पटना उच्च न्यायालय ने समझाया: मध्यस्थ की नियुक्ति में न्यायालय की सीमाएं क्या हैं?

पटना उच्च न्यायालय ने समझाया: मध्यस्थ की नियुक्ति में न्यायालय की सीमाएं क्या हैं?

निर्णय की सरल व्याख्या

यह मामला बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक प्रकाशन निगम लिमिटेड (सरकारी संस्था) और एक प्रिंटिंग फर्म के बीच अनुबंध से संबंधित है। वर्ष 2015 में कक्षा 1 से 8 तक की पाठ्यपुस्तकों की छपाई और वितरण का कार्य निविदा के माध्यम से दिया गया था। फर्म को तीन करोड़ रुपये के लगभग का कार्यादेश दिया गया था।

दोनों पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ और निगम ने अनुबंध रद्द कर दिया, भुगतान रोक दिया, और फर्म को तीन वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसके खिलाफ फर्म ने पटना हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की।

कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि अनुबंध में मध्यस्थता (Arbitration) का प्रावधान है, और विवाद को एक स्वतंत्र मध्यस्थ (सेवानिवृत्त न्यायाधीश) के पास भेजा जाए। कोर्ट ने उनकी सहमति के आधार पर श्री श्याम किशोर शर्मा (सेवानिवृत्त न्यायाधीश) को मध्यस्थ नियुक्त किया।

बाद में जब श्री शर्मा लोकायुक्त बन गए, तो कोर्ट ने उन्हें हटाकर श्री सी.एम. प्रसाद (सेवानिवृत्त न्यायाधीश) को नया मध्यस्थ नियुक्त किया। दोनों पक्षों ने उनकी नियुक्ति पर सहमति दी और कार्यवाही में भाग भी लिया।

कुछ समय बाद सरकारी संस्था ने अचानक इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई और पटना जिला न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन देकर मध्यस्थ को हटाने की मांग की। जिला न्यायाधीश ने यह मांग खारिज कर दी।

इसके बाद निगम ने फिर से पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि मध्यस्थ की नियुक्ति एक रिट केस के माध्यम से हुई थी, जो कानून के अनुसार नहीं थी और इसलिए पूरी कार्यवाही “coram non judice” यानी अवैध थी।

पटना हाई कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी और स्पष्ट किया:

  • जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से किसी मध्यस्थ को नियुक्त करते हैं, और कार्यवाही में हिस्सा लेते हैं, तो बाद में वे यह नहीं कह सकते कि प्रक्रिया गलत थी।
  • निगम पहले ही मध्यस्थ को हटाने की कोशिश कर चुका है और असफल रहा है, अब फिर से वही मुद्दा उठाना कानूनन उचित नहीं है।
  • एक बार कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता की सहमति होने के बाद, उसे गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय सरकारी विभागों और ठेकेदारों दोनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है — यदि आप मध्यस्थता के लिए सहमत होते हैं और कार्यवाही में भाग लेते हैं, तो बाद में उसे चुनौती देना स्वीकार्य नहीं है।

बिहार जैसे राज्यों में जहाँ सरकारी टेंडरों से जुड़े विवाद आम हैं, यह फैसला बताता है कि अदालतें प्रक्रियाओं का दुरुपयोग रोकेंगी और न्याय में देरी करने वाले हथकंडों को स्वीकार नहीं करेंगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या हाई कोर्ट रिट याचिका में मध्यस्थ नियुक्त कर सकता है?
    ✔ हाँ, अगर दोनों पक्ष सहमत हों।
  • क्या सहमति से नियुक्त मध्यस्थ को बाद में “अवैध” कहा जा सकता है?
    ❌ नहीं, अगर पक्षों ने भाग लिया हो और कोई आपत्ति नहीं की हो।
  • क्या एक बार Section 14 के तहत आवेदन अस्वीकार होने के बाद Section 11(6) में वही मुद्दा उठाया जा सकता है?
    ❌ नहीं, res judicata का सिद्धांत लागू होता है।
  • क्या अदालत की रिट शक्तियों से हुआ निर्णय अवैध होता है?
    ❌ नहीं, अगर वह आपसी सहमति पर आधारित हो।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  1. Chief Engineer, Hydel Projects v. Ravinder Nath, (2008) 2 SCC 350
  2. Kiran Singh v. Chaman Paswan, AIR 1954 SC 340
  3. Kanwar Singh Saini v. High Court of Delhi, (2012) 4 SCC 307
  4. P. Anand Gajpathi Raju v. P.V.G. Raju, (2000) 4 SCC 539
  5. State of Goa v. Praveen Enterprises, (2012) 12 SCC 581
  6. अन्य कई निर्णय भी अदालत में प्रस्तुत किए गए थे

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Branch Manager, Magma Leasing & Finance v. Potluri Madhavilata, (2009) 10 SCC 103
  • P. Anand Gajpathi Raju v. P.V.G. Raju, (2000) 4 SCC 539
  • State of Goa v. Praveen Enterprises, (2012) 12 SCC 581

मामले का शीर्षक

The Bihar State Text Book Publishing Corporation Ltd. v. M/s Patna Offset Press & Ors.

केस नंबर

Request Case No. 58 of 2020

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मृगांक मौली (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्रीमती अनुक्रिति जयपुरीयार, श्री अंशुमान जयपुरीयार
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री नंद किशोर सिंह, श्री जितेन्द्र कुमार

निर्णय का लिंक

https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/f308809d-7015-47e3-bd83-51216739be3d.pdf&search=Debarment

यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।

Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent News