पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिना सूचना और सुनवाई के ब्लैकलिस्टिंग अमान्य

पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बिना सूचना और सुनवाई के ब्लैकलिस्टिंग अमान्य

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड द्वारा एक ठेकेदार को स्थायी रूप से ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया है। यह मामला तब सामने आया जब एक ठेकेदार ने अदालत में याचिका दायर कर कहा कि उसे न तो कारण बताओ नोटिस (शो कॉज नोटिस) मिला और न ही जवाब देने का कोई अवसर दिया गया।

याचिकाकर्ता के अनुसार, निगम ने 6 जनवरी 2020 को उन्हें बिना सूचना के हमेशा के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया। यह निर्णय उन पर भारी पड़ा क्योंकि ब्लैकलिस्ट होने के कारण उन्हें किसी भी नए सरकारी टेंडर में भाग लेने से रोका गया।

अदालत ने पाया कि निगम के पास यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं था कि कारण बताओ नोटिस वास्तव में याचिकाकर्ता को भेजा गया था। इसके अलावा, अदालत ने कहा कि स्थायी ब्लैकलिस्टिंग बहुत कठोर सजा है, जो केवल गंभीर मामलों में दी जा सकती है, वो भी उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सरकार या उसकी एजेंसियों द्वारा किसी को ब्लैकलिस्ट करना एक गंभीर फैसला होता है, जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह न केवल पेशेवर जीवन को प्रभावित करता है बल्कि व्यक्ति को सामाजिक और आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचाता है। इसीलिए, ऐसे किसी भी फैसले से पहले संबंधित व्यक्ति को पूरी तरह से सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।

अंततः, हाईकोर्ट ने ब्लैकलिस्टिंग का आदेश रद्द कर दिया और निगम को निर्देश दिया कि यदि वे फिर से कोई कार्रवाई करना चाहें, तो पहले उचित नोटिस दें और याचिकाकर्ता को जवाब देने का अवसर प्रदान करें। तब तक, याचिकाकर्ता को विभागीय कार्यों में भाग लेने की अनुमति दी गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय बिहार के ठेकेदारों और अन्य निजी एजेंसियों के लिए एक राहत की खबर है जो राज्य सरकार या उसके निकायों के साथ कार्य करते हैं। यह फैसला स्पष्ट करता है कि कोई भी सरकारी संस्था मनमाने ढंग से किसी को ब्लैकलिस्ट नहीं कर सकती, खासकर तब जब इससे व्यक्ति का व्यवसाय और आजीविका खतरे में पड़ जाए।

यह निर्णय प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है। साथ ही, यह सरकारी अधिकारियों को याद दिलाता है कि उन्हें संवैधानिक अधिकारों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना होगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना नोटिस भेजे ब्लैकलिस्टिंग आदेश वैध है?
    ❌ नहीं। अदालत ने कहा कि नोटिस का न मिलना प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या स्थायी ब्लैकलिस्टिंग इस मामले में अनुपातहीन (disproportionate) थी?
    ✅ हाँ। यह सजा परिस्थिति के हिसाब से बहुत कठोर थी।
  • क्या अदालत केवल प्रक्रिया में चूक के आधार पर हस्तक्षेप कर सकती है?
    ✅ हाँ। यदि प्रक्रिया गलत हो और व्यक्ति को नुकसान हो रहा हो, तो अदालत हस्तक्षेप कर सकती है।
  • क्या याचिकाकर्ता को फिर से सुनवाई का अवसर मिलेगा?
    ✅ हाँ। निगम यदि चाहे तो उसे नया नोटिस देकर फिर से कार्रवाई कर सकता है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • State of Orissa v. Balram Sahu, (2009) 2 SCC 652
  • Patel Engineering Ltd. v. Union of India, (2012) 11 SCC 257
  • Gorkha Security Services v. Government (NCT of Delhi), (2014) 9 SCC 105
  • Kulja Industries Ltd. v. BSNL, (2014) 14 SCC 731

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Vetindia Pharmaceuticals Ltd. v. State of Uttar Pradesh, (2021) 1 SCC 804
  • Natwar Singh v. Director of Enforcement, (2004) 13 SCC 255
  • SEBI v. Akshaya Infrastructure (P) Ltd., (2014) 11 SCC 112
  • H.L. Trehan v. Union of India, (1989) 1 SCC 764

मामले का शीर्षक
Prabhat Kumar v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर
CWJC No. 10589 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल तथा माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री ललित किशोर (महाधिवक्ता) और श्री रवीन्द्र कुमार प्रियदर्शी – प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/7babc2ec-2738-464c-96a1-a721f6a7d952.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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