17 साल की देरी के बाद दायर याचिका पर compassionate नियुक्ति का दावा खारिज — पटना हाई कोर्ट का फैसला

17 साल की देरी के बाद दायर याचिका पर compassionate नियुक्ति का दावा खारिज — पटना हाई कोर्ट का फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने दिवंगत पिता की सेवा-निधन के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति (compassionate appointment) की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में अत्यधिक देरी हुई है और अब अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य पूरा नहीं होता।

इस मामले में याचिकाकर्ता के पिता एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक थे, जिनकी मृत्यु वर्ष 2002 में सेवा के दौरान हो गई थी। याचिकाकर्ता जो अपने पिता की दूसरी पत्नी का बेटा है, उसने 2006 में अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था — यानी पिता की मृत्यु के 4 साल बाद। उसी समय याचिकाकर्ता के सौतेले भाई (पहली पत्नी का बेटा) ने भी अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया था।

वर्षों तक यह मामला प्रशासनिक प्रक्रियाओं और मुकदमों में उलझा रहा। पहले सौतेले भाई को नौकरी मिली, लेकिन बाद में दस्तावेज फर्जी पाए जाने पर उसे रद्द कर दिया गया। याचिकाकर्ता का आवेदन कभी स्वीकृत नहीं हुआ और अंततः 2017 में जिला पदाधिकारी द्वारा यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि 2005 के सरकारी परिपत्र के अनुसार दूसरी पत्नी के बच्चों को अनुकंपा नियुक्ति नहीं दी जा सकती।

याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को चुनौती दी। पहले सिंगल बेंच ने याचिका खारिज की। फिर वह डिवीजन बेंच के समक्ष LPA लेकर गया। उसका तर्क था कि:

  • 2005 का सरकारी परिपत्र संविधान के अनुच्छेद 14 के खिलाफ है क्योंकि यह दूसरी पत्नी के बच्चों से भेदभाव करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने V.R. Tripathi केस में कहा है कि दूसरी पत्नी के बच्चों को भी समान अधिकार है।
  • उनका आवेदन लंबित था, और गलती अधिकारियों की थी।

वहीं राज्य सरकार ने कहा:

  • याचिकाकर्ता ने पिता की मृत्यु के चार साल बाद आवेदन किया और 17 साल तक उसका पीछा करता रहा।
  • अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य है—आकस्मिक मृत्यु के बाद परिवार की तत्काल मदद।
  • जब तक निर्णय आया, याचिकाकर्ता 51 वर्ष के हो चुके थे और तत्काल आर्थिक संकट का कोई सवाल ही नहीं था।

कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलें स्वीकार कीं और कहा:

  • भले ही दूसरी पत्नी के बच्चों को बाहर करना अनुचित है, लेकिन इतना लंबा विलंब इस योजना के उद्देश्य को ही खत्म कर देता है।
  • अनुकंपा नियुक्ति कोई कानूनी अधिकार नहीं, बल्कि तत्काल राहत का उपाय है।
  • 17 वर्षों में यदि परिवार ने जीविकोपार्जन कर लिया है, तो अब नियुक्ति का औचित्य नहीं रह जाता।

कोर्ट ने SBI v. Anju Jain, Jagdish Prasad, Sajad Ahmad Mir, Hakim Singh जैसे सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए यह स्पष्ट किया कि अत्यधिक देरी होने पर अनुकंपा नियुक्ति देने का कोई औचित्य नहीं बचता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य केवल आकस्मिक मृत्यु के बाद तत्काल राहत देना है। यह कोई वैकल्पिक रोजगार योजना नहीं है जिसे वर्षों बाद भी दावा किया जा सके। इस प्रकार की नियुक्तियों में समयबद्धता सबसे जरूरी है।

सामान्य जनता के लिए यह एक चेतावनी है कि सरकारी योजनाओं या नियुक्तियों से जुड़े दावे समय पर करें। सरकार के लिए भी यह निर्देश है कि नियमों के पालन में संतुलन रखते हुए संवेदनशीलता और प्रशासनिक व्यावहारिकता दोनों का ध्यान रखा जाए।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या दूसरी पत्नी के बेटे को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित किया जा सकता है?
    नहीं। कोर्ट ने कहा कि ऐसा भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
  • क्या पिता की मृत्यु के 17 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति मिल सकती है?
    नहीं। इतनी देरी से इस योजना का उद्देश्य ही खत्म हो जाता है।
  • क्या राज्य सरकार का निर्णय उचित था?
    ✔️ हां। कोर्ट ने कहा कि परिवार अब संकट में नहीं है, और समयसीमा का उल्लंघन हुआ है।
  • क्या याचिकाकर्ता के पास कानूनी आधार था?
    ✔️ हां, लेकिन केवल सैद्धांतिक रूप में। व्यावहारिक रूप से देरी निर्णायक रही।
  • क्या मामला दोबारा विचार हेतु वापस भेजा जाना चाहिए था?
    नहीं। कोर्ट ने इसे अनावश्यक और समय की बर्बादी माना।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]

  • Union of India and Another v. V.R. Tripathi, 2019 (1) BLJ (SC) 307

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]

  • General Manager, SBI v. Anju Jain, (2008) 8 SCC 475
  • State of J&K v. Sajad Ahmad Mir, (2006) 5 SCC 766
  • Jagdish Prasad v. State of Bihar, (1996) 1 SCC 301
  • Haryana SEB v. Hakim Singh, (1997) 8 SCC 85
  • The Bihar State Electricity Board v. Chandra Shekhar Paswan, 2019 (2) PLJR 500

मामले का शीर्षक

Jawahar Lal Ram बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 314 of 2019 (CWJC No. 6414 of 2018)

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 146

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति हेमंत कुमार श्रीवास्तव
माननीय न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

अपीलकर्ता की ओर से:

  • श्री गोपाल गोविंद मिश्रा, अधिवक्ता

राज्य की ओर से:

  • श्री अशुतोष रंजन पांडे, अपर महाधिवक्ता-15

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyMzMTQjMjAxOSMxI04=-j50bwVwgIII=

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News