फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र पर ठेकेदार को 3 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का पटना हाई कोर्ट का फैसला

फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र पर ठेकेदार को 3 साल के लिए ब्लैकलिस्ट करने का पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने 27 फरवरी 2025 को एक ठेकेदार फर्म की याचिका खारिज करते हुए उसे तीन वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट करने के निर्णय को सही ठहराया। यह निर्णय बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम (BPBCC) द्वारा लिए गए उस फैसले के विरुद्ध दायर याचिका पर दिया गया था जिसमें फर्म को फर्जी अनुभव प्रमाणपत्र लगाने के आरोप में ब्लैकलिस्ट किया गया था।

मामला तब शुरू हुआ जब BPBCC ने गया जिले में थानों और आउटहाउसों के निर्माण और विद्युतीकरण के लिए निविदा आमंत्रित की। शर्त थी कि बोलीदाता को अपने पिछले सरकारी कार्यों का प्रमाणपत्र संलग्न करना होगा। याचिकाकर्ता फर्म ने झारखंड राज्य आदिवासी सहकारी सब्जी विपणन संघ (VEGFED) का अनुभव प्रमाणपत्र संलग्न किया।

जांच में पता चला कि VEGFED ने ऐसा कोई प्रमाणपत्र जारी ही नहीं किया था। इसके बाद BPBCC ने फर्म के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई और उसकी पंजीकरण को पहले अनिश्चितकालीन और बाद में पाँच वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। अपील के बाद यह अवधि घटाकर तीन वर्ष कर दी गई और ब्लैकलिस्टिंग अन्य सभी सरकारी विभागों पर भी लागू कर दी गई।

फर्म की ओर से मुख्य दलीलें थीं:

  • जब नोटिस जारी हुआ तब फर्म का पंजीकरण पहले ही समाप्त हो चुका था, इसलिए ब्लैकलिस्टिंग का अधिकार नहीं था।
  • एफआईआर की जांच अभी लंबित है और आरोप साबित नहीं हुए हैं।
  • उन्हें नोटिस की वैध सेवा नहीं हुई, जिससे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ।

कोर्ट ने सभी तर्क खारिज करते हुए कहा कि:

  • फर्जी दस्तावेज लगाना गंभीर अपराध है और इसके आधार पर कार्रवाई उचित है।
  • फर्म ने खुद हलफनामा दिया था कि गलत दस्तावेज पाए जाने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
  • नोटिस गलत पते के कारण वापस आया, जो फर्म की गलती थी।
  • अपील में फर्म को पूरा मौका मिला, और वहीं पर अवधि कम की गई।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि फर्म ने कहीं यह नहीं कहा कि उनके द्वारा अपलोड किया गया प्रमाणपत्र असली है। इससे यह सिद्ध होता है कि फर्म दोषी थी और कोई राहत नहीं दी जा सकती।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकारी निविदाओं में फर्जी दस्तावेज लगाने वालों को गंभीर दंड भुगतना पड़ सकता है। यह सरकारी संस्थाओं को यह अधिकार देता है कि वे ऐसे ठेकेदारों को न केवल अयोग्य घोषित करें बल्कि अन्य विभागों को भी उनके बारे में सूचित करें।

इस फैसले से यह संदेश गया है कि यदि कोई ठेकेदार गलत दस्तावेजों के सहारे टेंडर प्राप्त करने का प्रयास करता है तो उसे कड़ी सजा मिल सकती है। सरकारी एजेंसियों को इस निर्णय से यह कानूनी बल मिला है कि वे पारदर्शिता और ईमानदारी को प्राथमिकता दें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या पंजीकरण समाप्त होने के बाद ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ✔ हाँ, फर्जीवाड़ा एक गंभीर मामला है और इसका दंड पंजीकरण की स्थिति से स्वतंत्र रूप से दिया जा सकता है।
  • क्या बिना नोटिस सेवा के ब्लैकलिस्टिंग वैध है?
    ✔ हाँ, फर्म ने गलत पता दिया था और अपील में उन्हें पर्याप्त सुनवाई का मौका मिला।
  • क्या आपराधिक जांच लंबित रहने पर भी ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ✔ हाँ, प्राथमिक साक्ष्य के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई वैध है।
  • क्या ब्लैकलिस्टिंग केवल BPBCC तक सीमित होनी चाहिए थी?
    ✔ नहीं, सभी विभागों में लागू करने का निर्णय उचित है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Erusian Equipment & Chemicals Ltd. v. State of W.B., (1975) 1 SCC 70
  • B.S.N. Joshi & Sons Ltd. v. Nair Coal Services Ltd., (2006) 11 SCC 548
  • Kulja Industries Ltd. v. Chief General Manager, BSNL, (2014) 14 SCC 731
  • Patel Engineering Ltd. v. Union of India, (2012) 11 SCC 257
  • Blue Dreamz Advertising Pvt. Ltd. v. Kolkata Municipal Corporation, 2024 SCC OnLine SC 1896
  • Union of India v. Tulsi Ram Patel, (1985) 3 SCC 398

मामले का शीर्षक
M/S R.S. Construction बनाम बिहार पुलिस भवन निर्माण निगम एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 13715 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री अशुतोष कुमार (कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश)
माननीय श्री पार्थ सार्थी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री उमेश प्रसाद सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री संजीत कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादियों की ओर से: श्री प्रसून सिन्हा, वरिष्ठ अधिवक्ता; श्री प्रभात कुमार, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/54116962-9c86-4452-939a-c45c539d3076.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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