निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने 17 जनवरी 2022 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए दो याचिकाओं का निपटारा किया, जिनका संबंध एक ही अस्पताल निर्माण टेंडर से था। यह टेंडर बिहार मेडिकल सर्विसेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड (BMSICL) द्वारा 2019 में 191-बेड अस्पताल बनाने के लिए जारी किया गया था।
इस टेंडर में दो कंपनियों ने हिस्सा लिया – एक संयुक्त उपक्रम (Joint Venture) और एक निजी ठेकेदार। तकनीकी रूप से दोनों योग्य पाए गए और वित्तीय बोली में संयुक्त उपक्रम सबसे कम दर वाला (L-1) निकला। परन्तु, अनुबंध देने से पहले एक शिकायत आई जिसमें बताया गया कि संयुक्त उपक्रम की एक कंपनी पहले ही सरकारी कार्यों से वर्जित (debarred) हो चुकी थी।
इस जानकारी के आधार पर BMSICL ने टेंडर को पूरी तरह रद्द कर दिया और नया टेंडर जारी किया। इसके विरुद्ध संयुक्त उपक्रम ने कोर्ट में याचिका दाखिल की और मांग की कि उसे ही अनुबंध दिया जाए क्योंकि वह सबसे कम बोलीदाता था। दूसरी ओर, दूसरे नंबर की कंपनी ने भी याचिका दाखिल की और दावा किया कि अनुबंध अब उसे मिलना चाहिए।
कोर्ट ने पाया कि संयुक्त उपक्रम की दोनों कंपनियों पर पहले वर्जन (debarment) लग चुकी थी, भले ही टेंडर के समय वह लागू नहीं थी। बोलीदाताओं को टेंडर के साथ एक शपथपत्र (affidavit) देना होता है जिसमें पिछले 5 वर्षों में किसी भी वर्जन या अनुबंध के छोड़े जाने की जानकारी देना अनिवार्य होता है। संयुक्त उपक्रम ने यह जानकारी छिपाई थी।
हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बहुत जरूरी है और यह आवश्यक है कि सभी सूचनाएं सही और पूर्ण दी जाएं। भले ही वर्जन की अवधि खत्म हो चुकी हो, फिर भी उसका खुलासा करना जरूरी था। कोर्ट ने यह भी माना कि BMSICL ने सीधे तौर पर संयुक्त उपक्रम को अयोग्य घोषित नहीं किया बल्कि पूरे टेंडर को रद्द कर दिया — यह एक प्रशासनिक निर्णय था जिसमें न्यायिक दखल की जरूरत नहीं।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि दूसरी कंपनी ने खुद नए टेंडर में हिस्सा लिया था, इसलिए वह पुराने टेंडर को चुनौती नहीं दे सकती।
अंततः, दोनों याचिकाएं खारिज कर दी गईं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले का मुख्य संदेश यह है कि सरकारी टेंडरों में पारदर्शिता और सच्चाई सर्वोपरि है। किसी भी वर्जन का खुलासा करना जरूरी है, भले ही वह समाप्त हो चुका हो। यह निर्णय सरकारी एजेंसियों को यह अधिकार देता है कि वे टेंडर प्रक्रिया को जरूरत पड़ने पर रद्द कर सकती हैं, खासकर जब अनुशासन या विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।
ठेकेदारों के लिए यह चेतावनी है कि टेंडर फॉर्म भरते समय कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी छिपाना उन्हें अयोग्य बना सकता है। यह निर्णय उन सभी सरकारी परियोजनाओं के लिए दिशानिर्देश बन सकता है जहां अनुबंधों को लेकर विवाद होते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या वर्जन समाप्त हो जाने के बावजूद उसका खुलासा आवश्यक है?
✔ हां, कोर्ट ने कहा कि पारदर्शिता के लिए सभी पिछली जानकारी देना जरूरी है। - क्या टेंडर रद्द करने के लिए विस्तृत कारण देना अनिवार्य है?
✔ नहीं, यदि यह प्रशासनिक निर्णय है और उसमें कोई दुर्भावना नहीं है। - क्या जो पार्टी नए टेंडर में भाग ले चुकी हो, वह पुराने को चुनौती दे सकती है?
❌ नहीं, यह स्वीकार करने के समान है कि पुराना टेंडर वैध रूप से रद्द किया गया। - क्या न्यायालय टेंडर मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है?
✔ केवल तभी जब प्रक्रिया में स्पष्ट पक्षपात या अनियमितता हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]
- Oryx Fisheries (P) Ltd. v. Union of India, (2010) 13 SCC 427
- Kranti Associates (P) Ltd. v. Masood Ahmed Khan, (2010) 9 SCC 496
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]
- Uflex Ltd. v. Government of Tamil Nadu, (2022) 1 SCC 165
- Jagdish Mandal v. State of Orissa, (2007) 14 SCC 517
- Michigan Rubber (India) Ltd. v. State of Karnataka, (2012) 8 SCC 216
- Caretel Infotech Ltd. v. Hindustan Petroleum Corpn. Ltd., (2019) 14 SCC 81
- Afcons Infrastructure Ltd. v. Nagpur Metro Rail Corpn. Ltd., (2016) 16 SCC 818
मामले का शीर्षक
M/s B. Rai Construction Company and INSCPL (JV) v. State of Bihar & Ors.
साथ में
R.S. Agrawal Infratech Pvt. Ltd. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 8134 of 2021
CWJC No. 12949 of 2021
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
माननीय श्री न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता (CWJC No. 8134/2021) की ओर से:
श्री वाई.वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता), श्री शिवेन्द्र प्रसाद, श्री प्रणव कुमार, सुश्री सृष्टि सिंह, श्री सुमित कुमार झा (अधिवक्ता) - याचिकाकर्ता (CWJC No. 12949/2021) की ओर से:
श्री रंजीत कुमार (अधिवक्ता) - राज्य सरकार की ओर से:
श्री विकास कुमार, सरकारी अधिवक्ता-11 - BMSICL की ओर से:
श्री ललित किशोर (वरिष्ठ अधिवक्ता) - प्रतिवादी संख्या 7 (CWJC No. 8134/2021) की ओर से:
श्री रंजीत कुमार (अधिवक्ता) - प्रतिवादी संख्या 5 (CWJC No. 12949/2021) की ओर से:
श्री वाई.वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता) एवं टीम
निर्णय का लिंक
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