निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक रिट याचिका खारिज कर दी, जिसमें एक क्लास-1 ठेकेदार ने बिहार ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा उसे चार वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को चुनौती दी थी। ठेकेदार पर आरोप था कि उसने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY-III) की निविदा प्रक्रिया में फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत किए थे।
याचिकाकर्ता ने 28 अगस्त 2023 को जारी दो निविदाओं के तहत तीन सड़क निर्माण पैकेजों के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था। तकनीकी परीक्षण में उसे योग्य घोषित किया गया और वह सबसे कम बोलीदाता (L-1) चुना गया। लेकिन विभाग ने 9 फरवरी 2024 को पूरी निविदा प्रक्रिया को रद्द कर दिया।
इसके बाद 23 फरवरी 2024 को विभाग ने एक शो-कॉज नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया कि ठेकेदार ने “Key Plant and Equipment” से जुड़े दस्तावेज गलत प्रस्तुत किए हैं और सात दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया। चेतावनी दी गई थी कि समय पर उत्तर न देने पर एकतरफा ब्लैकलिस्टिंग कर दी जाएगी।
याचिकाकर्ता को यह नोटिस 4 मार्च 2024 को डाक से प्राप्त हुआ—जब तक उत्तर देने की समयसीमा खत्म हो चुकी थी। उसी दिन उसने स्पष्टीकरण दाखिल किया, लेकिन विभाग ने दावा किया कि उन्हें कोई जवाब नहीं मिला और 30 मार्च 2024 को उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उसे उचित सुनवाई का मौका नहीं दिया गया, जिससे उसके जीवन-यापन के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 14 व 19(1)(g) का उल्लंघन हुआ है।
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का जवाब रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से प्राप्त नहीं हुआ और कोई ठोस प्रमाण नहीं था कि जवाब समय पर जमा हुआ था। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने आरोपों का खंडन तो किया लेकिन कोई सबूत प्रस्तुत नहीं किया जो उसकी सफाई को प्रमाणित कर सके।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सार्वजनिक अनुबंधों के मामलों में न्यायिक समीक्षा केवल तभी संभव है जब कोई मूलभूत कानूनी या प्रक्रिया संबंधी त्रुटि हो। Jagdish Mandal v. State of Orissa मामले का हवाला देते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बोली प्रक्रिया में अदालतों को तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब निर्णय दुर्भावनापूर्ण या सार्वजनिक हित के खिलाफ हो।
अंततः, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के पास नियमों के तहत अपील का वैकल्पिक उपाय मौजूद है। इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकारी निविदा प्रक्रियाएं व्यावसायिक होती हैं और इन पर न्यायालय केवल तभी हस्तक्षेप करेगा जब किसी ठेकेदार के साथ न्यायिक रूप से स्पष्ट अन्याय हुआ हो। यह ठेकेदारों के लिए चेतावनी है कि वे किसी भी निविदा में भाग लेते समय दस्तावेजों की सत्यता सुनिश्चित करें, वरना गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
इसके साथ ही यह फैसला सरकार को यह अधिकार देता है कि वह निविदाओं में फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करने वाले ठेकेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर सके, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या याचिकाकर्ता को जवाब देने का उचित मौका मिला?
❖ कोर्ट ने कहा कि जवाब देने का दावा पुष्ट नहीं था और कोई प्रक्रिया संबंधी बड़ी त्रुटि नहीं पाई गई। - क्या याचिकाकर्ता ने आरोपों को खारिज करने के लिए सबूत दिए?
❖ नहीं, केवल खंडन पर्याप्त नहीं है; सबूत जरूरी है। - क्या न्यायिक समीक्षा लागू होती है?
❖ हाँ, लेकिन सीमित रूप से, केवल तब जब मूलभूत त्रुटियां हों। - क्या वैकल्पिक उपाय उपलब्ध था?
❖ हाँ, अपील का विकल्प नियमों के अंतर्गत उपलब्ध है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Jagdish Mandal v. State of Orissa [(2007) 14 SCC 517]
मामले का शीर्षक
Titu Badwal बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 7289 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री श्रीराम कृष्ण, श्री अमरजीत, श्री प्रभात कुमार सिंह
प्रत्युत्तरकर्ता (राज्य) की ओर से: स्टैंडिंग काउंसिल 11
निर्णय का लिंक
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