाव ड्यूटी, विधवा को मिलेगा मुआवज़ा

निर्णय की सरल व्याख्या:

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया जिसमें एक विधवा महिला के पति की मौत के मामले को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोग के रुख को गलत ठहराया गया। महिला के पति, जो एक शिक्षक थे, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाता जागरूकता पर्चे बांटने के काम में लगे थे। इसी दौरान एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।

महिला ने चुनाव ड्यूटी के दौरान हुई मौत के लिए मुआवज़ा (ex-gratia) और इलाज में हुए खर्च की भरपाई की मांग की थी। लेकिन चुनाव आयोग ने यह कहकर मना कर दिया कि मृतक “सक्रिय चुनाव ड्यूटी” पर नहीं थे। वे केवल मतदाता जागरूकता अभियान में लगे थे, जिसे आयोग ने चुनाव ड्यूटी नहीं माना।

कोर्ट ने इस सोच को गलत ठहराया। न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया में लोगों को जागरूक करना भी उतना ही जरूरी काम है जितना मतदान केंद्र पर ड्यूटी करना। मृतक को पहले ही प्रथम मतदान पदाधिकारी (1st Polling Officer) के रूप में नियुक्त किया जा चुका था। उन्हें मतदाता सूची सुधारने और पर्चे बांटने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

12 अक्टूबर 2015 को इसी कार्य के दौरान उनकी दुर्घटना में मृत्यु हो गई। चुनाव अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन ने यह कहकर मुआवज़ा देने से मना कर दिया कि यह “सक्रिय चुनाव ड्यूटी” नहीं थी। लेकिन कोर्ट ने माना कि चुनाव प्रक्रिया में इस तरह के काम को भी शामिल करना चाहिए।

कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसी कल्याणकारी योजनाओं की व्याख्या मानवीय और उदार तरीके से की जानी चाहिए, ना कि संकीर्ण सोच के साथ। अंत में कोर्ट ने चुनाव आयोग के मना करने के निर्णय को खारिज कर दिया और नए सिरे से विधवा की अर्जी पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने का आदेश दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर:

यह फैसला चुनाव ड्यूटी की परिभाषा को व्यापक बनाता है। अब वोटरों को जागरूक करने, पर्चे बांटने या मतदाता सूची को अपडेट करने जैसे कार्य भी चुनाव ड्यूटी माने जाएंगे। इससे चुनावी प्रक्रिया में लगे उन सभी लोगों को सुरक्षा और सम्मान मिलेगा जो सीधे मतदान केंद्र पर नहीं होते, लेकिन चुनाव की तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

सरकार और प्रशासन को अब चुनाव संबंधी कल्याणकारी योजनाओं की व्याख्या मानवीय दृष्टिकोण से करनी होगी, जिससे ऐसी घटनाओं में पीड़ित परिवारों को मदद मिल सके। यह फैसला अन्य ऐसे ही मामलों में मार्गदर्शक बनेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में):

  • क्या मतदाता जागरूकता अभियान चुनाव ड्यूटी माना जाएगा?
    • ✔ हां, कोर्ट ने इसे चुनाव ड्यूटी का हिस्सा माना।
  • क्या विधवा को मुआवज़ा देने से इनकार करना सही था?
    • ❌ नहीं, कोर्ट ने इस निर्णय को खारिज किया।
  • क्या अधिकारियों ने योजना की सही व्याख्या की?
    • ❌ नहीं, कोर्ट ने उनकी सोच को संकीर्ण बताया।

मामले का शीर्षक:

मीना देवी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर:

Civil Writ Jurisdiction Case No. 9004 of 2016

उद्धरण (Citation):

2020 (1) PLJR 238

न्यायमूर्ति गण का नाम:

माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए:

  • श्री सर्जा देव सिंह, याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री बीरजू प्रसाद (GP-13), प्रतिवादी राज्य की ओर से
  • श्री सिद्धार्थ प्रसाद, प्रतिवादी संख्या 5 (चुनाव आयोग) की ओर से

निर्णय का लिंक:

https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjOTAwNCMyMDE2IzcjTg==-HWBiAWipeWA=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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