निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक ग्रामीण व्यक्ति को उसका वर्षों से लंबित भूमि अधिग्रहण मुआवज़ा भुगतान कराने का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता ने अपनी ज़मीन के अधिग्रहण के बदले ₹47,80,125 मुआवज़ा और ₹5,20,557 ब्याज (18% दर से) की मांग को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था। यह भूमि पूर्णिया ज़िले के दो गांवों में स्थित थी।
हालांकि सरकार की तरफ से यह दावा किया गया कि भूमि अधिग्रहण वर्ष 1988-89 में हुआ था, परंतु दस्तावेज़ों से स्पष्ट हुआ कि विधिवत अधिग्रहण 2011-12 में हुआ और ₹47,80,125 की मुआवज़ा राशि 27.05.2013 को निर्धारित की गई थी। याचिकाकर्ता को 20.06.2013 को मुआवज़ा लेने हेतु बुलाया गया था। इसी बीच, मुआवज़ा प्राप्त करने के हक़ को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ, जिसे 23.11.2013 को लोक अदालत में समझौते के माध्यम से निपटा दिया गया।
इसके बावजूद भी मुआवज़ा भुगतान नहीं किया गया। इसके बाद विशेष भूमि अधिग्रहण पदाधिकारी (कोशी परियोजना, सहरसा) और ज़िला भूमि अधिग्रहण पदाधिकारी (पूर्णिया) के बीच दायित्व को लेकर टालमटोल और पत्राचार का दौर शुरू हुआ। एक अधिकारी ने कहा कि राशि और अभिलेख स्थानांतरित कर दिए गए हैं, तो दूसरे अधिकारी ने इससे इनकार किया।
इस बीच, राज्य सरकार ने 31.03.2019 से सभी “विशेष भूमि अधिग्रहण कार्यालयों” को बंद करने का निर्णय ले लिया, जिससे स्थिति और जटिल हो गई।
न्यायालय ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का मुआवज़ा पाने का हक़ स्पष्ट है और इतने वर्षों बाद भी राशि का भुगतान न होना सरकारी तंत्र की उदासीनता को दर्शाता है। अदालत ने मुख्य सचिव, बिहार सरकार को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता से व्यक्तिगत रूप से मिलकर एक माह के भीतर पूरी मुआवज़ा राशि का भुगतान सुनिश्चित करें। साथ ही, इस देरी के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए जांच कराने का निर्देश भी दिया गया।
अंततः, न्यायालय ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को ₹50,000 अतिरिक्त हर्जाने के रूप में भुगतान करने का आदेश दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन सभी नागरिकों के लिए आशा की किरण है, जिनकी भूमि सरकार द्वारा अधिग्रहित की जाती है लेकिन समय पर मुआवज़ा नहीं मिलता। विशेष रूप से बिहार जैसे राज्यों में जहां ग्रामीणों को प्रशासनिक पेचिदगियों का सामना करना पड़ता है, यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि न्यायालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करेगा और अधिकार दिलाएगा।
सरकारी विभागों के लिए यह आदेश एक चेतावनी है कि आंतरिक समन्वय की कमी या विभागीय बहाने नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को नहीं दबा सकते। साथ ही, अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का भी मार्ग प्रशस्त हुआ है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- मुद्दा: क्या याचिकाकर्ता मुआवज़ा और ब्याज का हकदार है?
- निर्णय: हां, याचिकाकर्ता को विधिसम्मत मुआवज़ा और ब्याज मिलना चाहिए।
- मुद्दा: क्या विभागीय भ्रम के कारण मुआवज़ा रोका जा सकता है?
- निर्णय: नहीं, आंतरिक अव्यवस्था नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकती।
- मुद्दा: क्या देरी के लिए ज़िम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए?
- निर्णय: हां, मुख्य सचिव को जांच कर कार्रवाई करनी होगी।
- आदेश:
- मुख्य सचिव याचिकाकर्ता से मिलकर एक महीने में भुगतान सुनिश्चित करें।
- ज़िम्मेदार अधिकारियों की पहचान कर कार्रवाई हो।
- राज्य सरकार ₹50,000 याचिकाकर्ता को हर्जाने के रूप में दे।
मामले का शीर्षक
Kalicharan Kanth vs. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 11308 of 2014
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 502
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री शशि नाथ झा (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री चितरंजन सिन्हा, वरिष्ठ अधिवक्ता, PAAG 2 (राज्य की ओर से)
- श्रीमती रत्ना कुमारी, AC to PAAG 2 (राज्य की ओर से)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMTEzMDgjMjAxNCM4I04=-IKEeMzhepnQ=
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