टेंडर विवाद में पटना हाई कोर्ट का फैसला: मामूली त्रुटियों के बावजूद अनुबंध रद्द नहीं

टेंडर विवाद में पटना हाई कोर्ट का फैसला: मामूली त्रुटियों के बावजूद अनुबंध रद्द नहीं

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक याचिका खारिज की जिसमें कुछ ठेकेदारों ने बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा दिए गए एक सरकारी ठेके को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता ठेकेदारों का आरोप था कि जिस ठेकेदार (ग्यारहवें प्रतिवादी) को काम सौंपा गया, उसने निविदा (टेंडर) के लिए जरूरी दस्तावेज या तो अधूरे दिए थे या नियमों के अनुसार नहीं थे।

यह ठेका 13 दिसंबर 2023 की एक सार्वजनिक निविदा (NIT) के तहत निकाला गया था, जिसमें याचिकाकर्ताओं सहित कई ठेकेदारों ने हिस्सा लिया था। याचिकाकर्ताओं ने यह स्वीकार किया कि वे सभी तकनीकी स्तर पर सफल नहीं हो पाए थे, लेकिन उनका विरोध इस बात पर था कि टेंडर सूची के क्रम संख्या 1 और 8 के कार्य ग्यारहवें प्रतिवादी को क्यों दिए गए।

याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियाँ थीं:

  1. ग्यारहवें प्रतिवादी ने एक जरूरी हलफनामा नहीं दिया था जिसमें यह घोषित करना होता है कि वह टेंडर के लिए अयोग्य नहीं है।
  2. टेंडर के नियमों के तहत की गई शिकायत पर विचार नहीं किया गया, जबकि नियमों के अनुसार वित्तीय बोली खोलने से पहले उसे सुलझाना चाहिए था।
  3. जिन गाड़ियों और मशीनों की जानकारी दी गई थी, उनकी फिटनेस खत्म हो चुकी थी या उन्हें पहले ही बेच दिया गया था।
  4. हलफनामे न्यायिक स्टांप पेपर पर दिए गए थे, न कि गैर-न्यायिक पेपर पर, जो कि गलत बताया गया।

कोर्ट ने इन सभी तर्कों की गहराई से जांच की और याचिका खारिज कर दी। मुख्य बिंदु यह रहे:

  • ग्यारहवें प्रतिवादी ने वास्तव में जरूरी हलफनामा जमा किया था। अगर उस पर स्टांप में कोई कमी थी, तो उसे स्टांप अधिनियम के तहत दुरुस्त किया जा सकता है।
  • शिकायत तकनीकी बोली के मूल्यांकन के 5 दिन बाद दी गई, जबकि नियमानुसार इसे पहले देना चाहिए था। इसलिए उसे मान्य नहीं माना गया।
  • जिन वाहनों की फिटनेस पर सवाल था, उनके लिए टैक्स की रसीदें और बीमा दस्तावेज यह साबित करते हैं कि वे कार्य के समय सक्षम थे या उनकी वैधता बढ़ा दी गई थी।
  • यदि किसी वाहन की फिटनेस में कमी रह भी गई हो, तो टेंडर नियम के अनुसार ठेकेदार को 30 दिनों के भीतर जरूरी मशीनें जुटाने की अनुमति है। ऐसा न करने पर सरकार उसका सुरक्षा जमा जब्त कर सकती है और ठेका रद्द कर सकती है।

अंततः कोर्ट ने कहा कि कोई भी ऐसा नियम नहीं टूटा है जिससे ठेका रद्द करना ज़रूरी हो जाए। इसके उलट, यदि ठेका रद्द किया जाता, तो इससे राज्य को आर्थिक नुकसान और समय की बर्बादी होती।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी टेंडर प्रणाली में संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। एक ओर, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नियमों की अवहेलना नहीं होनी चाहिए; वहीं दूसरी ओर, यह भी कहा कि कुछ मामूली तकनीकी कमियाँ, जिन्हें बाद में ठीक किया जा सकता है, उनके कारण ठेका रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

सरकार के लिए यह फैसला उपयोगी है क्योंकि इससे समय और खर्च की बचत होगी और काम की गति बनी रहेगी। वहीं, ठेकेदारों के लिए यह सीख है कि जरूरी दस्तावेज समय पर और सही तरीके से जमा करें, लेकिन अगर कुछ कमी हो, तो टेंडर के नियमों को ध्यान से पढ़कर उसे समय पर पूरा भी किया जा सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या चयनित ठेकेदार का टेंडर वैध था, जबकि कुछ दस्तावेजों में त्रुटियाँ थीं?
    ✔ हां, कोर्ट ने पाया कि जरूरी दस्तावेज समय पर जमा किए गए थे या उन्हें सुधारने की अनुमति नियमों में है।
  • क्या शिकायत पर समय से विचार नहीं किया गया?
    ✔ हां, लेकिन याचिकाकर्ता की गलती थी क्योंकि उसने शिकायत देर से की।
  • क्या न्यायिक स्टांप पेपर पर हलफनामा देना गलत था?
    ✔ नहीं, कोर्ट ने कहा कि ऐसे हलफनामे स्टांप अधिनियम के तहत वैध माने जा सकते हैं।
  • क्या ठेका रद्द होना चाहिए था?
    ❌ नहीं, कोर्ट ने कहा कि ऐसा करने से राज्य को नुकसान होता और यह अनुचित होता।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Ramana Dayaram Shetty v. International Airport Authority of India, (1979) 3 SCC 489
  • M/s Ashok Construction v. State of Bihar, CWJC No. 4139 of 2024, दिनांक 05.03.2024
  • Sona Engicon Pvt. Ltd. v. State of Bihar, CWJC No. 13539 of 2024, दिनांक 10.09.2024

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Poddar Steel Corporation v. Ganesh Engineering Works, (1991) 3 SCC 273
  • B.S.N. Joshi & Sons Ltd. v. Nair Coal Services Ltd., (2006) 11 SCC 548

मामले का शीर्षक

M/s Jay Mata Di Enterprises & Ors. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 12254 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति श्री पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से:
    श्री अशिष गिरी, अधिवक्ता
    श्री सर्वेश्वर तिवारी, अधिवक्ता
    सुश्री प्रगति पात्रा, अधिवक्ता
    श्री सुमित कुमार झा, अधिवक्ता
    सुश्री रिया गिरी, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से:
    श्री पी. के. शाही, महाधिवक्ता
    श्री रामाकांत शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता
    श्री विकास कुमार, अधिवक्ता
    श्री सौरव सुवान, अधिवक्ता

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/a401b445-9cf5-44c8-8d5c-7623daf543ee.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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