निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने बिहार मेडिकल सर्विसेज इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BMSICL) को निर्देश दिया है कि वह एक निर्माण कंपनी के खिलाफ जारी डिबारमेंट (ब्लैकलिस्टिंग) आदेश की दोबारा समीक्षा करे। यह आदेश उस स्थिति में दिया गया है जब परियोजना में देरी का कारण विभागीय लापरवाही (साइट का समय पर हस्तांतरण न होना) बताया गया और कार्य भी पूरा हो चुका है।
याचिकाकर्ता एक प्राइवेट निर्माण कंपनी है, जिसे 2018–19 में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, भागलपुर की बाउंड्री वॉल निर्माण का ठेका दिया गया था। इसके लिए BMSICL के साथ समझौता भी हुआ था।
9 जुलाई 2019 को BMSICL ने यह कहते हुए याचिकाकर्ता को भविष्य के सभी ठेकों से प्रतिबंधित कर दिया कि कार्य समय पर पूरा नहीं हुआ।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में अपील की और कहा —
- देरी उनकी वजह से नहीं, बल्कि साइट का समय पर हैंडओवर न होने से हुई।
- इसके बावजूद उन्होंने पूरा काम पूरा कर दिया है।
- 10 अगस्त 2019 की अस्पताल अधीक्षक की चिट्ठी से साफ है कि डिप्टी जनरल मैनेजर (BMSICL) को भूमि का कब्जा देने का निर्देश बाद में दिया गया।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि जब काम पूरा हो चुका है और देरी विभागीय कारणों से हुई, तो डिबारमेंट आदेश का अब कोई औचित्य नहीं है। लेकिन आदेश को औपचारिक रूप से वापस नहीं लेने के कारण वे किसी भी निविदा में भाग नहीं ले पा रहे हैं।
हाई कोर्ट ने कहा —
- अगर याचिकाकर्ता की बात सही है तो यह आदेश प्रभावहीन हो जाएगा।
- हालांकि रिकॉर्ड में यह साबित नहीं हुआ कि इस आदेश के कारण उन्हें टेंडर से रोका गया, लेकिन शिकायत उचित है।
कोर्ट ने सीधे आदेश रद्द नहीं किया, बल्कि याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वे BMSICL के मुख्य प्रबंध निदेशक (CMD) के पास जाकर अपनी शिकायत दर्ज करें। CMD को सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए दो महीने के अंदर निर्णय लेना होगा—या तो आदेश वापस लें या नया आदेश जारी करें।
इस प्रकार, कोर्ट ने मामले को निपटाते हुए प्रशासन को खुद सुधार का मौका दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला इस सिद्धांत को मजबूत करता है कि जब नए तथ्य सामने आते हैं, तो प्रशासनिक सजा जैसे डिबारमेंट की समीक्षा जरूरी है।
ठेकेदारों के लिए संदेश:
- विभागीय देरी (जैसे साइट का देर से हैंडओवर) आपके खिलाफ नहीं गिनी जानी चाहिए।
- काम पूरा हो जाने पर डिबारमेंट आदेश पर पुनर्विचार होना चाहिए।
- न्यायालय जाने से पहले सक्षम प्राधिकारी के पास शिकायत दर्ज कराना जरूरी है।
सरकारी विभागों के लिए संदेश:
- सजा उचित और प्रासंगिक होनी चाहिए।
- परिस्थितियों में बदलाव आने पर पुराने आदेश की समीक्षा जरूरी है।
- अनावश्यक विवादों से बचने के लिए समय पर प्रशासनिक सुधार करना चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या काम पूरा होने और देरी विभाग की वजह से होने पर ठेकेदार को डिबार रखा जा सकता है?
⮕ प्राधिकारी को आदेश की समीक्षा कर निर्णय लेना चाहिए। - क्या हाई कोर्ट सीधे ऐसे आदेश को रद्द कर सकता है?
⮕ कोर्ट ने पहले प्रशासनिक समीक्षा का रास्ता अपनाने को कहा।
मामले का शीर्षक
Rohit Raj Construction Pvt. Ltd. बनाम बिहार मेडिकल सर्विसेज इंफ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3066 of 2020
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मनीष सहाय, अधिवक्ता; श्री अनिल कुमार सिन्हा, अधिवक्ता
राज्य की ओर से: श्री रामाधार सिंह, GP-25; श्री हरेंद्र कुमार, ए.सी. टू GP-25
BMSICL की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता; श्री विकास कुमार, अधिवक्ता; श्री पीयूष कुमार पांडे, अधिवक्ता
निर्णय का लिंक
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