निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक ठेकेदारी विवाद में साफ कहा कि जब किसी ठेकेदार को विभाग ने बिना नोटिस दिए “डीबार” (ठेके से अयोग्य) किया हो, और वह आदेश उसे समय पर सही तरीके से नहीं भेजा गया हो, तो उस आदेश को छुपाने के आधार पर उसका टेंडर रद्द नहीं किया जा सकता।
यह मामला बिहार के गया जिले में 35.1 किलोमीटर लंबी सड़क को मजबूत करने के एक सरकारी ठेके से जुड़ा था। कई ठेकेदारों ने इस टेंडर में हिस्सा लिया, जिसमें से एक ने कोर्ट में याचिका दायर कर यह आरोप लगाया कि विजेता ठेकेदार (उत्तरदाता संख्या 4) ने अपने ऊपर लगी डीबारमेंट की जानकारी टेंडर में नहीं दी, जो कि नियमों के अनुसार आवश्यक था।
कोर्ट ने पाया कि यह डीबारमेंट 20.10.2018 को भवन निर्माण विभाग के एक कार्यपालक अभियंता द्वारा जारी किया गया था। लेकिन यह आदेश ठेकेदार को कभी विधिवत रूप से भेजा ही नहीं गया और ना ही डीबारमेंट से पहले कोई नोटिस दिया गया था, जो कानूनन आवश्यक है। बाद में यह डीबारमेंट मार्च 2020 में विभाग की वेबसाइट पर अपलोड किया गया, लेकिन तब तक टेंडर प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी।
जैसे ही उत्तरदाता संख्या 4 को इस डीबारमेंट के बारे में जानकारी मिली, उन्होंने तुरंत आवेदन देकर इसे रद्द करने की मांग की, और 23.03.2020 को यह आदेश वापस भी ले लिया गया। इन तथ्यों को देखते हुए, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) की टेंडर समिति ने निष्कर्ष निकाला कि ठेकेदार ने कोई जानबूझकर धोखा नहीं किया और उसका टेंडर स्वीकार किया गया।
इसके विपरीत, याचिकाकर्ता (शिकायत करने वाला ठेकेदार) ने कोर्ट में कई गलत और भ्रामक बातें रखीं, जैसे कि उसने समय पर टेंडर जमा किया और लॉकडाउन के कारण लॉटरी में शामिल नहीं हो पाया, जबकि रिकॉर्ड में यह स्पष्ट था कि उसका प्रतिनिधि वहां मौजूद था। इन झूठी बातों के कारण हाईकोर्ट ने उसकी याचिका को बिना मुख्य मुद्दे पर निर्णय दिए ही खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस निर्णय से दो मुख्य बातें सामने आती हैं:
- साफ नीयत ज़रूरी है: यदि कोई व्यक्ति कोर्ट से राहत चाहता है, तो उसे सच्चाई के साथ पेश आना चाहिए। झूठ बोलने या तथ्य छुपाने से याचिका खारिज हो सकती है।
- टेंडर प्रक्रिया में न्यायिक हस्तक्षेप सीमित है: कोर्ट केवल तभी दखल देगा जब टेंडर समिति का निर्णय पूरी तरह अनुचित या नियमों के खिलाफ हो। प्रक्रिया में छोटे-मोटे तकनीकी दोषों के कारण ठेके को रद्द नहीं किया जा सकता।
यह फैसला सरकारी अधिकारियों के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बताता है कि किसी भी ठेकेदार को डीबार या ब्लैकलिस्ट करने से पहले उचित प्रक्रिया (जैसे- कारण बताओ नोटिस) अपनाना अनिवार्य है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या डीबारमेंट की जानकारी छुपाने से ठेकेदार अयोग्य हो जाता है?
- न्यायालय का मत: नहीं, क्योंकि डीबारमेंट बिना नोटिस के किया गया और उचित तरीके से सूचित नहीं किया गया था।
- क्या याचिकाकर्ता ने कोर्ट को गुमराह किया और क्या उसे राहत मिलनी चाहिए थी?
- न्यायालय का मत: नहीं, याचिकाकर्ता ने जानबूझकर गलत बातें कही और कोर्ट को गुमराह किया, इसलिए याचिका खारिज की गई।
- क्या टेंडर समिति ने विवेकपूर्ण निर्णय लिया?
- न्यायालय का मत: हां, समिति ने सभी तथ्य ध्यान में रखकर ठेकेदार को अनुबंध दिया और कोर्ट को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता नहीं लगी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Dalip Singh vs. State of Uttar Pradesh, (2010) 2 SCC 114
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Amar Singh vs. Union of India, (2011) 7 SCC 69
- Kulja Industries Ltd. vs. Chief General Manager, BSNL, (2014) 14 SCC 731
- Eurasian Equipment & Chemicals Ltd. vs. State of West Bengal, (1975) 1 SCC 70
- Mahabir Auto Stores vs. Indian Oil Corporation, (1990) 3 SCC 752
- Municipal Corporation Ujjain vs. BVG India Ltd., (2018) 5 SCC 462
मामले का शीर्षक
M/s Indian Electrical Services बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
C.W.J.C. No. 7073 of 2020
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री पी. के. शाही, वरिष्ठ अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री आलोक रंजन, अधिवक्ता (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री अब्बास हैदर, स्थायी अधिवक्ता-6 (राज्य सरकार की ओर से)
- श्री नदीम सिराज, अधिवक्ता (पुल निर्माण निगम की ओर से)
- श्री वाई. वी. गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता (उत्तरदाता संख्या 4 की ओर से)
- श्री शंभू नाथ, अधिवक्ता (उत्तरदाता संख्या 4 की ओर से)
निर्णय का लिंक
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