पटना उच्च न्यायालय ने लिखित बयान दाखिल करने से रोकने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

पटना उच्च न्यायालय ने लिखित बयान दाखिल करने से रोकने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

पटना उच्च न्यायालय ने लिखित बयान दाखिल करने से रोकने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला एक विभाजन वाद (टाइटल सूट संख्या 60/2000) से जुड़ा है, जिसमें याचिकाकर्ता को निचली अदालत (उप-न्यायाधीश) ने लिखित बयान दाखिल करने से रोक दिया था। याचिकाकर्ता ने इस आदेश (दिनांक 24 मई 2010) को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

विवाद एक व्यक्ति, गोकुला तिवारी, की पैतृक संपत्ति को लेकर था। उनकी दो शादियां हुई थीं। पहली पत्नी से दो बेटे और एक बेटी थीं, जबकि दूसरी पत्नी से एक बेटा (वादी) था। वादी का दावा था कि संपत्ति का औपचारिक बंटवारा नहीं हुआ था, भले ही अलग-अलग परिवार के सदस्य अपनी सुविधा से अलग-अलग हिस्सों पर कब्जा किए हुए थे। आरोप था कि पहली पत्नी के बेटे, वादी की अनुपस्थिति का फायदा उठाकर, जमीन के हिस्से रिश्तेदारों के नाम बेच चुके थे और आगे भी बिक्री या उपहार के जरिए जमीन हस्तांतरित करने की कोशिश कर रहे थे। इस पर वादी ने 2000 में विभाजन वाद दायर किया।

मूल प्रतिवादी संख्या 1 (पहली पत्नी का बेटा) का निधन हो गया। इसके बाद, वर्तमान याचिकाकर्ता (उसका बेटा) और उसकी मां को प्रतिवादी बनाया गया। दोनों ने 23 अगस्त 2004 को वकालतनामा दाखिल कर पेशी दर्ज कराई, लेकिन कोई लिखित बयान दाखिल नहीं किया। निचली अदालत ने 6 जनवरी 2006 को उन्हें लिखित बयान दाखिल करने से रोक दिया।

करीब दो साल बाद, 17 दिसंबर 2007 को, याचिकाकर्ता ने आदेश रद्द करने के लिए आवेदन दिया, यह कहते हुए कि पिता की मृत्यु और मां की बीमारी के कारण देरी हुई। लेकिन यह आवेदन न तो हलफनामे के साथ था और न ही बीमारी का कोई सबूत। अदालत ने 24 मई 2010 को आवेदन खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि पर्याप्त मौके दिए गए थे और कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं हुआ।

उच्च न्यायालय में, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 8 नियम 1 में लिखित बयान दाखिल करने की समयसीमा अनिवार्य नहीं बल्कि निर्देशात्मक (लचीली) है। उन्होंने शेख सलीम हाजी अब्दुल खयूमसाब बनाम कुमार (2006) 1 SCC 46 का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने छुट्टी के कारण एक दिन की देरी को माफ कर दिया था।

प्रतिपक्ष ने कहा कि याचिकाकर्ता ने लापरवाही दिखाई, लगभग दो साल इंतजार किया और कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं दिया।

पटना उच्च न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कैलेश बनाम नन्हकू (2005) 4 SCC 480 भी शामिल है, जिसमें कहा गया था कि हालांकि आदेश 8 नियम 1 अनिवार्य नहीं है, लेकिन 90 दिनों से ज्यादा समय बढ़ाना केवल असाधारण परिस्थितियों में और सबूत के साथ ही संभव है।

न्यायालय ने पाया कि—

  • याचिकाकर्ता के पास पर्याप्त समय था, लेकिन उसने लापरवाही की।
  • पुनर्विचार आवेदन में हलफनामा या सबूत नहीं थे।
  • कोई असाधारण परिस्थिति नहीं थी।

शेख सलीम मामले को अदालत ने अलग बताया क्योंकि वहां केवल एक दिन की देरी थी, जबकि यहां वर्षों तक लापरवाही रही।

अंततः, उच्च न्यायालय ने याचिका को निराधार मानकर खारिज कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला स्पष्ट करता है कि सिविल मामलों में समयसीमा बढ़ाने का प्रावधान केवल असाधारण परिस्थितियों में ही लागू होगा। केवल लापरवाही या उचित सबूत के बिना देर करना अदालत में मान्य नहीं होगा।

वादियों के लिए यह संदेश है कि—

  • लिखित बयान समय पर दाखिल करना बेहद जरूरी है।
  • देरी के लिए ठोस और प्रमाणित कारण होने चाहिए।

न्यायपालिका के लिए यह निर्णय इस बात की पुष्टि करता है कि प्रक्रिया में लचीलापन का दुरुपयोग कर मुकदमे को लटकाने की कोशिश करने वालों को राहत नहीं दी जाएगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या निचली अदालत द्वारा लिखित बयान दाखिल करने से रोकना उचित था?
    ✔ हां, क्योंकि याचिकाकर्ता ने पर्याप्त समय के बावजूद कोई बयान दाखिल नहीं किया और असाधारण परिस्थिति नहीं दिखाई।
  • क्या आदेश 8 नियम 1 CPC अनिवार्य है?
    ✘ नहीं, यह निर्देशात्मक है, लेकिन इसका उल्लंघन केवल असाधारण परिस्थितियों में माफ किया जा सकता है।
  • क्या पुनर्विचार आवेदन स्वीकार होना चाहिए था?
    ✘ नहीं, क्योंकि यह काफी देरी से और बिना सबूत के दाखिल हुआ।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • शेख सलीम हाजी अब्दुल खयूमसाब बनाम कुमार एवं अन्य, (2006) 1 SCC 46

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Salem Advocate Bar Association, Tamil Nadu बनाम Union of India, (2005) 6 SCC 344
  • Kailash बनाम Nanhku एवं अन्य, (2005) 4 SCC 480
  • Rani Kusum बनाम Kanchan Devi, (2005) 6 SCC 705
  • Shaikh Salim Haji Abdul Khayumsab बनाम Kumar एवं अन्य, (2006) 1 SCC 46
  • R.N. Jadi Brothers बनाम Subhash Chandra, (2007) 6 SCC 420
  • Zolba बनाम Keshao एवं अन्य, (2008) 11 SCC 469
  • Md. Yusuf बनाम Faij Md. एवं अन्य, (2009) 3 SCC 513
  • Sambhaji एवं अन्य बनाम Gangabai एवं अन्य, (2008) 17 SCC 117

मामले का शीर्षक
Satyendra Tiwary बनाम Sita Ram Tiwary @ Baij Nath Tiwary एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 15520 of 2010

उद्धरण (Citation)
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न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सुरेश प्रसाद सिंह I, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: (आदेश में नाम उल्लिखित नहीं)

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/4ce96574-0994-49a7-923f-8dfb04ba5862.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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