पटना हाईकोर्ट ने सरकारी फंड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत याचिका खारिज की

पटना हाईकोर्ट ने सरकारी फंड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत याचिका खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक ऐसे आरोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी, जिस पर मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत गंभीर आरोप हैं। मामला सरकारी धन की हेराफेरी से जुड़ा है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा जारी चेकों की क्लोनिंग करके करोड़ों रुपये फर्जी खातों में ट्रांसफर किए गए।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने फर्जी पहचान पत्रों के सहारे अपने नाम से 22 बैंक खाते खोले और इन खातों में लगभग 9 लाख रुपये सरकारी फंड से स्थानांतरित किए गए। हालांकि, पूरे घोटाले की राशि लगभग 5 करोड़ रुपये है, आरोपी पर सीधे तौर पर 9 लाख रुपये की ही जिम्मेदारी तय की गई है।

आरोपी 3 मार्च 2017 से न्यायिक हिरासत में है। उसके वकील का तर्क था कि —

  • वह तीन साल से अधिक समय से जेल में है।
  • अधिकतम सजा सात साल की है, और कोई पूर्व सजा नहीं है।
  • अन्य राज्यों में भी चल रहे मामलों में वह जमानत पर है, जैसे असम में एक सीबीआई केस।

लेकिन, प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना था कि —

  • यह साधारण अपराध नहीं, बल्कि देश की आर्थिक सुरक्षा से जुड़ा गंभीर मामला है।
  • आरोपी ने PMLA की धारा 50 के तहत दिए गए बयान में अपनी संलिप्तता स्वीकार की है, जो कानूनी रूप से साक्ष्य के रूप में मान्य है।
  • अन्य राज्यों में भी समान प्रकृति के मामलों में आरोपी की भूमिका की जांच जारी है।
  • PMLA की धारा 45 में दी गई “डबल शर्त” (twin conditions) आरोपी के पक्ष में पूरी नहीं होती — यानी अदालत को विश्वास होना चाहिए कि आरोपी दोषी नहीं है और जमानत पर बाहर आने के बाद अपराध नहीं करेगा।

अदालत ने कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया —

  • PMLA में जमानत को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया गया। पहले निकेश तराचंद शाह केस में धारा 45 की शर्तें असंवैधानिक बताई गई थीं, लेकिन बाद के संशोधनों में उन्हें फिर लागू किया गया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में समान मामलों में जमानत पर रोक भी लगाई है।
  • आर्थिक अपराध (Economic Offences) को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख बेहद सख्त है, क्योंकि ये योजनाबद्ध तरीके से किए जाते हैं और देश की वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाते हैं।

अंत में, अदालत ने माना कि —

  • आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं और उसने खुद बयान में अपराध में भूमिका कबूल की है।
  • कम राशि और लंबी हिरासत जैसे कारण इस स्तर पर राहत देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

इसलिए, जमानत याचिका खारिज कर दी गई। हालांकि, अदालत ने निचली अदालत को निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी करे, अधिमानतः 12 महीनों के भीतर।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला दिखाता है कि जब मामला सरकारी धन की हेराफेरी और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हो, तो अदालतें कितनी सख्ती बरतती हैं। भले ही आरोपी के खिलाफ जुड़ी रकम कम हो, अगर वह बड़े अपराधी नेटवर्क का हिस्सा है, तो उसे जमानत पाना मुश्किल हो जाता है।

आम जनता के लिए यह संदेश है कि सरकारी धन की धोखाधड़ी और फर्जी खाते खोलना न केवल कानूनन अपराध है, बल्कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर आर्थिक अपराध माना जाता है। सरकारी एजेंसियों के लिए यह फैसला जांच और अभियोजन में सख्ती बरतने का समर्थन करता है और साथ ही लंबे समय से जेल में बंद आरोपियों के मामलों में जल्दी सुनवाई करने की जरूरत को भी रेखांकित करता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या आरोपी को लंबी हिरासत और कम राशि के आधार पर PMLA में जमानत मिल सकती है?
    निर्णय: नहीं, जमानत खारिज।
    कारण:
    • गंभीर आर्थिक अपराध जो देश की वित्तीय व्यवस्था को प्रभावित करता है।
    • आरोपी का धारा 50 PMLA के तहत अपराध स्वीकार करने वाला बयान।
    • अन्य राज्यों में भी समान अपराधों में संलिप्तता की जांच।
    • धारा 45 की “डबल शर्त” पूरी नहीं होती।
    • लंबी हिरासत और कम राशि, अपराध की गंभीरता के सामने महत्वहीन।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • मोटी लाल @ मोतीलाल पटवा बनाम भारत संघ, Cr. Misc. No. 73052 of 2019, MANU/BH/0274/2020
  • रोहित टंडन बनाम प्रवर्तन निदेशालय, (2018) 11 SCC 46 | AIR 2017 SC 5309
  • गौतम कुंडू बनाम प्रवर्तन निदेशालय (PMLA), (2015) 16 SCC 1
  • वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी बनाम CBI, (2013) 7 SCC 439

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • निकेश तराचंद शाह बनाम भारत संघ, (2018) 11 SCC 1
  • पी. चिदंबरम बनाम प्रवर्तन निदेशालय, (2019) 9 SCC 24
  • निम्मगड्डा प्रसाद बनाम CBI, (2013) 7 SCC 466
  • राज्य बनाम मोहनलाल जितामलजी पोरवाल, (1987) 2 SCC 364
  • CBI बनाम रामेंदु चट्टोपाध्याय, 2019 SCC OnLine SC 1491
  • राज्य बनाम अमित कुमार, (2017) 13 SCC 751
  • श्री चामुंडी मोपेड्स लिमिटेड बनाम चर्च ऑफ साउथ इंडिया ट्रस्ट एसोसिएशन, (1992) 3 SCC 1
  • वी. पी. शेठ बनाम मध्य प्रदेश राज्य, (2004) 13 SCC 767

मामले का शीर्षक

Vidyut Kumar Sarkar @ Ashok Das बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Criminal Miscellaneous No. 73325 of 2019

उद्धरण (Citation)

2020 (3) PLJR 128

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार, अधिवक्ता
  • भारत संघ की ओर से: श्री एस. डी. संजय, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री कुमार प्रिया रंजन, केंद्रीय सरकारी अधिवक्ता
  • राज्य की ओर से: श्री अशोक कुमार, अतिरिक्त लोक अभियोजक

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiM3MzMyNSMyMDE5IzEjTg==-rGMZuwwloU0=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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