बिना सूचना डिबार करने के आदेश पर ठेकेदार को मिला विभाग में अपील करने का अवसर: पटना हाई कोर्ट

बिना सूचना डिबार करने के आदेश पर ठेकेदार को मिला विभाग में अपील करने का अवसर: पटना हाई कोर्ट

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक ठेकेदार द्वारा दायर की गई याचिका को यह कहते हुए समाप्त कर दिया कि वह पहले संबंधित विभाग को अपनी शिकायत प्रस्तुत करे। यह मामला बिहार सरकार के ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा एक ठेकेदार को बिना किसी पूर्व सूचना के डिबार करने से संबंधित था।

यह मामला सिविल रिट न्यायक्षेत्र मामला संख्या 11259/2022 के रूप में दर्ज था। याचिकाकर्ता एक साझेदारी फर्म (Parmar Enterprises) है, जिसे उसके भागीदार के माध्यम से प्रतिनिधित्व किया गया।

याचिका का मूल विवाद यह था कि 07.07.2021 को विभाग ने ठेकेदार को एकतरफा रूप से डिबार कर दिया। ठेकेदार का आरोप था कि यह आदेश न तो उसे बताया गया और न ही कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर दिया गया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।

याचिकाकर्ता ने दो सरकारी अनुबंधों का उल्लेख किया:

  • अनुबंध संख्या 05 SBD/18-19 दिनांक 24.05.2018, राशि ₹6.52 करोड़
  • अनुबंध संख्या 21 SBD/2017-18 दिनांक 17.11.2017, राशि ₹2.21 करोड़

ठेकेदार का कहना था कि उसने कार्य समय-सीमा के भीतर (जिसे विभाग ने बढ़ा भी दिया था) पूरा कर दिया, फिर भी उसे बिना किसी गलती के डिबार कर दिया गया। उसने हाई कोर्ट से निम्नलिखित राहत मांगी:

  • डिबारमेंट आदेश को रद्द किया जाए
  • भविष्य की निविदाओं में उसे अयोग्य घोषित न किया जाए
  • कोई अन्य उचित राहत दी जाए

15.11.2022 को जब यह मामला मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ के समक्ष आया, तो कोर्ट इस याचिका को सुनने के पक्ष में नहीं था। इस स्थिति को देखते हुए याचिकाकर्ता ने कोर्ट से याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी और साथ ही विभाग के अभियंता-इन-चीफ (प्रतिवादी संख्या 2) को आवेदन देने की छूट मांगी।

कोर्ट ने यह अनुमति दे दी और कुछ दिशा-निर्देश दिए:

  • याचिकाकर्ता को 4 सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारी के समक्ष अपना आवेदन देना होगा।
  • अधिकारी को 3 महीने के भीतर कारणयुक्त और लिखित आदेश देना होगा।
  • सुनवाई का पूरा अवसर दिया जाएगा।
  • दोनों पक्ष अपने आवश्यक दस्तावेज जमा कर सकेंगे।
  • यदि विभागीय उपाय पर्याप्त न हों, तो याचिकाकर्ता फिर से कोर्ट आ सकता है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसने मामले के गुण-दोष (merits) पर कोई राय नहीं दी है और सभी कानूनी प्रश्न खुले रहेंगे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह मामला एक अहम कानूनी सिद्धांत को फिर से स्थापित करता है कि किसी व्यक्ति या संस्था को डिबार या ब्लैकलिस्ट करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए। प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता अनिवार्य है।

ठेकेदारों के लिए यह निर्णय यह सीख देता है कि अगर किसी कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं होता है, तो वे विभाग के समक्ष आवेदन देकर न्याय की मांग कर सकते हैं। हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि पहले विभागीय उपाय अपनाना ज़रूरी है और उसके बाद ही न्यायालय का सहारा लिया जाए।

सरकारी अधिकारियों के लिए यह निर्णय यह संदेश देता है कि बिना नोटिस या सुनवाई के कोई दंडात्मक कार्रवाई न्यायसंगत नहीं मानी जाएगी।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या डिबारमेंट आदेश बिना सूचना और प्राकृतिक न्याय के उल्लंघन में जारी किया गया था?
    • निर्णय नहीं दिया गया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को विभाग के समक्ष आवेदन करने की अनुमति दी।
  • क्या याचिका सीधे दाखिल की जा सकती थी बिना विभागीय उपाय अपनाए?
    • कोर्ट ने पहले विभाग से संपर्क करने की सलाह दी।
  • अंतिम निर्णय:
    • याचिका को वापस लेने की अनुमति दी गई। याचिकाकर्ता को विभाग में आवेदन करने की छूट दी गई और विभाग को समयबद्ध निर्णय देने का निर्देश दिया गया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • D.N. Jeevaraj v. Chief Secretary, Govt. of Karnataka & Ors., (2016) 2 SCC 653
  • Rural Litigation and Entitlement Kendra v. State of U.P., 1989 Supp (1) SCC 504
  • Union of India v. S.B. Vohra, (2004) 2 SCC 150
  • Saraswati Industrial Syndicate Ltd. v. Union of India, (1974) 2 SCC 630

मामले का शीर्षक
Parmar Enterprises बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 11259 of 2022

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री कर्णेश्वर प्रसाद गुप्ता (GP-10) एवं श्री सत्य व्रत (AC to GP-10) – प्रतिवादियों की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/0ab267dc-3ae5-4470-99f3-c49fe446b59f.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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