निर्णय की सरल व्याख्या
इस मामले में याचिकाकर्ता ने 2004 में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आदेश को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी पूर्व पत्नी (विपक्षी संख्या 2) को ₹1,500 प्रतिमाह और अपनी नाबालिग बेटी (विपक्षी संख्या 3) को ₹500 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था।
याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क था कि उसने दिल्ली की एक अदालत से 2003 में “परित्याग” के आधार पर तलाक प्राप्त कर लिया है, इसलिए अब पत्नी को भरण-पोषण की पात्रता नहीं है। साथ ही उसने यह भी कहा कि पत्नी अब “न्यायमित्र” के रूप में कार्य कर रही है और ₹7,000 प्रतिमाह कमा रही है।
उधर, पत्नी स्वयं अदालत में उपस्थित हुई और तर्क दिया कि तलाक के बावजूद, यदि पत्नी ने दोबारा विवाह नहीं किया है और वह स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती है, तो वह CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार बनी रहती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के Rohtash Singh बनाम Ramendri (2000) 3 SCC 180 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यही बात स्पष्ट की गई थी।
पटना उच्च न्यायालय ने पत्नी की दलील को सही माना और स्पष्ट किया कि CrPC की धारा 125(1) की व्याख्या के अनुसार, तलाकशुदा महिला भी “पत्नी” की श्रेणी में आती है और यदि उसने दोबारा विवाह नहीं किया है और आत्मनिर्भर नहीं है, तो वह भरण-पोषण की पात्र बनी रहती है।
अदालत ने यह भी कहा:
- पत्नी और उसकी बेटी के पास उस समय कोई आय का स्रोत नहीं था।
- भले ही अब ₹7,000 की आमदनी हो, यह 2004 से बकाया भरण-पोषण के भुगतान को रोकने का आधार नहीं बन सकता।
- याचिकाकर्ता ने अब तक एक पैसा भी नहीं दिया है, जिससे उसे आर्थिक लाभ हुआ है।
इसलिए अदालत ने याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को चार महीने में सभी बकाया राशि चुकाने का आदेश दिया, साथ ही भविष्य के लिए नियमित भुगतान जारी रखने का निर्देश भी दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिन्हें तलाक मिल चुका है और वे खुद का भरण-पोषण नहीं कर सकतीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि “परित्याग” के आधार पर तलाक मिलना भी पत्नी को भरण-पोषण से वंचित नहीं कर सकता।
इस फैसले से स्पष्ट होता है कि महिला के पुनर्विवाह न करने और आत्मनिर्भर न होने की स्थिति में उसे पति से सहायता मिलती रहनी चाहिए। यह महिलाओं के लिए न्यायिक सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है।
सरकारी और न्यायिक संस्थानों के लिए भी यह एक संदेश है कि भरण-पोषण के आदेशों को तेजी से लागू किया जाए, और महिलाओं को न्याय दिलाने में वर्षों न लगें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या तलाकशुदा महिला CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार है?
- हां, यदि उसने पुनर्विवाह नहीं किया है और आत्मनिर्भर नहीं है।
- क्या “परित्याग” के आधार पर तलाक मिलने से महिला का भरण-पोषण अधिकार समाप्त हो जाता है?
- नहीं, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह कोई बाधा नहीं है।
- क्या वर्तमान ₹7,000 आय भरण-पोषण को नकारने का आधार है?
- नहीं, यह राशि अपर्याप्त है और पुराने बकाये को रोकने का कारण नहीं बन सकती।
- क्या याचिकाकर्ता द्वारा 15 वर्षों से कोई भुगतान न करना अनुचित है?
- हां, कोर्ट ने इसे अनुचित लाभ कहा और बकाया चुकाने का आदेश दिया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Rohtash Singh बनाम Ramendri, (2000) 3 SCC 180
- Archita @ Anu Seth बनाम Sunil Seth, CRL.REV.P. 455 of 2015 (दिल्ली उच्च न्यायालय)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Rohtash Singh बनाम Ramendri, (2000) 3 SCC 180
- Sukumar Dhibar बनाम Anjali Dasi, 1983 Cri LJ 36 (कोलकाता उच्च न्यायालय)
- Capt. Ramesh Chander Kaushal बनाम Veena Kaushal, (1978) 4 SCC 70
मामले का शीर्षक
Ranjit Kumar Bhagat बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Criminal Revision No. 8 of 2005
उद्धरण (Citation)
2020 (2) PLJR 868
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री रमाकांत शर्मा (वरिष्ठ अधिवक्ता)
- विपक्षी संख्या 2 की ओर से: स्वंय उपस्थिति (सीमा कुमारी)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/NyM4IzIwMDUjNDEjTg==-M15D0jHw9KE=
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