पटना उच्च न्यायालय का फैसला: कर निर्धारण आदेश न्यायसंगत नहीं, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: कर निर्धारण आदेश न्यायसंगत नहीं, प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण फैसले में एक निजी कंसल्टेंसी फर्म और राज्य कर विभाग के बीच के विवाद का निपटारा किया। यह मामला वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (GST Act) के तहत एकतरफा कर निर्धारण आदेश और अपील की अस्वीकृति से जुड़ा था।

फर्म ने याचिका दाखिल कर यह कहा कि 31 अगस्त 2019 को जारी कर निर्धारण आदेश बिना किसी पूर्व सूचना और सुनवाई के जारी किया गया, जिससे उनके साथ न्याय नहीं हुआ। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने 23 जून 2020 को अपील दाखिल की थी, लेकिन अपील को देरी के आधार पर खारिज कर दिया गया।

न्यायालय ने पाया कि COVID-19 महामारी के कारण समय-सीमा में देरी हुई थी और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिए गए suo motu मामले (In Re: Cognizance for Extension of Limitation) में यह स्पष्ट किया गया था कि महामारी के दौरान सभी न्यायिक कार्यवाहियों की समय-सीमा बढ़ा दी जाएगी। अतः अपील को खारिज करना गलत था।

इसके अलावा, कर निर्धारण आदेश GST अधिनियम की धारा 62(1) के तहत पारित किया गया था, जिसमें करदाता द्वारा रिटर्न दाखिल न करने की स्थिति में विभाग को “बेस्ट जजमेंट” के आधार पर कर निर्धारण करने का अधिकार है। लेकिन इस मामले में आदेश से वित्तीय देनदारी तय हुई थी, जिसका नागरिक प्रभाव था, इसलिए याचिकाकर्ता को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य था।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि वह पहले ही 45% राशि जमा कर चुका है और अतिरिक्त ₹3 लाख की राशि जमा करने को तैयार है। न्यायालय ने यह प्रस्ताव स्वीकार करते हुए मामला पुनः विचार के लिए कर निर्धारण प्राधिकारी को भेज दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय बताता है कि कर विभाग को भी कानून के तहत निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से कार्य करना होता है। जब किसी कर आदेश का प्रभाव नागरिकों की जेब पर पड़ता है, तो बिना सुनवाई के आदेश पारित नहीं किया जा सकता। यह फैसला उन करदाताओं के लिए राहतकारी है, जिन्हें महामारी के कारण अपील दाखिल करने में देरी हुई थी।

सरकार के लिए यह निर्णय यह सीख देता है कि कर निर्धारण करते समय नियमों और न्यायिक सिद्धांतों का पालन किया जाए ताकि करदाता का विश्वास बना रहे।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या COVID-19 के दौरान अपील की देरी को स्वीकार किया जा सकता है?
    ✅ हां, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार समय-सीमा बढ़ा दी गई थी।
  • क्या बिना सुनवाई के पारित कर निर्धारण आदेश वैध था?
    ❌ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था।
  • क्या याचिकाकर्ता को कर निर्धारण पर पुनः सुनवाई का अधिकार है?
    ✅ हां, न्यायालय ने मामला पुनर्विचार के लिए भेज दिया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • In Re: Cognizance for Extension of Limitation, Suo Motu Writ (Civil) No. 3 of 2020, सर्वोच्च न्यायालय

मामले का शीर्षक
Bihar Risk Management Consultancy Pvt. Ltd. बनाम राज्य बिहार एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 2097 of 2021

उद्धरण (Citation)– 2021(2) PLJR 135

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री गौतम कुमार केजरीवाल — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री ललित किशोर (महाधिवक्ता) और श्री विकास कुमार — प्रतिवादीगण की ओर से

निर्णय का लिंक
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“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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