निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण वाणिज्यिक विवाद में निर्णय देते हुए एक मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका REW Contracts Pvt. Ltd. ने दायर की थी, जो कि एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture – JV) का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि JV के किसी एक हिस्सेदार द्वारा अकेले ऐसी याचिका दाखिल करना कानूनन वैध नहीं है।
मामला बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (BSPTCL) द्वारा 2019 में दिए गए सात ठेकों से जुड़ा है, जिसमें ट्रांसफार्मर की आपूर्ति और मरम्मत कार्य शामिल था। इन ठेकों में विवाद उत्पन्न होने के बाद, REW Contracts Pvt. Ltd. ने कोर्ट में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए आवेदन दायर किया।
हालांकि, अनुबंध में स्पष्ट मध्यस्थता की प्रक्रिया तय थी:
- BSPTCL को 5 मध्यस्थों के नाम प्रस्तावित करने थे।
- दोनों पक्ष उनमें से एक-एक का चयन करते और वे दो मिलकर तीसरे को चुनते।
REW Contracts ने इस प्रक्रिया का पालन किए बिना एकतरफा रूप से CPWD के एक रिटायर्ड इंजीनियर को मध्यस्थ नियुक्त कर दिया। उनका तर्क था कि दूसरे पक्ष ने 60 दिनों में जवाब नहीं दिया।
BSPTCL ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा:
- याचिका JV द्वारा दायर नहीं की गई, बल्कि उसके एक हिस्सेदार द्वारा की गई है।
- कानूनन केवल अनुबंध के पक्षकार ही मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।
- तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
कोर्ट ने BSPTCL की दलील को सही माना और कहा:
- अनुबंध REW Contracts और A.K. Das Associates Ltd. के संयुक्त उद्यम (JV) के साथ हुआ था।
- JV एक अलग कानूनी इकाई है, और उसका कोई भी हिस्सेदार अकेले उसकी ओर से कार्य नहीं कर सकता।
- REW Contracts ने दावा किया कि उसे पॉवर ऑफ अटॉर्नी प्राप्त है, लेकिन वह एक व्यक्ति (श्री कुणाल जिन्दल) को दी गई थी, कंपनी को नहीं।
- वह पॉवर ऑफ अटॉर्नी JV द्वारा नहीं, बल्कि केवल एक हिस्सेदार द्वारा दी गई थी।
इसलिए कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया कि REW Contracts Pvt. Ltd. को मध्यस्थता शुरू करने का कानूनी अधिकार नहीं था। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि JV चाहे तो आगे उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए मध्यस्थता की वैध मांग कर सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन कंपनियों और ठेकेदारों के लिए महत्वपूर्ण है जो संयुक्त उद्यम (JV) के माध्यम से सरकारी ठेके लेते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि कोई भी कानूनी कार्रवाई — जैसे मध्यस्थता की मांग — JV के नाम से ही की जा सकती है, उसके किसी एक हिस्सेदार द्वारा नहीं।
यह निर्णय अनुबंध अनुशासन को बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी प्रक्रियाएं कानून के अनुसार हों। यह सरकारी संस्थाओं को अनुचित दावों से सुरक्षित करता है, और वाणिज्यिक पक्षों को याद दिलाता है कि तकनीकी त्रुटियां पूरे मामले को निष्क्रिय कर सकती हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या JV का एक हिस्सेदार अकेले मध्यस्थता के लिए कोर्ट में जा सकता है?
❌ नहीं। केवल JV ही अनुबंध का पक्षकार होता है और वही याचिका दायर कर सकता है। - क्या दूसरी पार्टी द्वारा जवाब न देने पर एकतरफा मध्यस्थ नियुक्ति वैध है?
❌ नहीं, जब याचिकाकर्ता के पास कानूनी स्थिति ही नहीं है, तो उसकी नियुक्ति भी अवैध है। - क्या पॉवर ऑफ अटॉर्नी पर्याप्त था?
❌ नहीं। वह व्यक्तिगत था, कंपनी को नहीं दिया गया था और JV द्वारा जारी नहीं हुआ था। - क्या JV भविष्य में वैध तरीके से मध्यस्थता की मांग कर सकता है?
✔️ हां। कोर्ट ने कहा कि यदि JV स्वयं निर्धारित प्रक्रिया का पालन करे, तो याचिका स्वीकार्य होगी।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]
- New Horizons Ltd. v. Union of India, (1995) 1 SCC 478
मामले का शीर्षक
M/s REW Contracts Pvt. Ltd. (JV with A.K. Das Associates Ltd.) बनाम बिहार स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एवं अन्य
केस नंबर
Request Case No. 44 of 2022
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से:
- श्री अंकित कटियार, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से:
- श्री आनंद कुमार ओझा, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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