निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने दो व्यापारिक संस्थाओं द्वारा दायर याचिकाओं पर अहम फैसला सुनाया है, जिसमें उनके ट्रकों से लाई जा रही सूखी सुपारी की ज़ब्ती को अवैध घोषित किया गया है। यह सुपारी असम से दिल्ली ले जाई जा रही थी और बिहार के किशनगंज तथा मुज़फ़्फ़रपुर में कस्टम विभाग ने इसे विदेशी मूल की बताते हुए जब्त कर लिया था।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ज़ब्ती मेमो में यह तो कहा गया है कि सुपारी “विदेशी मूल” की है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि वह किस देश की है और अधिकारी ने यह राय किस आधार पर बनाई। कानून के अनुसार, कस्टम अधिनियम की धारा 110(1) के तहत जब्त करने से पहले अधिकारी को स्पष्ट रूप से “कारण बताने की आवश्यकता” होती है — यानी उसे यह विश्वास हो कि वस्तुएं ज़ब्ती योग्य हैं और वह विश्वास रिकॉर्ड पर होना चाहिए।
इससे पहले भी पटना हाईकोर्ट ने कृष्णा काली ट्रेडर्स बनाम भारत सरकार, असम सुपारी ट्रेडर्स बनाम भारत सरकार, और अशोक दास बनाम भारत सरकार जैसे मामलों में स्पष्ट किया था कि बिना कारण बताए गई ज़ब्ती कानून के अनुरूप नहीं मानी जा सकती। अदालत ने यह भी दोहराया कि “पंचनामा” (जो ज़ब्ती के समय बनाया जाता है) को बाद में जब्ती मेमो के समर्थन में नहीं पढ़ा जा सकता। ज़ब्ती मेमो में खुद से स्पष्ट कारण दर्ज होने चाहिए।
कस्टम विभाग के वकील ने स्वीकार किया कि इन मामलों में ज़ब्ती मेमो का प्रारूप पहले के ही मामलों जैसा है और उन्होंने तर्क दिया कि “पंचनामा” को ज़ब्ती मेमो का हिस्सा मान लेना चाहिए। लेकिन अदालत ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि पंचनामा ज़ब्ती के बाद तैयार किया जाता है, इसलिए यह पहले की प्रक्रिया को वैध नहीं ठहरा सकता।
इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं को सुपारी की अस्थायी रिहाई के दौरान एक शर्त दी गई थी कि वह सिर्फ औद्योगिक उपयोग के लिए ही बेची जाए, क्योंकि FSSAI की रिपोर्ट में इसे सीधे खाने लायक नहीं माना गया था। लेकिन जब अदालत ने ज़ब्ती ही अवैध बता दी, तो यह शर्त अपने आप समाप्त हो गई।
अंत में, अदालत ने दोनों याचिकाएं मंजूर कर लीं और ज़ब्ती मेमो को रद्द कर दिया। हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि कस्टम विभाग अगर चाहे तो जांच और कानूनी कार्यवाही कानून के तहत जारी रख सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला व्यापारियों और ट्रांसपोर्टरों के लिए राहत की खबर है। इससे यह संदेश गया है कि सरकारी अधिकारी जब भी ज़ब्ती करें, तो उन्हें कानून का सख्ती से पालन करना होगा। बिना उचित आधार या कारण के वस्तुओं को ज़ब्त करना गैरकानूनी है।
यह निर्णय न केवल व्यापार की आज़ादी को सुरक्षित करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकारी शक्तियों का उपयोग न्यायसंगत और पारदर्शी ढंग से हो। खासकर वे व्यापारी जो उत्तर-पूर्व भारत से दिल्ली और अन्य राज्यों में वस्तुएं भेजते हैं, उन्हें अब कुछ कानूनी सुरक्षा महसूस होगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना कारण दर्ज किए ज़ब्ती की जा सकती है?
✦ नहीं। कस्टम अधिकारी को ज़ब्ती के समय “reason to believe” (यह विश्वास कि वस्तु जब्त की जा सकती है) स्पष्ट रूप से ज़ब्ती मेमो में दर्ज करना होता है। - क्या पंचनामा को ज़ब्ती मेमो के पूरक के रूप में पढ़ा जा सकता है?
✦ नहीं। क्योंकि पंचनामा ज़ब्ती के बाद बनाया जाता है, यह ज़ब्ती के समय का कारण नहीं बन सकता। - क्या कस्टम विभाग आगे जांच जारी रख सकता है?
✦ हां। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश अनुसार, ज़ब्ती मेमो को रद्द करने से जांच करने का अधिकार समाप्त नहीं होता।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]
- Krishna Kali Traders v. Union of India, 2024 SCC OnLine Pat 880
- Assam Supari Traders v. Union of India, 2024 SCC OnLine Pat 6401
- Ashoke Das v. Union of India, 2025 SCC OnLine Pat 1553
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]
- Worldline Tradex Pvt. Ltd v. Commissioner of Customs, (2016) 40 GSTR 141
- Mary Pushpam v. Telvi Curusumary, (2024) 3 SCC 224
- Om Sai Trading Company v. Union of India, 2019 SCC OnLine Pat 2262
- SLP(C) No. 11124 of 2021, Supreme Court Order dated 15.09.2022
मामले का शीर्षक
CWJC No. 17756 of 2024: A.S. Trading and Company बनाम भारत सरकार
CWJC No. 17758 of 2024: Maa Kamakhya Traders बनाम भारत सरकार
केस नंबर
CWJC No. 17756 of 2024 और CWJC No. 17758 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और श्री अंशुमान सिंह (सीनियर स्टैंडिंग काउंसल, कस्टम विभाग)
निर्णय का लिंक
395ca50c-7924-48a1-8ff8-826e070c37fa.pdf
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