निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक ठेकेदार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लिमिटेड (BSEIDC) द्वारा 10 वर्षों के लिए की गई ब्लैकलिस्टिंग को चुनौती दी थी। यह ब्लैकलिस्टिंग इसलिए की गई क्योंकि ठेकेदार ने सरकारी टेंडर में भाग लेने के दौरान एक फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था।
याचिकाकर्ता ने सरकारी निर्माण कार्य हेतु टेंडर डाला था और उसके साथ अनुभव प्रमाण पत्र भी संलग्न किया था। विभाग ने जांच के बाद पाया कि वह प्रमाण पत्र फर्जी था। इसके बाद ठेकेदार को कारण बताओ नोटिस (शो-कॉज़ नोटिस) भेजा गया, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया।
इस कारण, BSEIDC ने उसका टेंडर रद्द कर दिया और 10 साल के लिए उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया। इसके बाद ठेकेदार ने पटना हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की और आदेश को रद्द करने की मांग की।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने स्वीकार किया कि कारण बताओ नोटिस का कोई जवाब नहीं दिया गया था और प्रमाण पत्र फर्जी था। कोर्ट ने माना कि जब इतनी गंभीर बात पर कोई जवाब नहीं दिया गया हो, तो इसे स्वीकारोक्ति माना जा सकता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि:
- जब फर्जीवाड़ा स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुका हो,
- जब व्यक्ति विभागीय प्रक्रिया में हिस्सा ही न ले,
- और जब वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो (जैसे अपील),
तो कोर्ट अपने विशेष अधिकार क्षेत्र (writ jurisdiction) का प्रयोग नहीं कर सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय एक कड़ा संदेश है उन सभी ठेकेदारों और आपूर्तिकर्ताओं को जो सरकारी प्रक्रियाओं में धोखाधड़ी करते हैं। यह फैसले कुछ महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट करता है:
- फर्जी दस्तावेज देना एक गंभीर अपराध है।
- कारण बताओ नोटिस का जवाब न देना कानूनी रूप से नुकसानदेह हो सकता है।
- कोर्ट तभी हस्तक्षेप करेगा जब प्रक्रिया में कोई कानूनी त्रुटि या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ हो।
- ब्लैकलिस्टिंग जैसे निर्णय को चुनौती देने के लिए पहले वैधानिक उपायों (जैसे अपील) का प्रयोग करना चाहिए।
सरकारी विभागों के लिए यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि वे फर्जीवाड़ा रोकने के लिए सक्षम हैं। ठेकेदारों और निजी संस्थाओं के लिए यह चेतावनी है कि दस्तावेज़ों में गड़बड़ी का सीधा परिणाम कड़ी सज़ा हो सकता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या ब्लैकलिस्टिंग आदेश बिना उचित प्रक्रिया के किया गया था?
❌ नहीं। कारण बताओ नोटिस भेजा गया था, जिसका जवाब नहीं दिया गया। - क्या हाई कोर्ट को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए था?
❌ नहीं। जब विभाग का निर्णय कानून और प्रक्रिया के अनुसार हो और अपील का रास्ता उपलब्ध हो, तो कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करता। - क्या कारण बताओ नोटिस का जवाब न देना महत्वपूर्ण है?
✅ हां। कोर्ट ने इसे गलती को स्वीकार करने के समान माना। - क्या वैकल्पिक उपाय उपलब्ध था?
✅ हां। याचिकाकर्ता अपील दायर कर सकता था।
मामले का शीर्षक
Chitranjan Kumar Sharma v. The State of Bihar & Others
केस नंबर
CWJC No. 3370 of 2024
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति हरीश कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री संजय कुमार, श्री संजीव कुमार, श्री जय प्रकाश सिंह
- राज्य की ओर से: श्रीमती बिनिता सिंह (SC-28)
- BSEIDC की ओर से: श्री गिरिजीश कुमार
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