निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला सुनाते हुए बिहार राज्य भवन निर्माण निगम लिमिटेड (BSBCCL) द्वारा एक पंजीकृत सरकारी ठेकेदार को आगामी निविदाओं (टेंडर) में भाग लेने से प्रतिबंधित (डिबार) करने का आदेश रद्द कर दिया। ठेकेदार ने इस डिबारमेंट को चुनौती देते हुए दो रिट याचिकाएं दायर की थीं।
ठेकेदार को पश्चिम चंपारण (बेतिया) और मुजफ्फरपुर में 200 बिस्तरों वाले वृद्धाश्रय गृह के निर्माण के लिए ठेका मिला था। तकनीकी और वित्तीय रूप से सबसे उपयुक्त पाए जाने के बाद, निगम ने अक्टूबर 2021 और फरवरी 2022 में ठेकेदार के साथ अनुबंध किए। इन कार्यों को 18 महीनों में पूरा करना था।
निर्माण कार्य के दौरान, निगम ने अतिरिक्त कार्य भी सौंपे, जैसे कि रास्तों का निर्माण, चारदीवारी की ऊंचाई बढ़ाना और टाइल्स लगाना। लेकिन इस अतिरिक्त कार्य के लिए समय विस्तार नहीं दिया गया।
ठेकेदार का कहना था कि उसने लगभग 90% काम पूरा कर लिया है और जो देरी हुई वह विभागीय कारणों से हुई — जैसे कि समय पर नक्शा नहीं मिलना, फंड की कमी, और बारिश। इन परिस्थितियों के बावजूद, उसे भुगतान समय पर मिला, जो यह दर्शाता है कि विभाग उसके काम से संतुष्ट था।
फिर भी, निगम ने कई बार नोटिस भेजे और आखिरकार बिना अनुबंध को रद्द किए, 15 दिसंबर 2023 को डिबार करने का आदेश दे दिया।
हाई कोर्ट ने पाया कि बिहार ठेकेदार पंजीकरण नियमावली, 2007 में इस तरह के डिबारमेंट का स्पष्ट प्रावधान नहीं है जब तक कि अनुबंध समाप्त न किया गया हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि डिबारमेंट या ब्लैकलिस्टिंग जैसे निर्णय “न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों” के अनुसार ही लिए जाने चाहिए क्योंकि इसका गंभीर प्रभाव होता है, जिसे “सिविल मृत्यु” कहा गया है।
इसके अलावा, कोर्ट ने माना कि भले ही वैकल्पिक उपाय मौजूद थे (जैसे कि अपील), यह मामला विशेष था क्योंकि आदेश के लिए कानूनी अधिकार नहीं था। सुप्रीम कोर्ट के Gorkha Security Services केस में तय सिद्धांतों को अपनाते हुए, पटना हाई कोर्ट ने डिबारमेंट आदेश को गैर-कानूनी करार दिया।
अंत में, ठेकेदार ने यह भी कहा कि यदि उसे तीन महीने का समय और दिया जाए, तो वह बचा हुआ काम भी पूरा कर देगा। कोर्ट ने इस प्रस्ताव को भी रिकॉर्ड पर लिया और विभाग को उसके अनुरोध पर विचार करने का निर्देश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी विभागों द्वारा मनमाने ढंग से ठेकेदारों को ब्लैकलिस्ट या डिबार करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि बिना कानूनी अधिकार या उचित प्रक्रिया के किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान को दंडित नहीं किया जा सकता। ठेकेदारों को अब यह भरोसा मिलेगा कि न्यायपालिका उनकी वैध शिकायतों की सुनवाई करेगी और सरकारी लापरवाही के विरुद्ध संरक्षण देगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या डिबारमेंट का आदेश नियमों के अंतर्गत वैध था?
❖ नहीं, नियमावली में ऐसा कोई स्पष्ट अधिकार नहीं है। कोर्ट ने आदेश को गैर-कानूनी बताया। - क्या ठेकेदार को उचित सुनवाई का मौका मिला?
❖ कोर्ट ने माना कि प्राकृतिक न्याय का पूर्ण पालन नहीं किया गया। - क्या रिट याचिका स्वीकार्य थी जबकि वैकल्पिक उपाय मौजूद था?
❖ हाँ, क्योंकि आदेश बिना वैध अधिकार के जारी किया गया था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Gorkha Security Services v. Govt. (NCT of Delhi) [(2014) 9 SCC 105]
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Whirlpool Corporation v. Registrar of Trade Marks, Mumbai [(1998) 8 SCC 1]
मामले का शीर्षक
M/s Kundan Kumar (Civil and Electrical Contractor) बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 5028 of 2024 तथा CWJC No. 5127 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री अनुराग सौरव, श्री अभिनव आलोक, श्री अभिषेक कुमार, सुश्री प्रीति कुमारी, श्री शारदा राजे सिंह
प्रत्युत्तरकर्ता (राज्य) की ओर से: श्री अनिर्बान कुंडु (SC-24), स्टैंडिंग काउंसिल-25
BSBCCL की ओर से: श्री अभिमन्यु प्रताप, सुश्री राणा नेहा कुमारी
निर्णय का लिंक
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।