निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने 17 दिसंबर 2019 को एक अहम फैसला सुनाया जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि जब किसी कानून में अपील का स्पष्ट प्रावधान हो, तब सीधे हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल करना उचित नहीं है।
यह मामला एक महिला याचिकाकर्ता से जुड़ा है, जिनका मकान पुलिस द्वारा वर्ष 2016 में छापा मारकर सील कर दिया गया था। आरोप था कि उनके घर से 6 लीटर देशी शराब बरामद हुई। इसके आधार पर आईपीसी की धारा 272 और 273 तथा बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 की धारा 47 के तहत मामला दर्ज हुआ। इसके बाद ज़िलाधिकारी, जमुई ने संपत्ति को ज़ब्त करने का आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में यह मांग करते हुए रिट याचिका दायर की कि उनका घर अनसील किया जाए और ज़ब्ती आदेश को रद्द किया जाए। लेकिन हाईकोर्ट ने यह पाया कि निषेध अधिनियम की धारा 92(2) के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अपील का प्रावधान है — ज़ब्ती आदेश के खिलाफ 90 दिनों के भीतर उत्पाद आयुक्त (Excise Commissioner) के समक्ष अपील की जा सकती है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान की धारा 226 के तहत रिट याचिका केवल तभी स्वीकार की जाती है जब — (i) मूल अधिकारों का उल्लंघन हो, (ii) प्राकृतिक न्याय का हनन हो, (iii) स्पष्ट अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश पारित किया गया हो, या (iv) किसी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई हो।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Whirlpool Corporation बनाम Registrar of Trade Marks [(1998) 8 SCC 1] मामले का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास अपील का वैकल्पिक प्रभावी उपाय मौजूद था और उन्होंने इन विशेष परिस्थितियों में से कोई भी नहीं दर्शाया। अतः हाईकोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चार सप्ताह के भीतर अपील दाखिल करने की छूट दी और कहा कि अपील दायर करने में हुई देरी पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाए क्योंकि यह याचिका पहले से हाईकोर्ट में लंबित थी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक अपील पर निर्णय न हो जाए, जब्त वाहन की नीलामी न की जाए।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि जब किसी अधिनियम में स्पष्ट अपील प्रक्रिया दी गई हो, तब सीधे हाईकोर्ट जाना गलत है। इससे न्यायपालिका के काम का संतुलन बना रहता है और निचले स्तर पर उपलब्ध समाधान का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित होता है।
बिहार में निषेध कानून के तहत चल रहे मामलों के संदर्भ में यह फैसला महत्वपूर्ण है। यह उन लोगों के लिए भी मार्गदर्शक है जिनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली गई है — उन्हें पहले उत्पाद आयुक्त के समक्ष अपील करनी चाहिए।
यह फैसला सरकारी अधिकारियों के लिए भी यह पुष्टि करता है कि ज़िलाधिकारी को निषेध कानून के अंतर्गत ज़ब्ती आदेश पारित करने का अधिकार है, बशर्ते वे कानून के प्रावधानों का पालन करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या रिट याचिका दायर की जा सकती है जब वैकल्पिक अपील उपाय उपलब्ध हो?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं, जब तक कोई अपवाद न हो।
- कारण: निषेध अधिनियम की धारा 92(2) स्पष्ट रूप से अपील का प्रावधान देती है। Whirlpool Corporation केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत स्थापित किया है।
- क्या ज़िलाधिकारी का ज़ब्ती आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर था?
- कोर्ट का निर्णय: नहीं।
- कारण: आदेश अधिनियम की धारा 58(2) के अंतर्गत पारित किया गया था।
- क्या याचिकाकर्ता को अपील दाखिल करने की अनुमति मिल सकती है, भले ही समय सीमा समाप्त हो गई हो?
- कोर्ट का निर्देश: हाँ।
- कारण: याचिका पहले से कोर्ट में लंबित थी, अतः देरी को क्षमा किया जाए।
- क्या जब्त वाहन की नीलामी अपील लंबित रहते हो सकती है?
- कोर्ट का निर्देश: नहीं।
- कारण: अपील लंबित रहते संपत्ति की बिक्री नहीं की जा सकती, ताकि निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित हो।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Whirlpool Corporation बनाम Registrar of Trade Marks, (1998) 8 SCC 1
मामले का शीर्षक
Popali Devi बनाम राज्य बिहार एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 17645 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 83
न्यायमूर्ति गण का नाम
- माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
- माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री सत्य प्रकाश परासर, अधिवक्ता
- प्रत्युत्तर पक्ष की ओर से: श्री विवेक प्रसाद (राज्य सरकार के अधिवक्ता GP-7)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTc2NDUjMjAxOSMxI04=-4zjgcAxHCHY=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।