निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक डिजिटल सेवा प्रदाता कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार शिक्षा विभाग द्वारा की गई ब्लैकलिस्टिंग को रद्द कर दिया। यह कंपनी बिहार में ऑनलाइन परीक्षाओं के संचालन के लिए अनुबंधित थी। अगस्त 2024 में एक परीक्षा के दौरान प्रश्नों की पुनरावृत्ति को लेकर विवाद हुआ, जिसके चलते कंपनी को अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था।
याचिकाकर्ता कंपनी को 22 सितंबर 2023 को जारी एक निविदा प्रक्रिया (RFP) के तहत पाँच वर्षों के लिए ठेका मिला था, जिसमें कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं के लिए हार्डवेयर, तकनीकी सहायता, और स्टाफ सहित पूरी व्यवस्था करनी थी। यह अनुबंध दो वर्षों तक और बढ़ाया जा सकता था।
हालांकि, 23 से 26 अगस्त 2024 के बीच आयोजित CTT-2 परीक्षा के दौरान कक्षा IX और X के पाँच विषयों में प्रश्नों की पुनरावृत्ति की शिकायतें सामने आईं। SCERT ने इसकी जांच के लिए छह सदस्यीय समिति बनाई। परिणामस्वरूप सात विषयों में पुनः परीक्षा कराई गई और फिर परिणाम प्रकाशित किए गए।
इस पर याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस भेजा गया। कंपनी ने जवाब में बताया कि प्रश्न पत्र SCERT द्वारा तैयार किए जाने थे और इनमें से कई एक दिन पहले या परीक्षा के दिन ही मिले थे। उन्हें एक विशेष डिजिटल टेम्पलेट में ढालना समय लेने वाला कार्य था, जिससे कुछ दोहराव हो गया। इसके बावजूद कंपनी ने बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के पुनः परीक्षा आयोजित की और परिणाम जारी किए।
राज्य सरकार ने कंपनी की सफाई को दरकिनार करते हुए उसे अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसी आदेश को याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई, हालांकि कंपनी ने अनुबंध समाप्त करने के निर्णय को चुनौती नहीं दी।
हाई कोर्ट ने माना कि:
- ब्लैकलिस्टिंग आदेश संक्षिप्त और अस्पष्ट था।
- यह अवधि विहीन (open-ended) था, जो न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।
- प्रश्न पत्र समय से उपलब्ध न कराने में सरकार की भी लापरवाही रही।
- कंपनी का पुनः परीक्षा आयोजित करने में सहयोग सराहनीय था।
कोर्ट ने कहा कि ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर निर्णय है और यह निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया के मानकों पर खरा उतरना चाहिए। जब तक सभी पक्षों को सुना न जाए और सभी तथ्यों पर विचार न हो, तब तक ऐसा निर्णय वैध नहीं माना जा सकता।
इसलिए कोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और संबंधित प्राधिकारी को निर्देश दिया कि 15 दिनों के भीतर याचिकाकर्ता की दलीलों पर विचार करके नया आदेश पारित करें।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी अनुबंधों में निष्पक्ष प्रक्रिया की अहमियत को दोहराता है। सरकार या उसकी संस्थाएं ठेकेदारों के साथ अनुबंध समाप्त कर सकती हैं, लेकिन बिना कारण बताए और अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग जैसे कठोर कदम नहीं उठा सकतीं।
डिजिटल सेवा प्रदाताओं और परीक्षा एजेंसियों के लिए यह निर्णय राहत देने वाला है। इससे स्पष्ट होता है कि यदि आप ईमानदारी से कार्य करते हैं और समस्याओं को हल करने में सहयोग देते हैं, तो सरकारी एजेंसियां आपको मनमाने ढंग से दंड नहीं दे सकतीं। इससे आम जनता को भी यह भरोसा मिलता है कि सरकारी निविदाएं पारदर्शी और उत्तरदायी होंगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग वैध थी?
➤ नहीं, कोर्ट ने इसे अनुपातहीन और अन्यायपूर्ण माना। - क्या कंपनी की दलीलों पर विचार किया गया?
➤ नहीं, आदेश में याचिकाकर्ता की सफाई पर कोई विचार नहीं था। - क्या गलती पूरी तरह कंपनी की थी?
➤ नहीं, प्रश्न पत्र समय पर न देने में SCERT की भी गलती थी। - क्या राहत प्रदान की गई?
➤ ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया गया और 15 दिनों में पुनः विचार करने का निर्देश दिया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
• Daffodills Pharmaceuticals Ltd. and Anr. vs. State of U.P. and Anr., (2020) 18 SCC 550
मामले का शीर्षक
SIFY Digital Services Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1292 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री अशुतोष कुमार (कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश)
माननीय श्री पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री चितरंजन सिन्हा (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री श्रीराम कृष्णा, श्री अमरजीत, श्री प्रभात कुमार सिंह, श्री शशांक शेखर कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अजीत कुमार — राज्य की ओर से
श्री सत्यबीर भारती (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री अभिषेक आनंद, श्रीमती कनुप्रिया — बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की ओर से
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