हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सरकारी ठेकों से जुड़े विवादों में, विशेषकर जब ठेकेदार पर विलंब के लिए जुर्माना लगाया जाता है, तो अदालत में याचिका दायर करने से पहले संविदानुसार मध्यस्थता (arbitration) या वैधानिक अधिकरण (tribunal) का सहारा लेना आवश्यक है। यह फैसला सरकारी निर्माण कार्यों से जुड़े विवादों में कानूनी प्रक्रिया के पालन को दोहराता है।
इस मामले में एक ठेकेदार ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर ₹33,63,925 के जुर्माने को चुनौती दी थी, जो कि बिहार रोड कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट (RCD) ने एक सड़क निर्माण परियोजना में विलंब के कारण लगाया था। विभाग ने ठेकेदार का पंजीकरण भी दो वर्षों के लिए निलंबित कर दिया, जिससे वह नए टेंडरों में भाग नहीं ले सका और उसे आर्थिक क्षति हुई।
ठेकेदार का कहना था कि काम में देरी उसकी गलती नहीं थी बल्कि नक्सली खतरे, स्थानीय विरोध और भारी बाढ़ जैसे कारणों से कार्य बाधित हुआ। इसके बावजूद, उसने काम पूरा किया और समय विस्तार (EOT) के लिए विभागीय अधिकारियों के समर्थन के साथ आवेदन किया, जिसे मुख्य अभियंता ने शर्तों के साथ स्वीकृत किया।
फिर भी, विभाग ने जुर्माना लगाया और सुरक्षा राशि और अर्जित धनराशि लौटाने से इनकार कर दिया। ठेकेदार ने यह भी कहा कि उसे एक ही गलती के लिए दो बार सजा दी गई—पहले निलंबन और फिर जुर्माना—जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
पटना हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें तथ्यात्मक विवाद (factual dispute) शामिल हैं। ऐसी स्थितियों में अदालत तथ्यों की गहराई से जांच नहीं कर सकती।
इसके अलावा, चूंकि यह एक सरकारी निर्माण ठेका था जिसमें मध्यस्थता की शर्त शामिल है, और एक वैधानिक ट्रिब्यूनल भी उपलब्ध है, इसलिए याचिकाकर्ता को पहले इन उपायों का सहारा लेना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल असाधारण परिस्थिति में ही सीधे रिट याचिका पर विचार किया जा सकता है।
अतः उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए याचिकाकर्ता को वैधानिक उपाय अपनाने की स्वतंत्रता दी और संबंधित प्राधिकारी को निर्देश दिया कि यदि ऐसा कोई आवेदन दायर किया जाए, तो उसे जल्द से जल्द और विधि अनुसार निपटाया जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन सभी ठेकेदारों और सरकारी विभागों के लिए मार्गदर्शक है जो सार्वजनिक निर्माण परियोजनाओं में कार्यरत हैं। इसके मुख्य प्रभाव इस प्रकार हैं:
- संविदा विवादों में अदालत की शरण लेने से पहले अनुबंध में दिए गए उपायों (जैसे मध्यस्थता) को अपनाना अनिवार्य है।
- ठेकेदारों को चाहिए कि वे कार्य में आई कठिनाइयों (प्राकृतिक आपदा, सुरक्षा संकट आदि) से संबंधित सभी दस्तावेज सुरक्षित रखें।
- सरकारी विभागों को बिना समुचित प्रक्रिया के जुर्माना लगाने से पहले ठेकेदार को पूरा मौका देना चाहिए।
यह फैसला यह भी दर्शाता है कि विभाग द्वारा वैधानिक प्रक्रियाओं की अनदेखी पर न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या अनुच्छेद 226 के तहत पटना हाईकोर्ट इस विवाद की सुनवाई कर सकता है?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि यह विवाद तथ्यात्मक है और इसका समाधान रिट याचिका में नहीं हो सकता। - क्या याचिकाकर्ता के पास कोई वैकल्पिक उपाय उपलब्ध था?
✅ हां। अनुबंध में मध्यस्थता का प्रावधान था और वैधानिक ट्रिब्यूनल भी उपलब्ध है। - क्या समय विस्तार की मंजूरी के बाद जुर्माना और निलंबन दोहरी सजा है?
🟡 अदालत ने इस बिंदु पर टिप्पणी नहीं की और कहा कि इसका निर्णय तथ्य आधारित प्रक्रिया से ही हो सकता है।
मामले का शीर्षक
Ravindra Kumar Singh vs The State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 639 of 2022
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति श्री एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्रीमती उषा कुमारी – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री उदय शंकर शरण सिंह (G.P.19) – प्रतिवादी राज्य की ओर से
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