ठेकेदार को बिना स्पष्ट चेतावनी के 15 साल की ब्लैकलिस्टिंग: पटना हाईकोर्ट ने पुनः विचार का निर्देश दिया

ठेकेदार को बिना स्पष्ट चेतावनी के 15 साल की ब्लैकलिस्टिंग: पटना हाईकोर्ट ने पुनः विचार का निर्देश दिया

निर्णय की सरल व्याख्या

इस मामले में याचिकाकर्ता एक क्लास-I ठेकेदार था, जिसे बिहार सरकार के पथ निर्माण विभाग द्वारा सड़क निर्माण कार्य सौंपा गया था। विभाग ने आरोप लगाया कि ठेकेदार द्वारा निर्माण कार्य ठीक से नहीं किया गया और कई स्थानों पर सड़क की मोटाई तय मापदंड से कम पाई गई। इस आधार पर विभाग ने ठेकेदार को 15 वर्षों के लिए काली सूची (ब्लैकलिस्ट) में डाल दिया।

ठेकेदार ने इस कार्रवाई को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उसका तर्क था कि विभाग द्वारा दिया गया कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज नोटिस) कानून के अनुसार उचित नहीं था। उस नोटिस में यह स्पष्ट नहीं किया गया था कि यदि ठेकेदार का जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया, तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी — जैसे कि ब्लैकलिस्टिंग। ऐसे नोटिस को कानून में वैध नहीं माना जाता।

ठेकेदार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले Gorkha Security Services बनाम दिल्ली सरकार [(2014) 9 SCC 105] का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था कि अगर किसी को कारण बताओ नोटिस दिया जाता है, तो उसमें दो बातें स्पष्ट होनी चाहिए: (1) किन कारणों से कार्रवाई की जा रही है, और (2) क्या सजा या कार्रवाई की जा सकती है। बिना इन बातों के नोटिस देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

पटना हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि नोटिस में सीधे “ब्लैकलिस्टिंग” शब्द का प्रयोग नहीं किया गया, लेकिन उसमें यह जरूर लिखा था कि बिहार कांट्रैक्टर्स रजिस्ट्रेशन नियमावली, 2007 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि नोटिस में कार्रवाई का संकेत पर्याप्त रूप से दिया गया था और इसलिए नोटिस को अवैध नहीं कहा जा सकता।

हालांकि, कोर्ट ने ठेकेदार के दूसरे तर्क को स्वीकार किया कि 15 वर्षों की ब्लैकलिस्टिंग सजा बहुत अधिक है, जबकि निर्माण में दोष केवल तीन स्थानों पर पाए गए थे। इसके अलावा, ठेकेदार ने यह भी कहा कि निरीक्षण (inspection) मानसून के बाद उसकी गैर-हाजिरी में किया गया था, जिससे रिपोर्ट पर सवाल उठते हैं।

इन बातों को देखते हुए कोर्ट ने खुद ब्लैकलिस्टिंग को रद्द नहीं किया, लेकिन ठेकेदार को अपील करने का मौका दिया। कोर्ट ने आदेश दिया कि यदि ठेकेदार विभागीय सचिव के समक्ष अपील दायर करता है, तो सचिव पूरे मामले पर निष्पक्ष और व्यापक दृष्टिकोण से विचार करेंगे और 60 दिनों के भीतर उचित आदेश पारित करेंगे। साथ ही, सचिव यह भी तय करेंगे कि जब तक इससे संबंधित एक अन्य ट्रिब्यूनल केस (मामला संख्या 129/2009) का फैसला नहीं हो जाता, तब तक ब्लैकलिस्टिंग की कार्रवाई स्थगित रखी जाए या नहीं।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला सरकारी विभागों के लिए एक चेतावनी है कि किसी व्यक्ति या संस्था पर कठोर कार्रवाई करने से पहले उसे पूरी तरह से सूचित किया जाए। विशेषकर जब ब्लैकलिस्टिंग जैसी गंभीर सजा दी जाती है, तो कारण बताओ नोटिस में यह साफ-साफ लिखा होना चाहिए कि यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो क्या सजा हो सकती है।

यह फैसला उन ठेकेदारों और कंपनियों के लिए राहतदायक है जो सरकारी टेंडर में हिस्सा लेते हैं और जिनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अगर विभागीय कार्रवाई असमान या अनुचित हो, तो उसके खिलाफ न्यायालय में अपील की जा सकती है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या कारण बताओ नोटिस वैध था, जबकि उसमें ब्लैकलिस्टिंग की स्पष्ट चेतावनी नहीं दी गई थी?
    हां — नोटिस में नियमावली का जिक्र था, जिससे कार्रवाई का संकेत मिल गया था।
  • क्या 15 साल की ब्लैकलिस्टिंग एक छोटी गलती के लिए अनुपातहीन सजा थी?
    हां — कोर्ट ने इसे अनुचित माना और पुनर्विचार का निर्देश दिया।
  • क्या विभाग को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए?
    हां — कोर्ट ने Gorkha Security Services केस का हवाला देते हुए इसे जरूरी बताया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Gorkha Security Services बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य, (2014) 9 SCC 105

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Gorkha Security Services बनाम दिल्ली सरकार एवं अन्य, (2014) 9 SCC 105

मामले का शीर्षक
Star Build Max Pvt. Limited बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
CWJC No. 1127 of 2020

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 555

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री बिंध्याचल सिंह, अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
  • श्री कुंदन कुमार, अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
  • श्री रंजीत कुमार, अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
  • श्री चित्रंजन सिन्हा (PAAG 2) (प्रत्युत्तरकर्ताओं की ओर से)

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTEyNyMyMDIwIzEjTg==-FmMfocU0gAQ=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News