निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने यहां हुई आयकर विभाग की छापेमारी को अवैध बताया था। याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि विभाग द्वारा 7 नवम्बर 2008 को की गई तलाशी और जब्ती की कार्रवाई गैरकानूनी थी क्योंकि उसके पास कोई भी अघोषित संपत्ति नहीं थी और उसका संबंधित कंपनी से पहले ही संबंध टूट चुका था।
लेकिन अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता अब भी कंपनी के निदेशक के रूप में सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज था और वह उन कंपनियों के नेटवर्क से जुड़ा हुआ था जिनके खिलाफ बड़े पैमाने पर कर चोरी की जांच चल रही थी। विभाग ने तलाशी की अनुमति एक “संतोष टिप्पणी” (satisfaction note) के आधार पर प्राप्त की थी जिसमें स्पष्ट रूप से संबंधित जानकारी दर्ज थी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया कि वह चार साल पहले ही कंपनी से इस्तीफा दे चुका था और उसका कोई लेना-देना नहीं था। लेकिन विभाग ने रिकॉर्ड के आधार पर इसका खंडन किया और कहा कि याचिकाकर्ता का नाम अब भी निदेशक के तौर पर रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के वेबसाइट पर दर्ज था।
कोर्ट ने साफ किया कि आयकर अधिनियम की धारा 132 के तहत जब्त करने की प्रक्रिया तभी वैध मानी जाती है जब सक्षम अधिकारी के पास “विश्वास करने का कारण” हो कि कोई व्यक्ति कर संबंधी जानकारी छुपा रहा है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह यह देख सकती है कि कारण प्रासंगिक थे या नहीं, लेकिन यह जांच नहीं कर सकती कि वे कारण कितने मजबूत या पर्याप्त थे।
इस मामले में अदालत ने माना कि विभाग ने जो कारण रिकॉर्ड किए थे, वे प्रासंगिक थे और इसलिए तलाशी की प्रक्रिया कानून के दायरे में थी। याचिकाकर्ता द्वारा दावा किया गया कंपनी से इस्तीफा एक तथ्यात्मक मुद्दा था जिसे आयकर विभाग की सुनवाई में उठाया जा सकता है, लेकिन इस पर हाई कोर्ट की रिट याचिका में फैसला नहीं हो सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय दर्शाता है कि यदि आयकर विभाग के पास किसी व्यक्ति के खिलाफ पर्याप्त सूचना है कि वह कर चोरी कर रहा है या उसकी संपत्ति अघोषित है, तो विभाग वैध रूप से तलाशी और जब्ती कर सकता है।
यह फैसला खासकर उन मामलों में मार्गदर्शक बन सकता है जहां लोग बाद में यह कहकर कार्रवाई को चुनौती देते हैं कि वे कंपनी से अलग हो चुके थे। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि जब तक अधिकारी के पास भरोसेमंद रिकॉर्ड और कारण हों, कोर्ट उस पर हस्तक्षेप नहीं करेगी।
सरकार के लिए यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि टैक्स जांच की प्रक्रिया को अदालतों में केवल तकनीकी आधार पर रोका नहीं जा सकेगा, जब तक कि प्रक्रिया में कोई स्पष्ट गलती न हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या आयकर अधिनियम की धारा 132 के तहत की गई तलाशी और जब्ती अवैध थी?
❌ नहीं, कोर्ट ने इसे वैध और कानून के अनुरूप माना। - क्या हाई कोर्ट “संतोष टिप्पणी” में दर्ज कारणों की गहराई या पर्याप्तता की जांच कर सकता है?
❌ नहीं, कोर्ट केवल कारणों की प्रासंगिकता देख सकती है। - क्या याचिकाकर्ता का कंपनी से इस्तीफा तलाशी को अमान्य करता है?
❌ नहीं, यह एक विवादित तथ्य है जो अन्य प्रक्रियाओं में तय किया जा सकता है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- ITO बनाम Seth Bros., (1969) 2 SCC 324
- Pooran Mal बनाम Director of Inspection, (1974) 1 SCC 345
- Partap Singh बनाम Director of Enforcement, (1985) 3 SCC 72
- Director General of Income Tax बनाम Spacewood Furnishers Pvt. Ltd., (2015) 12 SCC 179
- Union of India बनाम Agarwal Iron Industries, (2014) 15 SCC 215
- Manish Maheshwari बनाम ACIT, (2007) 3 SCC 794
- K.S. Puttaswamy बनाम Union of India, (2017) 10 SCC 1
मामले का शीर्षक
Ajay Kumar Singh बनाम Director General of Investigation, Income Tax एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3792 of 2009
उद्धरण (Citation)– 2021(1) PLJR 415 2021 PLJR 1 4152020 SCC ONLINE PAT 24922021 BLJ 1 3402021 ITR 434 3522021 CTR 320 858
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री कृष्ण मोहन मिश्रा, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्रीमती अर्चना सिन्हा, अधिवक्ता — प्रतिवादी की ओर से
निर्णय का लिंक
MTUjMzc5MiMyMDA5IzEjTg==-FIozaeZPtMI=
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