निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में एक कंपनी के खिलाफ जारी GST आकलन आदेश को रद्द कर दिया, क्योंकि यह आदेश बिहार वस्तु एवं सेवा कर (BGST) अधिनियम की धारा 73(8) का उल्लंघन था। इस धारा में साफ तौर पर प्रावधान है कि करदाता को शो-कॉज़ नोटिस (DRC-01) मिलने के बाद कम से कम 30 दिन का समय जवाब देने के लिए दिया जाना चाहिए।
इस मामले में कर विभाग ने 14 फरवरी 2021 को नोटिस जारी किया, लेकिन केवल 9 दिन बाद, 23 फरवरी 2021 को, उन्होंने आकलन आदेश (DRC-07) जारी कर दिया। कंपनी का कहना था कि यह कार्रवाई न केवल कानून के खिलाफ है, बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।
कंपनी ने आगे इन आदेशों को भी चुनौती दी —
- 8 अप्रैल 2021 को जारी संशोधित मांग आदेश (DRC-08), जिसमें ₹92,68,758 (टैक्स ₹75,77,390 और ब्याज ₹16,91,368) की मांग की गई।
- 8 अप्रैल 2023 को जारी अपील अस्वीकृति आदेश (APL-02), जिसे केवल इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि आदेश की प्रमाणित प्रति समय पर दाखिल नहीं की गई, जबकि दिसंबर 2022 में हुए संशोधन के बाद इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी गई थी।
- प्री-डिपॉज़िट की वापसी की मांग, जो अपील दाखिल करने के लिए जमा की गई थी और कुल ₹9,47,176 थी।
कंपनी ने कोर्ट से आदेश रद्द करने, वसूली रोकने और जमा राशि वापस करने का निर्देश देने की मांग की।
हाईकोर्ट ने अपने पहले के फैसले (CWJC No. 14239 of 2024, M/s Agarwal Tube Company बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य) पर भरोसा किया, जिसमें यही मुद्दा तय हुआ था कि 30 दिन का समय दिए बिना आदेश पारित करना गैरकानूनी है।
इसी सिद्धांत को लागू करते हुए कोर्ट ने 23 फरवरी 2021 का आकलन आदेश रद्द कर दिया और याचिका को इसी आधार पर निपटा दिया।
यह फैसला स्पष्ट करता है कि कर अधिकारियों को कानून में निर्धारित समयसीमा और प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करना होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- करदाताओं के अधिकारों की सुरक्षा: यह फैसला बताता है कि टैक्स देने वालों को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए।
- धारा 73(8) का कड़ाई से पालन: 30 दिन की नोटिस अवधि को दरकिनार करना आदेश को अमान्य कर देगा।
- व्यवसायों के लिए राहत: जल्दबाजी या मनमानी में पारित टैक्स आदेशों के खिलाफ अब कंपनियां इस मिसाल का सहारा ले सकती हैं।
- प्रशासनिक अनुशासन: कर अधिकारियों को सावधानीपूर्वक और कानून के अनुसार कार्य करना होगा, वरना आदेश कोर्ट में टिक नहीं पाएंगे।
- रिफंड की संभावना: ऐसे मामलों में, यदि आदेश रद्द होता है, तो प्री-डिपॉज़िट राशि भी वापस मिल सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या धारा 73(8) में निर्धारित 30 दिन की अवधि समाप्त होने से पहले आकलन आदेश पारित करना वैध है?
निर्णय: नहीं। कोर्ट ने आदेश को अवैध ठहराया और रद्द कर दिया। - क्या अपील खारिज करना उचित था, जबकि प्रमाणित प्रति की आवश्यकता पहले ही हटा दी गई थी?
टिप्पणी: मुख्य निर्णय समयसीमा उल्लंघन पर आधारित था, लेकिन अपील अस्वीकृति में भी प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया गया। - क्या पहले के Agarwal Tube Company मामले का सिद्धांत यहां लागू होता है?
निर्णय: हाँ, तथ्य समान होने के कारण वही फैसला लागू किया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- CWJC No. 14239 of 2024 — M/s Agarwal Tube Company बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य — पटना हाईकोर्ट।
मामले का शीर्षक
M/s. Ashok Leyland Limited बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 1225 of 2025
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायाधीश पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायाधीश एस. बी. पी. डी. सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मदन कुमार, अधिवक्ता; श्री बृस्केतु शरण पांडेय, अधिवक्ता
- प्रतिवादी की ओर से: श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST एवं कस्टम्स; श्री अमरपीत, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री विवेक प्रसाद, जी.पी. 7; सुश्री सुप्रज्ञा (ए.सी. टू जी.पी. 7)
निर्णय का लिंक
65334912-3f23-41f1-97d4-bc369be33698.pdf
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