सरकारी कार्य में विफल ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग बरकरार: पटना हाई कोर्ट का फैसला

सरकारी कार्य में विफल ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग बरकरार: पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक निजी निर्माण कंपनी को बिहार सरकार द्वारा तीन वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट किए जाने के आदेश को सही ठहराया है। यह ठेकेदार ग्रामीण कार्य विभाग के एक ठेके को समय पर पूरा करने में विफल रहा था और कई चेतावनियों के बावजूद परियोजना में कोई ठोस प्रगति नहीं दिखाई गई थी। याचिकाकर्ता ने विभाग के ब्लैकलिस्टिंग आदेश और इसके खिलाफ अपील के खारिज होने को चुनौती दी थी।

सरकारी ठेका 11 अक्टूबर 2022 को दिया गया था और इसे 10 अप्रैल 2024 तक पूरा करना था। हालांकि, तय समय-सारणी के बावजूद, कंपनी ने निर्माण कार्य की शुरुआत समय पर नहीं की। विभाग ने कई बार चेतावनी दी कि यदि काम पूरा नहीं हुआ तो ठेका रद्द कर दिया जाएगा और भुगतान की गई राशि वसूली जाएगी।

13 महीनों के भीतर केवल 10% कार्य ही पूरा हो सका। इसके बाद विभाग ने ठेका रद्द कर दिया, बकाया राशि की गणना की और वसूली की प्रक्रिया शुरू की। याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि उसने अनुबंध की शर्तों को सही से नहीं समझा और तय दरों का विरोध किया, लेकिन कोर्ट ने इसे “भोलेपन” की संज्ञा दी और अस्वीकार कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक धन से होने वाले कार्यों में अनुशासन और समय-पालन जरूरी है। विभाग द्वारा ब्लैकलिस्ट करने से पहले पर्याप्त नोटिस और अवसर दिया गया था, और प्रक्रिया पूरी तरह न्यायोचित थी।

चूंकि याचिकाकर्ता ने ठेका रद्द करने और राशि की वसूली को अदालत में चुनौती नहीं दी थी, इसलिए कोर्ट ने उस पर कोई टिप्पणी नहीं की और केवल ब्लैकलिस्टिंग के आदेश पर निर्णय दिया। अंततः, अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला स्पष्ट करता है कि सरकारी कार्यों में लगे ठेकेदारों को अनुबंध की शर्तों का सख्ती से पालन करना होगा। बार-बार चेतावनी के बावजूद अगर कार्य समय पर पूरा नहीं होता, तो सरकार को ब्लैकलिस्ट करने का पूरा अधिकार है – बशर्ते प्रक्रिया न्यायसंगत हो। यह निजी कंपनियों के लिए चेतावनी है कि केवल अनुबंध लेने से ज़िम्मेदारी पूरी नहीं होती, उसे निभाना भी अनिवार्य है।

सरकार के लिए यह फैसला एक अहम उदाहरण है कि वह कार्यान्वयन में अनुशासन बनाए रखते हुए ज़िम्मेदारियों को मजबूती से लागू कर सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या याचिकाकर्ता की ब्लैकलिस्टिंग उचित थी? ✔ हां, क्योंकि उसने कार्य को समय पर पूरा नहीं किया और चेतावनियों का पालन नहीं किया।
  • क्या याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिया गया था? ✔ हां, विभाग ने नोटिस जारी किया और उसका उत्तर भी देखा।
  • क्या हाई कोर्ट को प्रशासनिक निर्णय में हस्तक्षेप करना चाहिए? ✔ नहीं, क्योंकि कार्रवाई प्रक्रिया अनुसार और कानून के दायरे में की गई थी।
  • क्या अनुबंध की शर्तें न समझ पाना वैध बचाव था? ✔ नहीं, कोर्ट ने इसे भोलेपन का मामला बताया और कानूनी बचाव नहीं माना।

मामले का शीर्षक
JDM Engineering and Construction Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.2222 of 2025

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सार्थी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री श्रीराम कृष्णा, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अमरजीत, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री प्रभात कुमार सिंह, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अजीत कुमार, अधिवक्ता – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/50fd9454-bc9b-4b96-b77e-67c04d69dc0a.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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