पेंशन लाभ से इनकार पर पटना उच्च न्यायालय ने दी राहत, सेवा निवृत्ति के बाद लागू नियमों को नकारा

पेंशन लाभ से इनकार पर पटना उच्च न्यायालय ने दी राहत, सेवा निवृत्ति के बाद लागू नियमों को नकारा

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक सेवानिवृत्त पुलिस सुबेदार को बड़ी राहत देते हुए यह स्पष्ट किया कि सेवा निवृत्ति के वर्षों बाद बनाए गए विभागीय नियमों के आधार पर पेंशन में कटौती नहीं की जा सकती।

यह मामला एक पूर्व पुलिस अधिकारी से संबंधित है, जिन्होंने 28 वर्षों तक सेवा देने के बाद वर्ष 1999 में सुबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवा के बाद उन्हें पूरी पेंशन नहीं दी गई। सरकार ने तर्क दिया कि उन्होंने हिंदी नोटिंग और ड्राफ्टिंग की परीक्षा नहीं पास की, जो अब एक अनिवार्य विभागीय योग्यता है। यह नियम वर्ष 2005 में लागू हुआ था, जबकि उक्त अधिकारी 1999 में ही रिटायर हो चुके थे।

याचिकाकर्ता का पक्ष था कि उन्होंने 1988 में सुबेदार के पद पर पदोन्नति पाई थी और उसी पद पर रहते हुए रिटायर हुए। इसलिए उनका पेंशन निर्धारण उस समय प्राप्त अंतिम वेतन के आधार पर किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें कभी इस बात की जानकारी नहीं दी गई कि हिंदी परीक्षा पास न करने से उनकी पेंशन प्रभावित होगी।

सरकारी वकीलों ने विभागीय पत्र संख्या 4048 दिनांक 3 जून 2003 और गृह विभाग के मेमो संख्या 7225 दिनांक 23 जुलाई 2005 का हवाला दिया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया था कि हिंदी नोटिंग व ड्राफ्टिंग परीक्षा पास करना वित्तीय लाभों के लिए आवश्यक है।

किन्तु माननीय न्यायालय ने यह पाया कि ये सभी आदेश याचिकाकर्ता की सेवानिवृत्ति के बाद जारी हुए, और इस कारण इनका पीछे जाकर प्रभाव डालना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने कहा कि किसी सेवानिवृत्त कर्मी को उसके सेवानिवृत्ति के कई वर्षों बाद बनाए गए नियमों के आधार पर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता।

इसलिए, न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता की पेंशन का पुन: निर्धारण उसके सेवानिवृत्ति के समय सुबेदार पद पर प्राप्त अंतिम वेतन के आधार पर किया जाए। यह कार्य आदेश की प्रति प्राप्त होने के 60 दिनों के भीतर किया जाना अनिवार्य है। अगर यह समयसीमा पार होती है, तो देरी की अवधि के लिए 8% वार्षिक ब्याज के साथ समस्त बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में हजारों सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है। यह सिद्धांत स्थापित करता है कि सेवा निवृत्ति के बाद लागू हुए नियमों का उपयोग करके किसी का हक नहीं छीना जा सकता।

यह फैसला सरकारी दफ्तरों को यह संदेश भी देता है कि नियम बनाते समय पारदर्शिता और समय की सीमाओं का विशेष ध्यान रखा जाए। सेवानिवृत्त कर्मचारियों के प्रति न्यायिक सम्मान और प्रशासनिक जवाबदेही को यह निर्णय मजबूती देता है।

ऐसे पेंशनधारकों को भी इससे लाभ मिल सकता है जिनके मामलों में पेंशन केवल इस आधार पर रोकी गई हो कि वे बाद में लागू नियमों का पालन नहीं कर सके।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या सेवा निवृत्ति के बाद जारी नियमों को पेंशन घटाने के लिए लागू किया जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं। अदालत ने स्पष्ट किया कि 2003 और 2005 के नियमों को 1999 में रिटायर हुए व्यक्ति पर लागू नहीं किया जा सकता।
  • क्या हिंदी नोटिंग व ड्राफ्टिंग परीक्षा पास करना पेंशन लाभ के लिए अनिवार्य है?
    • निर्णय: हो सकता है विभागीय स्तर पर यह आवश्यक हो, लेकिन सेवानिवृत्त कर्मचारियों पर पीछे जाकर इसे लागू नहीं किया जा सकता।
  • पेंशन का निर्धारण किस वेतन के आधार पर होना चाहिए?
    • निर्णय: सेवानिवृत्ति के समय सुबेदार पद पर प्राप्त अंतिम वेतन के आधार पर।
  • क्या पेंशन भुगतान में देरी करने पर विभाग दंडित हो सकता है?
    • निर्णय: हां। यदि 60 दिन के भीतर आदेश का पालन नहीं होता, तो 8% वार्षिक ब्याज के साथ पूरी बकाया राशि का भुगतान करना होगा।

मामले का शीर्षक

Bishwanath Ram v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 15933 of 2018

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 35

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार उपाध्याय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री अनिल कुमार महाराज, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री शिव शंकर प्रसाद (SC-8) – राज्य की ओर से
  • श्री कुमार प्रिय रंजन, अधिवक्ता – महालेखाकार की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMTU5MzMjMjAxOCMyI04=-yLrtRAE804Y=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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