पटना हाई कोर्ट का फैसला: अस्थायी सरकारी कर्मियों की मृत्यु पर परिवार को मिलेगा पेंशन लाभ

पटना हाई कोर्ट का फैसला: अस्थायी सरकारी कर्मियों की मृत्यु पर परिवार को मिलेगा पेंशन लाभ

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी अस्थायी स्थिति में सेवा के दौरान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तो उसके परिवार को परिवार पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ मिलेंगे। यह फैसला उन हजारों अस्थायी कर्मचारियों के लिए राहत बनकर आया है, जो नियमित नहीं हो सके थे, लेकिन वर्षों तक सरकारी सेवा में रहे।

इस मामले में मृत कर्मचारी एक डाक विभाग के कर्मचारी थे, जिन्हें पहले एक “कैजुअल लेबर” के रूप में रखा गया था और बाद में 1992 में अस्थायी दर्जा दे दिया गया। वे 2007 में सेवा के दौरान ही निधन हो गए। उनकी पत्नी ने पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया, जिसे विभाग ने यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि वे नियमित कर्मचारी नहीं थे।

इसके खिलाफ उन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल में याचिका दाखिल की, जहां उन्हें राहत मिली। लेकिन सरकार ने ट्राइब्यूनल के आदेश को चुनौती देते हुए पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की।

हाई कोर्ट ने नियमों की विस्तार से व्याख्या करते हुए कहा कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 2 के अनुसार अस्थायी कर्मचारियों को पेंशन से बाहर नहीं रखा गया है। इसके अलावा, 1965 के केंद्रीय सिविल सेवा (अस्थायी सेवा) नियमों के नियम 10(2) के अनुसार, यदि कोई अस्थायी कर्मचारी सेवा में रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसके परिवार को वही पेंशन और मृत्यु अनुदान (death gratuity) मिलेगा जो एक स्थायी कर्मचारी के परिवार को मिलता है।

कोर्ट ने सरकार की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि नियमों की कुछ तकनीकी विसंगतियों के चलते लाभ नहीं मिल सकता। कोर्ट ने “कल्याणकारी व्याख्या” (Beneficial Construction) का सिद्धांत अपनाते हुए कहा कि ऐसे नियमों को व्यापक और लाभकारी तरीके से पढ़ा जाना चाहिए जिससे हितग्राहियों को लाभ मिले।

अंततः कोर्ट ने ट्राइब्यूनल के आदेश को सही ठहराया और डाक विभाग को निर्देश दिया कि वह मृत कर्मचारी की पत्नी को तीन महीने के भीतर सभी लंबित लाभ 8% वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान करे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन हजारों अस्थायी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल है जो वर्षों तक सरकारी सेवा में रहे लेकिन नियमित नहीं हो सके। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे अनेक कर्मचारी हैं जिनकी सेवाएं ‘अस्थायी’ कहकर दर्ज की गईं और उन्हें सेवा-सम्बंधित लाभ नहीं मिले।

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकार कल्याणकारी कानूनों को तकनीकी बहानों से नहीं टाल सकती। इससे यह भी संकेत गया है कि नियमों की व्याख्या करते समय न्यायालय आम आदमी के हित को सर्वोपरि मानता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या अस्थायी कर्मचारी पेंशन नियमों से बाहर हैं?
    • नहीं, नियम 2 में अस्थायी कर्मचारियों को बाहर नहीं किया गया है।
  • क्या अस्थायी कर्मचारी की मृत्यु पर परिवार को पेंशन और ग्रेच्युटी मिलती है?
    • हाँ, नियम 10(2), 1965 के अनुसार परिवार को वैसा ही लाभ मिलेगा जैसा स्थायी कर्मचारियों को मिलता है।
  • क्या तकनीकी विसंगतियों के कारण लाभ रोका जा सकता है?
    • नहीं, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कल्याणकारी नियमों की व्याख्या लाभ देने के नजरिए से होनी चाहिए।
  • क्या ट्राइब्यूनल का आदेश सही था?
    • हाँ, हाई कोर्ट ने उसे बरकरार रखा।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • CIT बनाम Hindustan Bulk Carriers
  • Venkataramana Devaru बनाम State of Mysore, AIR 1958 SC 255
  • Calcutta Gas Company बनाम State of West Bengal, AIR 1962 SC 1044
  • Commissioner of Sales Tax बनाम Radha Krishna, (1979) 2 SCC 249
  • Sirsilk Ltd. बनाम Govt. of Andhra Pradesh, AIR 1964 SC 160

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India बनाम Prabahakran Vijay Kumar, (2008) 9 SCC 527
  • Vijay L. Mehrotra बनाम State of U.P., (2001) 9 SCC 687

मामले का शीर्षक

The Union Of India and Ors. बनाम Meena Devi @ Meena Kunwar

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7760 of 2015

उद्धरण (Citation)- 2023 (1) PLJR 506

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति पुर्णेन्दु सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री के. एन. सिंह (ASG-I), श्री राकेश कुमार सिन्हा (CGC)
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री जयंत कुमार कर्ण, श्री हेमंत कुमार कर्ण, श्री सुजीत कुमार

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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