पटना हाई कोर्ट का फैसला: सर्विस टैक्स विवाद में ट्रैवल एजेंसी की याचिका खारिज

पटना हाई कोर्ट का फैसला: सर्विस टैक्स विवाद में ट्रैवल एजेंसी की याचिका खारिज

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक ट्रैवल एजेंसी द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सेवा कर (Service Tax) की मांग और जुर्माना कानून के अनुसार सही है, भले ही यह मांग कुछ वर्षों बाद जारी की गई हो।

मामले की शुरुआत तब हुई जब जीएसटी विभाग ने एजेंसी को एक नोटिस जारी किया जिसमें ₹25,25,313 का सेवा कर और बराबर की पेनल्टी तथा ब्याज की मांग की गई थी। यह नोटिस वित्तीय वर्ष 2015–16 और 2016–17 के लिए था, और अक्टूबर 2020 को जारी हुआ था।

एजेंसी ने दावा किया कि वह केवल टिकट बुकिंग पर कमीशन कमाती थी, इसलिए पूरे टिकट के मूल्य पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि यह नोटिस बहुत देर से आया है और कानून के अनुसार केवल एक साल के भीतर नोटिस जारी किया जा सकता है।

वहीं, जीएसटी विभाग ने तर्क दिया कि एजेंसी ने जांच में सहयोग नहीं किया, दस्तावेज़ नहीं दिए और जांच के दौरान सामने आई जानकारियों के आधार पर ही कर की गणना की गई। विभाग ने यह भी बताया कि नोटिस कई बार भेजा गया, लेकिन हर बार डाक से “LEFT” यानी वहां से चले गए की सूचना मिली।

कोर्ट ने पाया कि एजेंसी ने न तो जांच में सहयोग किया, न ही अपना पक्ष स्पष्ट रूप से रखा। पहले एजेंसी ने कहा कि वह “सिद्धार्थ ट्रैवल्स” नहीं बल्कि “राज ट्रैवल्स” चला रही थी, लेकिन दोनों के पैन नंबर एक ही थे। साथ ही, आग लगने का हवाला देकर दस्तावेज़ न देने की बात भी की गई।

कोर्ट ने माना कि ये सब बातें जानबूझ कर जानकारी छुपाने की श्रेणी में आती हैं। ऐसे मामलों में कानून एक साल की बजाय पाँच साल तक की अवधि में टैक्स मांगने की अनुमति देता है।

जहाँ तक आदेश पारित करने में हुई देरी की बात है, कोर्ट ने माना कि कोविड-19 महामारी के कारण देरी को वैध ठहराया जा सकता है। इसलिए निर्णय में कोई कानूनी खामी नहीं पाई गई।

हालाँकि कोर्ट ने यह नहीं तय किया कि टैक्स की गणना सही तरीके से हुई या नहीं — इस मुद्दे को अपील के माध्यम से संबंधित प्राधिकारी के सामने उठाने की सलाह दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला खास तौर पर उन व्यापारियों और एजेंसियों के लिए महत्वपूर्ण है जो सेवा क्षेत्र (service sector) में काम करते हैं। इसमें निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं:

  • यदि कोई व्यक्ति कर विभाग से जानकारी छिपाता है या जांच में सहयोग नहीं करता, तो विभाग को पाँच साल तक नोटिस भेजने का अधिकार है।
  • कोरोना जैसे विशेष हालात में देरी को वैध माना जा सकता है।
  • यदि कर निर्धारण में गलती है, तो उसके लिए वैकल्पिक उपाय जैसे अपील प्रक्रिया अपनानी चाहिए, सीधे हाई कोर्ट नहीं जाना चाहिए।

यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि न्यायालय प्रक्रिया में पारदर्शिता और सक्रिय सहयोग कितना आवश्यक है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या विभाग पाँच साल बाद टैक्स की मांग कर सकता है?
    ✔ हाँ। जब करदाता ने जानबूझकर जानकारी छुपाई हो, तो पांच साल की मियाद लागू होती है।
  • क्या 2020 में जारी नोटिस पर 2024 में आदेश देना कानूनन वैध है?
    ✔ हाँ। कोर्ट ने माना कि कोविड के कारण देरी को जायज़ ठहराया जा सकता है।
  • क्या याचिकाकर्ता को अपील का वैकल्पिक उपाय अपनाना चाहिए था?
    ✔ हाँ। कोर्ट ने कहा कि कर निर्धारण के मुद्दों पर अपील का रास्ता अपनाना चाहिए।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Kanak Automobiles Pvt. Ltd. v. Union of India, CWJC No. 18398 of 2023
  • Union of India v. Rajasthan Spinning and Weaving Mills, (2009) 13 SCC 448
  • Power Spectrum v. Union of India, CWJC No. 16772 of 2024
  • Circular Letter dated 13.12.2023, F. No. CBIC-20004/3/2023-GST

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Usha Rectifiers Corporation India Ltd. v. CCE, 2011 (263) ELT 655 (SC)
  • CCE, Surat-I v. Neminath Fabrics Pvt. Ltd., 2010 (256) ELT 369 (Guj)
  • M/S Fiat India Pvt. Ltd., Civil Appeal No. 1648-49 of 2004
  • Ramnath Prasad v. Principal Commissioner of CGST & CX, CWJC No. 10644 of 2024
  • Continental Foundation Joint Venture Holding v. CCE, (2007) 10 SCC 337
  • Cosmic Dye Chemical v. CCE, (1995) 6 SCC 117

मामले का शीर्षक
Siddartha Travels v. Principal Commissioner of CGST & Central Excise & Ors.

केस नंबर
CWJC No. 13297 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से:
    श्री डी.वी. पाठी, वरिष्ठ अधिवक्ता
    श्री सदाशिव तिवारी, अधिवक्ता
    श्री हिरेश करण, अधिवक्ता
    सुश्री शिवानी देउल्ला, अधिवक्ता
    सुश्री प्राची पल्लवी, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से:
    अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल
    श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता

निर्णय का लिंक
6a109ad2-2193-47c4-8f26-7ff815baec06.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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