रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करने का आदेश बरकरार: पटना हाई कोर्ट ने बताया यह सिर्फ अंतरिम कदम और दिया उपाय का रास्ता

रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करने का आदेश बरकरार: पटना हाई कोर्ट ने बताया यह सिर्फ अंतरिम कदम और दिया उपाय का रास्ता

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने हाल ही में एक मामले में फैसला सुनाया, जिसमें एक प्राइवेट कंपनी ने ₹1.18 करोड़ के इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) को ब्लॉक करने के आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश बिहार गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (BGST) नियम, 2017 के रूल 86A के तहत जारी किया गया था।

कंपनी आईटी सॉल्यूशन का काम करती है और अलग-अलग विक्रेताओं से सामान और सेवाएं खरीदकर GST का भुगतान करती है। इस पर वह ITC का दावा कर अपने GST दायित्व को समायोजित करती थी।

विवाद तब शुरू हुआ जब पश्चिम बंगाल के टैक्स अधिकारियों ने पाया कि कंपनी का एक सप्लायर—M/s TDML Services Pvt. Ltd.—अपने पंजीकृत पते पर मौजूद ही नहीं है। जांच में यह भी सामने आया कि इस सप्लायर ने बिना माल या सेवा की सप्लाई किए फर्जी बिल जारी कर ITC का लाभ दिया था। इसी आधार पर बिहार के स्टेट टैक्स के एडिशनल कमिश्नर ने जॉइंट कमिश्नर को रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करने का निर्देश दिया।

कंपनी का तर्क था:

  • रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करने से पहले “विश्वास करने का कारण” (reason to believe) होना चाहिए और इसे लिखित में दर्ज करना अनिवार्य है।
  • जॉइंट कमिश्नर ने खुद कोई जांच नहीं की, बल्कि सीधे एडिशनल कमिश्नर के निर्देश पर काम किया।
  • आदेश में विस्तृत कारण नहीं दिए गए, जिससे यह मनमाना और संविधान के खिलाफ है।

राज्य का पक्ष था:

  • सप्लायर के मौजूद न होने के सबूत स्पष्ट हैं, जिससे ITC का दावा अवैध हो गया।
  • रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करना एक अस्थायी कदम है, जो अधिकतम एक वर्ष के लिए होता है।
  • करदाता के पास वैकल्पिक उपाय है—CBIC की गाइडलाइंस के तहत सबूत पेश कर ITC अनब्लॉक करने का अनुरोध कर सकता है।
  • रूल 86A में पहले से सुनवाई (pre-decisional hearing) की अनिवार्यता नहीं है, लेकिन बाद में सुनवाई का अवसर मिलता है।

अदालत ने रूल 86A का प्रावधान देखा, जो कमिश्नर या अधिकृत अधिकारी को ITC ब्लॉक करने का अधिकार देता है यदि यह विश्वास हो कि ITC फर्जी तरीके से या अवैध रूप से लिया गया है, जैसे कि किसी गैर-मौजूद सप्लायर के बिल पर। बॉम्बे और गुजरात हाई कोर्ट के फैसलों में भी यह कहा गया है कि ऐसे मामलों में कारण होना जरूरी है, लेकिन तात्कालिक मामलों में पहले सूचना दिए बिना भी कार्रवाई की जा सकती है, बशर्ते बाद में सुनवाई हो।

इस मामले में कोर्ट ने पाया:

  • जांच रिपोर्ट, सर्च ऑपरेशन के नतीजे और अलर्ट सर्कुलर जैसे पर्याप्त सबूत मौजूद थे।
  • एडिशनल कमिश्नर का आदेश स्पष्ट रूप से रूल 86A लागू करने का आधार बताता है।
  • कंपनी ने सीधे तौर पर जॉइंट कमिश्नर के ITC ब्लॉक करने के आदेश को चुनौती नहीं दी।

कोर्ट ने ITC ब्लॉक करने की कार्रवाई को सही ठहराया और कहा कि यदि कंपनी CBIC गाइडलाइंस के पैरा 3.4 के तहत अनब्लॉकिंग का अनुरोध करती है, तो अधिकारी उसे जल्दी सुनकर कारणयुक्त आदेश पारित करेंगे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस फैसले में मामले के मेरिट पर कोई राय नहीं दी गई है और भविष्य की सुनवाई में सभी मुद्दे खुले रहेंगे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला दो अहम बातें साफ करता है—पहली, रूल 86A के तहत ITC ब्लॉक करना कोई अंतिम सजा नहीं बल्कि एक अस्थायी सुरक्षा उपाय है। दूसरी, यदि आपके सप्लायर फर्जी निकलते हैं, तो आपका ITC भी प्रभावित हो सकता है।
व्यापारियों के लिए यह चेतावनी है कि सप्लायर का सत्यापन और रिकॉर्ड सुरक्षित रखना बेहद जरूरी है। सरकार के लिए यह फैसला नकली बिल और फर्जी ITC के मामलों में तुरंत कार्रवाई करने के अधिकार को मजबूत करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: बिना स्वतंत्र जांच और विस्तृत कारण बताए ITC ब्लॉक करना वैध है या नहीं।
    निर्णय: इस मामले में हाँ—पर्याप्त सबूत थे, कार्रवाई कानूनी थी।
  • मुद्दा: क्या ITC ब्लॉक करने से पहले सुनवाई जरूरी है।
    निर्णय: नहीं; आपात स्थिति में तुरंत कार्रवाई संभव है, लेकिन बाद में सुनवाई होनी चाहिए।
  • मुद्दा: क्या अनब्लॉक करने का उपाय उपलब्ध है।
    निर्णय: हाँ; CBIC गाइडलाइंस के पैरा 3.4 के तहत सबूत के साथ आवेदन किया जा सकता है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Samay Alloys India Pvt. Ltd. v. State of Gujarat [2022 (61) G.S.T.L. 421 (Guj.)]
  • Dee Vee Projects Ltd. v. Government of Maharashtra [2022 (2) TMI 569]

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Dee Vee Projects Pvt. Ltd. v. Government of Maharashtra (Bombay High Court)
  • Swadeshi Cotton Mills v. Union of India (1981) 1 SCC 664
  • Nirma Industries Ltd. v. SEBI (2013) 8 SCC 20
  • Atulya Minerals v. Commissioner of State Tax (Orissa High Court)

मामले का शीर्षक
M/s Graphic Trades Private Limited v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4506 of 2025

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री विशाल अग्रवाल, श्री गौरव गोविंदा, सुश्री अनन्या मैतिन
प्रतिवादी की ओर से: श्री विकास कुमार, स्थायी अधिवक्ता-11

निर्णय का लिंक
195c6a42-de52-4138-b1c1-28a9911a4a83.pdf

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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