पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा

पटना हाई कोर्ट ने ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक अपील (LPA No. 433 of 2017) को खारिज करते हुए उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें एक सरकारी ठेकेदार IVRCL Ltd. की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द कर दिया गया था। राज्य सरकार द्वारा की गई यह अपील इस आधार पर खारिज की गई कि ब्लैकलिस्टिंग का कोई वैध कानूनी आधार मौजूद नहीं था।

मामला इस प्रकार था कि जल संसाधन विभाग, बिहार ने ठेकेदार को एक परियोजना सौंपी थी। ठेकेदार पर आरोप था कि उसने कार्य में देरी की, जिस कारण विभाग ने उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया। विभाग ने यह कार्रवाई स्टैंडर्ड बिड डॉक्यूमेंट (SBD) के क्लॉज 3.3 और 4.8 के आधार पर की।

कोर्ट ने पाया कि क्लॉज 3.3 केवल यह बताता है कि कोई ठेकेदार पहले से किसी सरकारी निकाय द्वारा “अयोग्य घोषित” न हो, लेकिन यह क्लॉज सरकार को किसी को ब्लैकलिस्ट करने का अधिकार नहीं देता।

क्लॉज 4.8 उन परिस्थितियों में लागू होता है जब ठेकेदार ने बिडिंग दस्तावेजों में गलत जानकारी दी हो, पिछला प्रदर्शन खराब रहा हो (जैसे कि काम छोड़ देना या गंभीर देरी), या फिर पहले भी अनावश्यक रूप से अधिक बोली लगाई हो। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये सभी शर्तें ठेकेदार के बोली लगाने से पहले के आचरण पर लागू होती हैं, न कि ठेका मिलने के बाद के कार्यों पर।

इस मामले में, ठेकेदार पर कोई झूठे दस्तावेज देने या पिछला खराब रिकॉर्ड होने का आरोप नहीं था। केवल मौजूदा कार्य में देरी हुई थी, जो क्लॉज 4.8 के दायरे में नहीं आता। अतः कोर्ट ने यह माना कि ब्लैकलिस्टिंग का कोई वैधानिक आधार नहीं था।

राज्य सरकार ने अपने बचाव में 25.11.2011 को जारी एक सर्कुलर का हवाला दिया, लेकिन वह ब्लैकलिस्टिंग के बाद जारी हुआ था और उसे पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता।

इन सब तथ्यों को देखते हुए, हाई कोर्ट ने पाया कि एकल पीठ का निर्णय बिल्कुल सही था और अपील खारिज कर दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला स्पष्ट करता है कि किसी भी ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट करने के लिए ठोस कानूनी आधार और वैध प्रावधान होना जरूरी है। केवल देरी या असंतोषजनक कार्य के आधार पर विभाग मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता जब तक कि वह अधिकार उसे नियमों या अनुबंध के तहत स्पष्ट रूप से प्राप्त न हो।

सरकारी अनुबंधों में निष्पक्षता और प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्णय महत्वपूर्ण है। यह ठेकेदारों को आश्वस्त करता है कि वे मनमाने दंड से सुरक्षित रहेंगे, वहीं विभागों को भी सख्ती से नियमों का पालन करना होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या क्लॉज 3.3 के तहत ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ❖ नहीं, यह केवल अयोग्यता से छूट प्रदान करता है, दंडात्मक नहीं है।
  • क्या क्लॉज 4.8 कार्य में देरी के आधार पर लागू होता है?
    ❖ नहीं, यह केवल बोली लगाने से पहले की स्थितियों पर लागू होता है।
  • क्या 2011 का सर्कुलर इस मामले में लागू था?
    ❖ नहीं, क्योंकि वह ब्लैकलिस्टिंग के बाद जारी किया गया था।
  • क्या एकल पीठ का आदेश सही था?
    ❖ हाँ, डिवीजन बेंच ने उसे पूरी तरह सही ठहराया।

मामले का शीर्षक

बिहार राज्य एवं अन्य बनाम IVRCL Ltd. (Infrastructure and Project Limited)

केस नंबर

LPA No. 433 of 2017 in CWJC No. 97 of 2012

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

राज्य की ओर से: श्री दिनेश महाराज, श्री आर. बी. प्रसाद यादव (AAG-11)
प्रतिवादी की ओर से: कोई उपस्थिति नहीं

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/9aadc245-e8fb-4ff6-8019-15bfbe80346f.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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