पटना हाई कोर्ट ने BASU निदेशक की नियुक्ति को सही ठहराया

पटना हाई कोर्ट ने BASU निदेशक की नियुक्ति को सही ठहराया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (BASU), पटना में “डायरेक्टर, एक्सटेंशन एजुकेशन” के पद पर हुई नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता का दावा था कि चयन प्रक्रिया में मनमानी और पक्षपात हुआ है। उन्होंने कहा कि योग्यता की शर्तों को बदला गया ताकि एक विशेष उम्मीदवार को लाभ दिया जा सके।

इस पद के लिए विश्वविद्यालय ने तीन बार विज्ञापन जारी किया—पहला जनवरी 2018 में (विज्ञापन संख्या 2/2018), फिर जुलाई 2019 (5/2019), और अंत में सितंबर 2019 (6/2019)। याचिकाकर्ता ने अंतिम विज्ञापन के अनुसार आवेदन किया और साक्षात्कार भी दिया, लेकिन उनका चयन नहीं हुआ।

उनका आरोप था कि “संबंधित विषयों” (Allied Branches) को योग्यता में जोड़कर ऐसे उम्मीदवार को चुना गया जिसे पशु विज्ञान या वेटनरी की डिग्री नहीं थी, बल्कि कृषि विषय में शिक्षा प्राप्त थी। इस तरह से पुराने मानदंडों को हटाकर नए बनाए गए जो पक्षपातपूर्ण थे।

BASU का पक्ष यह था कि पहले दो विज्ञापनों के अनुसार पर्याप्त उम्मीदवार नहीं मिले थे, इसलिए विज्ञापन को संशोधित कर योग्यता में बदलाव किया गया। यह बदलाव बोर्ड की मंजूरी से हुआ और यह पूरी प्रक्रिया नियमानुसार थी।

हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को संशोधित योग्यता की पूरी जानकारी थी और इसके बावजूद उन्होंने आवेदन किया और साक्षात्कार में हिस्सा लिया। अब चयन न होने के बाद वे इस प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे सकते। कोर्ट ने यह भी कहा कि विशेषज्ञ समिति द्वारा किए गए चयन में न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कोई स्पष्ट अनुचितता या पक्षपात सिद्ध न हो।

अंततः कोर्ट ने यह तय किया कि विश्वविद्यालय की प्रक्रिया में कोई अवैधता नहीं थी और नियुक्ति को रद्द करने का कोई आधार नहीं है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि कोई भी शैक्षणिक या सरकारी संस्था अपनी भर्ती प्रक्रिया में कुछ बदलाव कर सकती है, यदि वह प्रक्रिया पारदर्शी और तर्कसंगत हो। साथ ही यह भी संदेश मिलता है कि अगर कोई उम्मीदवार खुद आवेदन करता है और चयन प्रक्रिया में भाग लेता है, तो बाद में उसे यह कहने का अधिकार नहीं है कि प्रक्रिया गलत थी, जब तक कि कोई गहरी गड़बड़ी साबित न हो।

यह निर्णय शिक्षण संस्थानों और सरकारी निकायों को बिना डर के निष्पक्ष निर्णय लेने में मदद करेगा और अनावश्यक मुकदमेबाजी को रोकेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या विश्वविद्यालय द्वारा योग्यता मानदंड बदलना मनमाना था?
    → नहीं। कोर्ट ने कहा कि पर्याप्त आवेदन न मिलने की स्थिति में यह बदलाव उचित था।
  • क्या कृषि विषय को “संबंधित विषय” मानना गलत था?
    → नहीं। विश्वविद्यालय के पास यह विवेकाधिकार था और कोर्ट ने उसमें दखल नहीं दिया।
  • क्या याचिकाकर्ता को चयन प्रक्रिया में भाग लेने के बाद उसे चुनौती देने का अधिकार है?
    → नहीं। कोर्ट ने कहा कि जान-बूझकर भाग लेने के बाद प्रक्रिया को चुनौती देना अस्वीकार्य है।
  • क्या विशेषज्ञ समिति के निर्णयों में अदालत दखल दे सकती है?
    → सिर्फ तभी जब कोई पक्षपात, अनुचितता या नियमों का उल्लंघन हो।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन बनाम एम. सत्या प्रिया, (2018) 15 SCC 796
  • बैद्यनाथ यादव बनाम आदित्य नारायण रॉय, (2020) 16 SCC 799
  • बसवैय्या बनाम डॉ. एच.एल. रमेश, (2010) 8 SCC 372
  • बेडांगा तालुकदार बनाम सैफुदुल्लाह खान, (2011) 12 SCC 85
  • रमेश चंद्र शाह बनाम अनिल जोशी, (2013) 11 SCC 309

मामले का शीर्षक

डॉ. सफीर आलम बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 5223 of 2021

उद्धरण (Citation)- 2025 (1) PLJR 262

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार वर्मा, श्री अभिषेक कुमार, श्री ओंकार
  • विश्वविद्यालय की ओर से: श्री अंजनी कुमार (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री आलोक कुमार राही
  • राज्य की ओर से: श्री अबदोर रहमान शकीब (AAG-12 के सहायक)

निर्णय का लिंक

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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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