रेलवे सेठ को दी गई लाइसेंस फीस पर सर्विस टैक्स — पटना हाई कोर्ट ने याचिका खारिज की

रेलवे सेठ को दी गई लाइसेंस फीस पर सर्विस टैक्स — पटना हाई कोर्ट ने याचिका खारिज की

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक केटरिंग कंपनी द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने रेलवे को दी गई लाइसेंस फीस पर लगे सर्विस टैक्स की वैधता को चुनौती दी थी। यह मामला उस समय उठा जब रेलवे से ठेका लेकर ट्रेनों में खाना सप्लाई करने वाली एक फर्म से केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर विभाग (CGST) ने ₹1.38 करोड़ सर्विस टैक्स और बराबर की पेनल्टी की मांग की।

फर्म को रेलवे ने ट्रेनों में कैटरिंग सेवा देने की अनुमति दी थी। इसके बदले में फर्म ने रेलवे को लाइसेंस फीस के रूप में करोड़ों रुपए दिए। टैक्स विभाग ने इस लाइसेंस फीस को ‘सपोर्ट सर्विस’ यानी सहायक सेवा माना और कहा कि यह सर्विस टैक्स के अंतर्गत आता है। विभाग ने 2019 में फर्म को कारण बताओ नोटिस जारी किया और बाद में एक आदेश पारित कर टैक्स वसूली और पेनल्टी तय की।

फर्म ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि:

  • टैक्स विभाग ने कोई पूर्व-परामर्श (pre-show-cause consultation) नहीं किया,
  • विभाग ने कानून के प्रावधानों को सही से नहीं पढ़ा, खासकर चार्जिंग सेक्शन 66B को,
  • टैक्स की मांग तय समय सीमा (limitation) से बाहर है,
  • और रेलवे की ओर से दी गई सुविधा को ‘सपोर्ट सर्विस’ नहीं माना जा सकता।

लेकिन कोर्ट ने इन सभी तर्कों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि:

  • याचिकाकर्ता ने टैक्स विभाग की कार्यवाही में हिस्सा लिया था और इसलिए अब ये आपत्तियां उठाना सही नहीं,
  • सभी तर्कों को तथ्यों और अनुबंध की भाषा के आधार पर देखा जाना चाहिए, जो अपीलीय प्राधिकरण कर सकता है,
  • और यह मामला अपील का है, ना कि सीधे हाई कोर्ट के दखल का।

हालांकि, कोर्ट ने फर्म को आठ हफ्तों के अंदर अपील करने की छूट दी और कहा कि अपीलीय प्राधिकरण समय सीमा की बाध्यता को नजरअंदाज कर याचिका पर विचार करे।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय खास तौर पर उन व्यवसायियों के लिए महत्वपूर्ण है जो सरकारी संस्थाओं से लाइसेंस लेकर सेवाएं देते हैं, जैसे रेलवे, नगर निगम आदि। कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि अगर सरकार या उसकी किसी इकाई द्वारा दी गई सुविधा ‘सपोर्ट सर्विस’ की श्रेणी में आती है, तो उस पर सर्विस टैक्स (या जीएसटी) लग सकता है, चाहे वह सरकारी संस्था हो।

इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि टैक्स से जुड़ी किसी भी कार्यवाही में अगर वैकल्पिक अपीलीय मंच उपलब्ध है, तो हाई कोर्ट सीधे हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि कोई गंभीर संवैधानिक प्रश्न ना हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या रेलवे को दी गई लाइसेंस फीस “सपोर्ट सर्विस” मानी जा सकती है?
    ✔ हां। रेलवे द्वारा कैटरिंग फर्म को दी गई सुविधाएं—जैसे पैंट्री कार, किचन, प्रचार-अधिकार—कोट के अनुसार सपोर्ट सर्विस की परिभाषा में आती हैं।
  • क्या टैक्स की मांग समय सीमा से बाहर थी?
    ✘ नहीं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जानबूझकर टैक्स नहीं भरा और तथ्यों को छुपाया, इसलिए पाँच साल की बढ़ी हुई सीमा (extended limitation) लागू होती है।
  • क्या बिना pre-show-cause consultation के जारी नोटिस अवैध है?
    ✘ नहीं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने नोटिस का जवाब दिया और सुनवाई में भाग लिया, इसलिए यह आपत्ति अब मान्य नहीं।
  • क्या याचिका पर कोर्ट को सीधे सुनवाई करनी चाहिए थी?
    ✘ नहीं। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को पहले अपीलीय प्राधिकरण में जाना चाहिए था, क्योंकि मामला कानूनी व्याख्या और तथ्यों की जांच से जुड़ा है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय [यदि कोई हो]

  • Amadeus India Pvt. Ltd. v. Principal Commissioner, Central Excise — 2019 SCC OnLine Del 8437
  • Cosmic Dye Chemical v. Collector of Central Excise, Bombay — (1995) 6 SCC 117
  • CCE v. Karnataka Agro Chemicals — (2008) 7 SCC 343
  • CCE v. Northern Operating Systems Pvt. Ltd. — (2022) 17 SCC 90

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय [यदि कोई हो]

  • State of Maharashtra v. Greatship (India) Ltd. — C.A. No. 4956 of 2022
  • M/s Kelkar & Kelkar v. M/s Hotel Pride Exec. Pvt. Ltd. — C.A. No. 3479 of 2022
  • Godrej Sara Lee Ltd. v. Excise and Taxation Officer — 2023 SCC OnLine SC 95
  • CWJC No. 10644 of 2024 — Ramnath Prasad v. Principal Commissioner, CGST and Central Excise

मामले का शीर्षक
M/s Singh Caterers and Vendors बनाम निदेशालय जीएसटी इंटेलिजेंस व अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3390 of 2023

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री गौतम केजरीवाल, श्री मोहित अग्रवाल, श्री लोकेश कुमार, श्री आकाश कुमार
  • प्रतिवादी की ओर से: श्री के.एन. सिंह (असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल), श्री अंशुमान सिंह (वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST & CX), श्री शिवादित्य शाही सिन्हा

निर्णय का लिंक
6c7b20bc-af77-49b2-aea1-3d197307a494.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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