निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक व्यापारी द्वारा दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने वर्ष 2018–19 के लिए उसके खिलाफ पारित किए गए टैक्स असेसमेंट आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) और बिहार वस्तु एवं सेवा कर (BGST) अधिनियम के तहत दिया गया था।
व्यापारी की ओर से कहा गया कि उसकी जीएसटी रिटर्न—खासकर GSTR-1, GSTR-3B, GSTR-2A और GSTR-9—में जो अंतर था, वह एक क्लेरिकल या टाइपिंग की गलती थी। उसने कहा कि अंतिम वार्षिक रिटर्न (GSTR-9) में सही आंकड़े प्रस्तुत किए गए थे, और असेसिंग ऑफिसर ने उसकी बातों और दस्तावेज़ों को नहीं सुना।
सरकार की ओर से बताया गया कि व्यापारी ने करीब ₹4.34 करोड़ की टर्नओवर को छिपाया और नियमों के विरुद्ध इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा किया। जब उसे कारण बताओ नोटिस (Show Cause Notice) भेजा गया, तो उसने कोई जवाब नहीं दिया। इस वजह से टैक्स, ब्याज और जुर्माने मिलाकर ₹44.42 लाख की मांग की गई।
कोर्ट ने पाया कि व्यापारी को कारण बताओ नोटिस भेजा गया था, लेकिन उसने न तो उसका जवाब दिया और न ही सही दस्तावेज प्रस्तुत किए। अपील के दौरान भी व्यापारी अपनी बात को साबित करने में विफल रहा।
इससे पहले के एक मामले M/S Aastha Enterprises बनाम बिहार राज्य में कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि अगर विक्रेता सरकार को टैक्स जमा नहीं करता है, तो खरीदार को ITC का लाभ नहीं दिया जा सकता—even अगर खरीदार के पास बिल हो।
कोर्ट ने माना कि ना तो प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी हुई है और ना ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है। इसलिए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी और व्यापारी को सलाह दी कि वह उपलब्ध वैकल्पिक उपाय—जैसे GST ट्राइब्यूनल में अपील—का उपयोग करे।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन सभी व्यापारियों के लिए चेतावनी है जो जीएसटी रिटर्न दाखिल करते समय लापरवाही बरतते हैं। विभिन्न रिटर्न फॉर्म—जैसे GSTR-1, 3B, 2A और 9—के आंकड़ों में मेल होना ज़रूरी है। गलतियाँ, चाहे जानबूझकर हों या गलती से, टैक्स, ब्याज और जुर्माने का कारण बन सकती हैं।
यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा तभी मान्य होगा जब उसका मिलान सरकार के रिकॉर्ड (GSTR-2A) से हो। केवल बिल दिखाकर ITC नहीं लिया जा सकता, खासकर अगर विक्रेता ने टैक्स जमा नहीं किया हो।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई कारण बताओ नोटिस का जवाब नहीं देता, तो फिर कोर्ट की शरण में आने से पहले उसे वैकल्पिक उपाय अपनाने चाहिए। सीधे हाई कोर्ट की रिट याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या असेसमेंट ऑर्डर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है?
➤ नहीं; व्यापारी को नोटिस दिया गया था लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। - अगर विक्रेता ने टैक्स जमा नहीं किया, तो क्या खरीदार ITC का दावा कर सकता है?
➤ नहीं; कोर्ट ने कहा कि यह वैध नहीं है, भले ही खरीदार ने भुगतान किया हो। - क्या असेसमेंट या अपीलीय आदेश में कोई वैधानिक त्रुटि थी?
➤ नहीं; दोनों आदेश कानूनी रूप से उचित माने गए। - क्या इस मामले में रिट याचिका उचित थी?
➤ नहीं; GST ट्राइब्यूनल जैसे वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- D.Y. Beathel Enterprises बनाम स्टेट टैक्स ऑफिस, मद्रास हाई कोर्ट
- Bharat Aluminium Company बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- M/S Aastha Enterprises बनाम बिहार राज्य, CWJC No.10395 of 2023
मामले का शीर्षक
M/s Suraj Agency बनाम भारत सरकार एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No.3595 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री मदन कुमार, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
डॉ. कृष्णानंदन सिंह (ASGI), श्री अंशुमान सिंह, श्री शिवादित्य धारी सिन्हा – भारत सरकार की ओर से
श्री विकास कुमार (SC-11) – बिहार राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
21e74afd-ac31-4829-916b-4c2a78b29ecc.pdf
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”