पत्नी और बच्चे को ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश, पति की याचिका खारिज — पटना हाईकोर्ट का निर्णय

पत्नी और बच्चे को ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश, पति की याचिका खारिज — पटना हाईकोर्ट का निर्णय

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक ऐसे पति की याचिका खारिज कर दी, जिसने पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे को ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि निचली अदालत का फैसला कानून के अनुरूप था और पति को मुकदमे की कार्यवाही में भाग लेने के कई मौके दिए गए थे, जिन्हें उसने नजरअंदाज किया।

यह मामला वर्ष 2016 में बेगूसराय पारिवारिक न्यायालय में दायर हुआ था। पत्नी ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण की मांग की थी, जिसमें बताया गया कि शादी के बाद जब बेटा हुआ, तो पति और सास ने दहेज की मांग शुरू कर दी और उसे ज़हर देकर मारने की कोशिश की गई। इसके बाद पत्नी को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा और भाई उसे अपने मायके ले आए।

पत्नी ने बताया कि वह बेरोजगार हैं और बेटे की परवरिश अकेले कर रही हैं। पति रांची में हिंदाल्को कंपनी में नौकरी करते हैं और उनके पास अचल संपत्ति भी है। इसके बावजूद वह पत्नी और बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठा रहे थे।

पति मुकदमे के दौरान कुछ तारीखों पर उपस्थित हुए, लेकिन लगातार अनुपस्थित रहने के कारण उन्हें 21 दिसंबर 2017 को मुकदमे की सुनवाई से वंचित कर दिया गया। इसके बाद 12 जनवरी 2018 को पारिवारिक न्यायालय ने ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश पारित किया।

इस आदेश के विरुद्ध पति ने पटना हाईकोर्ट में अपील की कि उन्हें पर्याप्त सुनवाई का अवसर नहीं मिला और पत्नी के आत्मनिर्भर न होने की स्पष्ट बात नहीं कही गई। लेकिन हाईकोर्ट ने इन तर्कों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि पर्याप्त साक्ष्य और गवाहियों के आधार पर निर्णय दिया गया था।

अंततः, कोर्ट ने हिंदाल्को को निर्देश दिया कि वह पति के वेतन से बकाया राशि की कटौती कर कोर्ट में जमा कराए, ताकि पत्नी और बेटे को न्याय मिल सके।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय उन महिलाओं और बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जिन्हें विवाह के बाद उपेक्षा या उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पति सक्षम है और कमाई कर रहा है, तो वह पत्नी और बच्चों की जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। यह फैसला ऐसे मामलों में राहत पाने वाली महिलाओं को कानूनी शक्ति और भरोसा देता है। इसके साथ ही यह उन पुरुषों के लिए चेतावनी है जो मुकदमों में ढिलाई बरतते हैं और कोर्ट के आदेशों को हल्के में लेते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या पति को सुनवाई का पर्याप्त अवसर मिला था?
    • निर्णय: हाँ। कई तारीखों पर बुलाने के बावजूद पति अनुपस्थित रहे।
  • क्या पत्नी की आर्थिक स्थिति पर कोई स्पष्ट फैसला था?
    • निर्णय: हाँ। गवाहियों और आवेदन में स्पष्ट रूप से बताया गया कि पत्नी बेरोजगार और आर्थिक रूप से कमजोर हैं।
  • क्या ₹15,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की राशि उचित थी?
    • निर्णय: हाँ। पति की आय को देखते हुए यह राशि न्यायसंगत है।
  • क्या बकाया राशि वेतन से वसूल की जा सकती है?
    • निर्णय: हाँ। हिंदाल्को को निर्देश दिया गया कि वेतन से कटौती कर कोर्ट में जमा कराएं।

मामले का शीर्षक

Ranjan Kumar vs. Priti Kumari and Another

केस नंबर

Criminal Revision No. 337 of 2018

उद्धरण (Citation)

2020 (1) PLJR 487

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसनुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजीव कुमार, श्री राहुल पांडेय, श्री रंजीत कुमार मिश्रा
  • विपक्षी पक्ष की ओर से: श्री जय प्रकाश सिंह, श्री पंकज कुमार सिंह
  • राज्य की ओर से: श्री झारखंडी उपाध्याय (एपीपी)

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NyMzMzcjMjAxOCMxI04=-cwALZLUgFd4=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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