सेवानिवृत्त विश्वविद्यालय कर्मियों को पेंशन का अधिकार: पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

सेवानिवृत्त विश्वविद्यालय कर्मियों को पेंशन का अधिकार: पटना हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में बिहार के विश्वविद्यालयों में नियुक्त उन प्रोफेसरों और कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दिया, जिन्हें 2005 से पहले नियुक्त किया गया था लेकिन पेंशन की सुविधा नहीं दी जा रही थी। यह मामला उन सेवानिवृत्त कर्मियों से जुड़ा था, जिन्हें बिहार पेंशन नियमावली, 1950 के तहत पेंशन, ग्रेच्युटी और पारिवारिक पेंशन मिलने का दावा था, लेकिन प्रशासनिक भ्रम और देरी की वजह से उन्हें यह लाभ नहीं दिया जा रहा था।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि वे 1980 और 1990 के दशक में ही राज्य विश्वविद्यालयों में स्वीकृत पदों पर पूर्णकालिक रूप से नियुक्त हुए थे। लेकिन सरकारी और विश्वविद्यालयी अधिकारियों ने यह तर्क दिया कि इनकी नियमित नियुक्ति या सेवा पुष्टिकरण 2005 के बाद हुई है, इसलिए इन्हें नई पेंशन योजना (NPS) के तहत लाया गया।

पटना हाईकोर्ट ने इस दलील को पूरी तरह खारिज कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पेंशन के लिए यह देखा जाएगा कि नियुक्ति कब हुई थी, न कि यह कि “नियमित” शब्द कब जोड़ा गया। यदि कोई कर्मचारी 1 जनवरी 2005 से पहले स्वीकृत पद पर सेवा दे रहा था, तो वह बिहार पेंशन नियमावली, 1950 के अंतर्गत लाभ पाने का पात्र है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि नई पेंशन योजना केवल उन्हीं कर्मचारियों पर लागू होती है जिन्हें 1 जनवरी 2005 या उसके बाद स्थायी रूप से नियुक्त किया गया हो। इस प्रकार, पूर्व की तिथि पर नियुक्त कर्मचारियों को NPS के तहत लाना असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।

न्यायालय ने सभी संबंधित विश्वविद्यालयों और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे इन कर्मचारियों की सेवा को पुराने पेंशन नियमों के तहत मान्यता दें और उन्हें सभी लंबित पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान शीघ्र करें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार के हजारों सेवानिवृत्त शिक्षकों और विश्वविद्यालय कर्मचारियों के लिए राहत का कारण बना है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि नियुक्ति की वास्तविक तिथि ही पेंशन अधिकार तय करती है, न कि बाद में हुआ कोई औपचारिक “नियमितकरण”। यह फैसला राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को चेतावनी देता है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान किया जाए।

इसके अतिरिक्त, यह निर्णय पूरे राज्य में ऐसे मामलों में एक मिसाल बन गया है, जहां कर्मचारी वर्षों तक सेवा देने के बावजूद अपने वैधानिक लाभों से वंचित रह जाते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या 1 जनवरी 2005 से पहले नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए?
    • हां, यदि नियुक्ति स्वीकृत पद पर हुई थी तो पेंशन नियम 1950 लागू होंगे।
  • क्या “नियमित” शब्द की अनुपस्थिति या देरी से पेंशन लाभ से इनकार किया जा सकता है?
    • नहीं, यह तर्क स्वीकार नहीं किया गया।
  • क्या NPS योजना पूर्व प्रभाव से लागू हो सकती है?
    • नहीं, यह केवल 1 जनवरी 2005 या उसके बाद नियुक्त कर्मचारियों पर लागू होती है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Bihar vs. Devendra Prasad & Ors., (Civil Appeal No. 6798 of 2022)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • State of Bihar vs. Devendra Prasad & Ors., (Civil Appeal No. 6798 of 2022)
  • Sudhir Kumar Srivastava vs. State of Bihar, CWJC No. 13804 of 2021

मामले का शीर्षक

CWJC No. 4649 of 2019

केस नंबर

CWJC No. 4649 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 243

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री संजीव कुमार नूरी, अधिवक्ता (याचिकाकर्ताओं की ओर से)
  • GP-5 (राज्य सरकार की ओर से)

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNDY0OSMyMDE5IzEjTg==-9X83Elmf3As=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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