NTPC द्वारा ठेकेदार पर लगाई गई दो साल की पाबंदी को पटना हाई कोर्ट ने उचित ठहराया

NTPC द्वारा ठेकेदार पर लगाई गई दो साल की पाबंदी को पटना हाई कोर्ट ने उचित ठहराया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक ठेकेदार पर नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC) द्वारा लगाए गए दो साल के व्यापार प्रतिबंध को सही ठहराया है। ठेकेदार ने यह प्रतिबंध इस आधार पर चुनौती दी थी कि संबंधित आपराधिक मामले में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल कर दी थी और किसी आपराधिक दोष का प्रमाण नहीं मिला था।

इस मामले में ठेकेदार को वर्ष 2012 से 2015 के बीच मुजफ्फरपुर थर्मल पावर स्टेशन में सिविल मेंटेनेंस कार्य के लिए तीन ठेके दिए गए थे, जिनकी कुल राशि ₹2.8 करोड़ से अधिक थी। लेकिन NTPC की विजिलेंस टीम द्वारा किए गए औचक निरीक्षण में कई गड़बड़ियां पाई गईं। आरोप था कि गेट पास और चालानों में हेराफेरी की गई, कुछ निर्माण सामग्री की फर्जी बिलिंग की गई जो असल में प्लांट परिसर में पहुँची ही नहीं थी, और खुद की पर्चेज इनवॉइस में झूठे आंकड़े दिखाए गए।

इन तथ्यों के आधार पर वर्ष 2019 में ठेकेदार को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। बाद में एक FIR दर्ज हुई और CBI ने जांच शुरू की। हालांकि CBI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं और उन्होंने केस को बंद करने की सिफारिश की। विशेष अदालत ने भी क्लोज़र रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया।

फिर भी, NTPC ने प्रशासनिक स्तर पर कार्यवाही जारी रखते हुए अप्रैल 2024 में ठेकेदार को दो साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आपराधिक मामले के बंद होने का यह मतलब नहीं है कि विभागीय या प्रशासनिक कार्यवाही भी समाप्त हो जाएगी। आपराधिक मामलों में दोष सिद्ध करने के लिए “संदेह से परे” प्रमाण की आवश्यकता होती है, लेकिन प्रशासनिक फैसले “संभावनाओं के आधार पर” लिए जा सकते हैं।

ठेकेदार का यह तर्क भी खारिज कर दिया गया कि अंतिम आदेश में बताए गए कारण शो-कॉज़ नोटिस से अलग थे। कोर्ट ने कहा कि दोनों में समान आरोप थे और ठेकेदार को मौखिक सुनवाई का भी मौका दिया गया था।

इसलिए कोर्ट ने यह मानते हुए कि कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं हुई है, हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों को यह अधिकार देता है कि वे आंतरिक जांच के आधार पर प्रशासनिक कदम उठा सकते हैं, भले ही आपराधिक जांच में दोष साबित न हो। इससे सरकारी पारदर्शिता और अनुशासन को बल मिलेगा।

साथ ही, यह ठेकेदारों और सेवा प्रदाताओं के लिए एक चेतावनी है कि किसी भी प्रकार की अनियमितता से न सिर्फ आपराधिक जांच हो सकती है, बल्कि उनके व्यवसायिक भविष्य पर भी असर पड़ सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या CBI द्वारा केस बंद करने के बाद भी ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ✅ हां। प्रशासनिक कार्रवाई अलग आधार पर होती है।
  • क्या ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया वैध थी?
    ✅ हां। कारण बताओ नोटिस और सुनवाई दी गई थी।
  • क्या हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है?
    ✅ सिर्फ तभी जब प्रक्रिया में भारी त्रुटि या अन्याय हो — जो इस मामले में नहीं था।

मामले का शीर्षक
Bhupendra Singh v. Ministry of Power & Ors.

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 344 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री संजीव कुमार झा — याचिकाकर्ता की ओर से
  • सुश्री पूनम कुमारी सिंह — भारत सरकार की ओर से
  • श्री तुहिन शंकर — NTPC की ओर से
  • श्री अरुण कुमार — उत्तरदाता संख्या 13 (Utility Powertech Ltd.) की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/e87487bd-a232-4742-b6b1-45421eddb688.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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