निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसले में कहा कि टैक्स विभाग को सर्विस टैक्स के मामलों का निपटारा तय समय सीमा में करना अनिवार्य है। मामला एक प्रोप्राइटरशिप फर्म से जुड़ा था, जो मेंटेनेंस और रिपेयर सर्विस देती है।
विवाद की शुरुआत तब हुई जब 5 सितंबर 2018 को केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) विभाग ने फर्म को एक शो कॉज नोटिस (SCN) भेजा। इसमें आरोप था कि फर्म ने ग्राहकों से भुगतान लिया लेकिन सही तरह से सर्विस टैक्स का आकलन और भुगतान नहीं किया। विभाग ने आयकर अधिनियम की धारा 194C के तहत दर्ज भुगतानों के आधार पर कहा कि घोषित सर्विस टैक्स और प्राप्त रकम में अंतर है।
फर्म को नोटिस का जवाब देने और सुनवाई में शामिल होने का मौका दिया गया, जिसमें नवंबर 2023, मार्च 2024 और मई 2024 की तारीखें तय की गईं। लेकिन न तो लिखित जवाब दिया गया और न ही सुनवाई में भाग लिया गया। नतीजतन, 9 जुलाई 2024 को असिस्टेंट कमिश्नर ने 2012–13 और 2013–14 के लिए ₹14,10,900 (शिक्षा उपकर समेत) का सर्विस टैक्स बकाया तय करते हुए आदेश पारित कर दिया।
फर्म ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि यह आदेश वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 73(4B) में निर्धारित समय सीमा से काफी देर से जारी किया गया है। इस प्रावधान के तहत, अगर धोखाधड़ी, तथ्यों को छिपाने जैसे मामलों में विस्तारित 5 साल की सीमा लागू होती है, तब भी नोटिस की तारीख से 1 साल के भीतर आदेश पारित करना “जहाँ संभव हो” आवश्यक है। इस मामले में सितंबर 2018 में नोटिस जारी हुआ, और 1 साल की सीमा सितंबर 2019 में खत्म हो गई थी। आदेश जुलाई 2024 में आया — यानी लगभग साढ़े पाँच साल बाद।
याचिकाकर्ता ने अपने पक्ष में कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें —
- एम/एस कनक ऑटोमोबाइल्स प्रा. लि. बनाम भारत संघ (पटना हाईकोर्ट) — जहाँ इसी तरह देरी से दिए गए आदेश को रद्द किया गया।
- एल.आर. शर्मा एंड कंपनी बनाम भारत संघ (दिल्ली हाईकोर्ट) — जिसमें कहा गया कि विभाग अपनी लापरवाही से हुई देरी को वैध नहीं ठहरा सकता, जब कानून जल्दी निपटारे की मंशा रखता है।
विभाग ने कहा कि फर्म को मौके दिए गए लेकिन उसने उनका लाभ नहीं उठाया। पहले देरी का कारण कोविड-19 बताया, लेकिन अदालत ने कहा कि एक साल की समय सीमा तो महामारी शुरू होने से पहले ही खत्म हो चुकी थी। साथ ही, देरी का कोई ठोस कारण हलफनामे में नहीं दिया गया।
अदालत ने माना कि धारा 73(4B) का उद्देश्य है कि सर्विस टैक्स मामलों का निपटारा तय समय में हो, ताकि न्याय में देरी न हो और प्रशासनिक कार्यक्षमता बनी रहे। देश की अन्य अदालतों ने भी कहा है कि “जहाँ संभव हो” वाली छूट का मतलब अनिश्चितकालीन लंबी देरी नहीं है, बल्कि केवल असाधारण और प्रमाणित कारणों में ही समय बढ़ाया जा सकता है।
चूँकि यहाँ 5 साल से अधिक की देरी हुई और उसका कोई कारण नहीं बताया गया, तथा याचिकाकर्ता के अन्य वर्षों के मामले में पहले ही समान निर्णय दिया जा चुका है, कोर्ट ने 9 जुलाई 2024 का आदेश रद्द कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला दो अहम संदेश देता है —
- करदाताओं के लिए: अगर टैक्स विभाग लंबे समय तक किसी नोटिस पर कार्रवाई नहीं करता और फिर वर्षों बाद आदेश जारी करता है, तो ऐसे आदेश को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
- सरकार और विभाग के लिए: यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि टैक्स मामलों का निपटारा समय पर हो, वरना प्रक्रिया में कमी के कारण राजस्व हानि हो सकती है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या विस्तारित 5 साल की सीमा लागू होने पर भी नोटिस की तारीख से 1 साल के बाद आदेश जारी किया जा सकता है?
निर्णय: नहीं। आदेश रद्द। विभाग यह साबित नहीं कर सका कि एक साल में आदेश पारित करना संभव क्यों नहीं था। - तर्क:
- धारा 73(4B) में समय सीमा का उद्देश्य त्वरित निपटारा है।
- अदालतों ने लगातार कहा है कि बिना कारण वर्षों तक लंबित मामलों को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
- “जहाँ संभव हो” का अर्थ है — असाधारण, प्रमाणित परिस्थितियों में ही समय बढ़ाया जा सकता है।
- 5.5 साल की देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
- पूर्ववर्ती फैसलों ने भी ऐसे आदेश रद्द किए हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- एल.आर. शर्मा एंड कंपनी बनाम भारत संघ, 2024 SCC OnLine Del 9031
- एम/एस कनक ऑटोमोबाइल्स प्रा. लि. बनाम भारत संघ, CWJC No. 18398 of 2023 (पटना हाईकोर्ट)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- सुंदर सिस्टम प्रा. लि. बनाम भारत संघ, 2020 (33) G.S.T.L. 621 (दिल्ली)
- नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कंपनी लि. बनाम भारत संघ, 2019 (20) G.S.T.L. 515 (दिल्ली)
- सिद्धि विनायक सिंटेक्स प्रा. लि. बनाम भारत संघ, 2017 (352) E.L.T. 455 (गुजरात)
मामले का शीर्षक
प्रोप्राइटरशिप फर्म बनाम भारत संघ एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 16772 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति अशोक कुमार पांडेय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री आदित्य प्रकाश, श्री रुद्र प्रताप सिंह, श्री सुधर्शन कुमार, श्री अक्षांश अंकित, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री अंशुमान सिंह, वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
cd5104e9-1fe7-4ce3-9d85-570496cb116a.pdf
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