निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के पूर्व सहायक उप-निरीक्षक की सेवा से बर्खास्तगी को वैध ठहराया है। याचिकाकर्ता ने दूसरी शादी करने और विभागीय जांच के दौरान जाली दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के कारण बर्खास्त किया गया था।
यह मामला तब शुरू हुआ जब याचिकाकर्ता, जो मणिपुर के इंफाल में तैनात थे, ने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए एक महिला कांस्टेबल (जो स्वयं CRPF में कार्यरत थी) से दूसरी शादी कर ली। पहली पत्नी ने इस बारे में शिकायत की, जिसके बाद विभागीय जांच शुरू हुई।
जांच के दौरान यह सामने आया कि याचिकाकर्ता ने फर्जी दस्तावेज पेश किए ताकि वह खुद को निर्दोष साबित कर सकें। जांच अधिकारी ने सभी आरोपों को प्रमाणित पाया और याचिकाकर्ता को दोषी ठहराते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया। उन्होंने इस फैसले के खिलाफ पहले अपील, फिर पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन दोनों खारिज हो गईं।
इसके बाद उन्होंने पटना हाई कोर्ट में एक रिट याचिका (CWJC No. 8078 of 2007) दायर की, जिसे एकल न्यायाधीश ने 2014 में खारिज कर दिया। इस फैसले को चुनौती देने के लिए उन्होंने वर्तमान पत्र-पत्रिका अपील (LPA No. 1707 of 2017) दायर की।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि पहली पत्नी ने खुद एक हलफनामा देकर दूसरी शादी की अनुमति देने की बात कही थी। इसलिए इसे एक सहमति-आधारित विवाह माना जाना चाहिए। लेकिन खंडपीठ ने यह दलील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि भले ही पहली पत्नी ने सहमति दी हो, लेकिन जीवित पत्नी के रहते दूसरी शादी करना सेवा नियमों का उल्लंघन है और यह अनुशासनात्मक अपराध है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि विभागीय जांच में जाली दस्तावेज़ देना एक स्वतंत्र और गंभीर अपराध है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
चूंकि न तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ था और न ही प्रक्रिया में कोई त्रुटि, इसलिए कोर्ट ने अपील को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि सरकारी और अर्धसैनिक सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों से उच्च नैतिक और व्यक्तिगत आचरण की अपेक्षा की जाती है। व्यक्तिगत जीवन के निर्णय — जैसे दूसरी शादी — सेवा अनुशासन पर प्रभाव डाल सकते हैं, विशेषकर जब वे नियमों के विरुद्ध हों।
यह फैसला यह भी दर्शाता है कि विभागीय जांच के दौरान गलत जानकारी या जालसाजी को गंभीरता से लिया जाएगा और इसके लिए सेवा से निष्कासन जैसी कठोर कार्रवाई की जा सकती है।
सरकारी सेवकों के लिए यह एक स्पष्ट संकेत है कि व्यक्तिगत और पेशेवर आचरण में पारदर्शिता और ईमानदारी अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या जीवित पत्नी की सहमति से दूसरी शादी सेवा नियमों के अनुसार मान्य है?
➤ नहीं; सेवा नियमों के अनुसार यह कदाचार है, चाहे पहली पत्नी की सहमति हो या नहीं। - क्या विभागीय जांच में जाली दस्तावेज देना अलग से दंडनीय अपराध है?
➤ हाँ; यह गंभीर अनुशासनात्मक उल्लंघन है। - क्या प्रक्रिया या प्राकृतिक न्याय का कोई उल्लंघन हुआ?
➤ नहीं; कोर्ट ने पाया कि सभी प्रक्रिया न्यायसंगत और विधिपूर्वक पूरी हुई।
मामले का शीर्षक
Binod Kumar Singh बनाम Union of India एवं अन्य
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 1707 of 2017
(In CWJC No. 8078 of 2007)
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 625
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति हेमंत कुमार श्रीवास्तव
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अरुण कुमार और श्री निर्मल कुमार सिन्हा (नं. 3) — याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री मनोज कुमार सिंह (C.G.C.) — प्रतिवादी यूनियन ऑफ इंडिया की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMxNzA3IzIwMTcjMSNO-9XvVDDbdsGw=
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