संपत्ति विवाद में दर्ज आपराधिक मामला पटना उच्च न्यायालय ने किया खारिज

संपत्ति विवाद में दर्ज आपराधिक मामला पटना उच्च न्यायालय ने किया खारिज

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में संपत्ति विवाद से जुड़े आपराधिक मुकदमे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि नागरिक मामलों (civil disputes) को सुलझाने के लिए आपराधिक कानून का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। यह निर्णय उन सभी लोगों के लिए राहत लेकर आया है जो पारिवारिक संपत्ति विवादों में झूठे आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे हैं।

यह मामला एक डॉक्टर से संबंधित है, जिन्होंने आरोप लगाया कि उनके पारिवारिक संपत्ति विवाद को लेकर झूठा आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। 1974 में परिवार के बीच संपत्ति का विभाजन हुआ था जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक समान हिस्सा मिला था। बाद में पिता और माता ने अपनी-अपनी स्वअर्जित संपत्तियाँ याचिकाकर्ता के नाम गिफ्ट डीड के माध्यम से कर दी थीं। इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ता की मां ने वसीयत (Will) भी उसी के नाम की थी, जिसका प्रोबेट केस अभी लंबित है।

2013 में याचिकाकर्ता के भाई के बेटे अजय ओझा ने दो बिक्री विलेख (sale deeds) कर दिए — जिनमें एक में उस संपत्ति की बिक्री की गई थी जो मां ने वसीयत में याचिकाकर्ता को दी थी और दूसरी याचिकाकर्ता की खरीदी गई संपत्ति की थी। इन्हीं में से एक संपत्ति शिकायतकर्ता बलिराम ओझा ने खरीदी थी।

इस बिक्री के कुछ ही दिनों बाद शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाकर केस दर्ज कराया कि याचिकाकर्ता समेत कुछ लोग उनके घर आए, गाली-गलौज की, धमकाया, और पिस्तौल की नोंक पर उनसे दो खाली स्टांप पेपर पर जबरन हस्ताक्षर करवाए। इन आरोपों के आधार पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 323 और 385 के तहत संज्ञान लिया।

याचिकाकर्ता का कहना था कि पूरा विवाद संपत्ति को लेकर है और इसे आपराधिक रंग देकर उन्हें परेशान किया जा रहा है। उन्होंने पहले ही इन विक्रयों के खिलाफ शिकायत दर्ज कर रखी थी।

शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि संपत्ति वैध तरीके से खरीदी गई थी और चश्मदीद गवाह भी घटनास्थल पर मौजूद थे। इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने को चुनौती नहीं दी जा सकती।

लेकिन उच्च न्यायालय ने कहा कि जब यह स्पष्ट हो कि पूरा विवाद नागरिक प्रकृति का है और केवल प्रतिशोध की भावना से आपराधिक केस दर्ज किया गया है, तो न्यायालय को ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि एक सिविल विवाद को आपराधिक मुकदमे के जरिए हल करने का प्रयास न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

अंततः, अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता का मामला दुर्भावनापूर्ण है और केवल याचिकाकर्ता को प्रताड़ित करने के लिए दायर किया गया है। अतः अदालत ने संज्ञान आदेश सहित पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय एक मिसाल के रूप में सामने आया है जो स्पष्ट करता है कि संपत्ति विवाद जैसे सिविल मामलों में आपराधिक प्रक्रिया का सहारा लेना न केवल अवैध है, बल्कि यह न्याय व्यवस्था का दुरुपयोग भी है।

संपत्ति खरीद-फरोख्त से जुड़े आम लोग, खासकर परिवार के भीतर संपत्ति विवाद झेल रहे व्यक्ति, इससे सीख सकते हैं कि आपराधिक मुकदमा दर्ज कराने से पहले यह देखना जरूरी है कि मामला वाकई अपराध से संबंधित है या केवल प्रतिशोध से प्रेरित।

यह फैसला न्यायपालिका, पुलिस और सरकारी वकीलों के लिए भी चेतावनी है कि वे जांच के दौरान तथ्यों की गहराई से पड़ताल करें और नागरिक विवाद को आपराधिक मुकदमा न मानें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या संपत्ति विवाद पर आधारित शिकायत को आपराधिक मुकदमे में बदला जा सकता है?
    • निर्णय: नहीं।
    • कारण: यह सिविल विवाद है और आपराधिक मुकदमा इसका दुरुपयोग है।
  • क्या क्रेता (buyer) द्वारा संपत्ति खरीदने के बाद आपराधिक आरोप लगाए जा सकते हैं?
    • निर्णय: केवल क्रय-विक्रय से आपराधिक मामला नहीं बनता जब तक विशेष आपराधिक कृत्य सिद्ध न हो।
  • क्या हाईकोर्ट धारा 482 CrPC के तहत ऐसे मुकदमे रद्द कर सकता है जब ट्रायल चल रहा हो?
    • निर्णय: हाँ।
    • कारण: न्यायालय को कभी भी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने का अधिकार है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • योगेन्द्र प्रसाद व अन्य बनाम राज्य बिहार व अन्य, 2019 (3) PLJR 890
  • सौ. कमल शिवाजी पोकर्णेकर बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य, Criminal Appeal No. 255 of 2019
  • इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन बनाम NEPC इंडिया लिमिटेड, 2006 (6) SCC 736

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल, 1992 Supp (1) SCC 335
  • आनंद कुमार मोहट्टा बनाम दिल्ली राज्य (गृह विभाग), AIR 2019 SC 210

मामले का शीर्षक

Dr. Purnendu Ojha v. State of Bihar & Anr.

केस नंबर

Criminal Miscellaneous No. 20995 of 2015

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 37

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री विकास कुमार शर्मा, श्री जितेन्द्र कुमार, श्री हर्षवर्धन – याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री श्याम कुमार सिंह, APP – विपक्षीगण की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMyMDk5NSMyMDE1IzEjTg==-Qejre8h0M–ak1–s=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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