निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक पिता द्वारा दायर हैबियस कॉर्पस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने नाबालिग बेटे की कस्टडी की मांग की थी। यह बच्चा उसकी मां की आत्महत्या के बाद से नाना-नानी के साथ रह रहा है। पिता का तर्क था कि वह बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक है और उसे अपने बेटे की कस्टडी मिलनी चाहिए। लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि किसी भी अभिभावक की कानूनी स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण है – बच्चे का कल्याण।
याचिकाकर्ता ने यह याचिका इसलिए दायर की थी ताकि अदालत नाना-नानी को निर्देश दे कि वे बच्चा तुरंत कोर्ट में पेश करें और उसकी कस्टडी पिता को सौंपी जाए। उन्होंने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 और 13 का हवाला देते हुए खुद को प्राकृतिक संरक्षक बताया।
पत्नी की मौत 2016 में आत्महत्या के रूप में हुई थी, और उसी साल याचिकाकर्ता पर दहेज हत्या (धारा 304-बी) और आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306) का केस दर्ज हुआ था। हालांकि उन्हें बाद में बेल मिल गई थी, लेकिन मामला अब भी लंबित है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे की वर्तमान देखरेख उसके नाना-नानी कर रहे हैं, और यह न तो अवैध है और न ही अनुचित। कोर्ट को बच्चे की परवरिश को लेकर कोई शिकायत या अनुचित व्यवहार नहीं दिखा। इसके अलावा, याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई ठोस पारिवारिक ढांचा नहीं था जो बच्चे की देखभाल में मदद करता।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता की पत्नी ने अपने जीवनकाल में यह इच्छा जताई थी कि बच्चे की परवरिश उसके मायके वाले करें। ऐसे में अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहे तो उपयुक्त सिविल न्यायालय में संरक्षकता के लिए याचिका दायर कर सकता है, लेकिन फिलहाल की स्थिति में हस्तक्षेप की कोई ज़रूरत नहीं है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय साफ करता है कि किसी भी बच्चे की कस्टडी में ‘बेस्ट इंटरेस्ट ऑफ चाइल्ड’ यानी बच्चे का सर्वोत्तम हित सबसे अहम होता है। केवल पिता या माता होने से किसी को अपने आप कस्टडी नहीं मिलती। विशेषकर जब माता-पिता में से एक पर आपराधिक मामला लंबित हो, तो कोर्ट और भी सतर्क होता है।
यह फैसला उन मामलों में मार्गदर्शक बन सकता है जहां किसी माता या पिता की मृत्यु के बाद बच्चा नाना-नानी या दादा-दादी के पास रह रहा हो और दूसरा अभिभावक कस्टडी चाहता हो।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या हैबियस कॉर्पस याचिका नाना-नानी द्वारा रखे गए बच्चे की कस्टडी के लिए दायर की जा सकती है?
✔ हां, पर तभी जब कस्टडी अवैध हो। इस मामले में कस्टडी वैध थी। - क्या पिता को प्राकृतिक संरक्षक के रूप में बच्चे की कस्टडी मिलनी चाहिए?
✔ कोर्ट ने कहा कि बच्चे का हित सर्वोपरि है, और पिता पर लंबित आपराधिक मामला होने के कारण कस्टडी नहीं दी जा सकती। - क्या नाना-नानी की कस्टडी अवैध मानी जा सकती है?
✔ नहीं, कोर्ट ने कहा कि यह वैध और बच्चे के हित में है। - याचिकाकर्ता को आगे क्या उपाय सुझाए गए?
✔ संरक्षकता के लिए उपयुक्त सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल करने की छूट दी गई।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Tejaswini Gaud v. Shekhar Tewari, Cr. Appeal No. 838 of 2019
- Gohar Begam v. Suggi Alias Nazma Begam, 1960 SCR (1) 597
- Capt. Dushyant Somal v. Smt. Sushma Somal, (1981) 2 SCC 277
- Syed Saleemuddin v. Dr. Rukhsana, Appeal (crl.) 520 of 2001
- Surya Vadanan v. State of Tamil Nadu, Cr. Appeal No. 395 of 2015
- Ruchika Abbi v. State of NCT Delhi, Cr. Appeal No. 1683 of 2015
- Mrs. Kanika Goeal v. State of Delhi, Cr. Appeal No. 635-640 of 2018
- Puran Chand v. Commissioner of Police, 1994 (30) DRJ 13
- Marggaeate Maria v. Dr. Chacko Pulparampil, AIR 1970 Ker 1
- Amol Ramesh Pawar v. State of Maharashtra, Cr. Writ Petition No. 1698 of 2013
मामले का शीर्षक
Criminal Writ Jurisdiction Case No.1609 of 2019
केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No.1609 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 545
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अंसुल, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्रीमती सलमा नाज़, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री प्रभु नारायण शर्मा, सहायक महाधिवक्ता – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjMTYwOSMyMDE5IzEjTg==-gpM–am1–mwCNaCc=
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