निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में रोहतास जिला प्रशासन को फटकार लगाई है। यह मामला एक नागरिक द्वारा आत्म-सुरक्षा के लिए हथियार (गन) का लाइसेंस प्राप्त करने की 19 वर्षों की लंबी कोशिश से जुड़ा था। याचिकाकर्ता ने 2001 में हथियार लाइसेंस के लिए आवेदन किया था और पुलिस की रिपोर्ट भी अनुकूल थी। बावजूद इसके, जिला प्रशासन ने 2006 में उनका आवेदन यह कहकर खारिज कर दिया कि उन्होंने खतरे की कोई ठोस जानकारी नहीं दी।
जब याचिकाकर्ता ने इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील की, तो 2015 में पटना हाई कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए कि उनका मामला दो महीने में निपटाया जाए। लेकिन जिला प्रशासन ने तीन साल तक कोई निर्णय नहीं लिया। 2018 में अचानक उनका आवेदन फिर खारिज कर दिया गया — इस बार नए कानून (Arms Rules, 2016) के तहत ट्रेनिंग सर्टिफिकेट न देने के आधार पर।
हाई कोर्ट ने देखा कि 2016 में बने नियमों के तहत केंद्र सरकार को पहले ट्रेनिंग प्रक्रिया की तारीख और तरीके तय करने थे, जो अब तक नहीं हुए थे। साथ ही केंद्र सरकार ने बिहार सरकार को स्पष्ट निर्देश दिया था कि जब तक नियमों की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक राज्य पुलिस या सशस्त्र बलों के माध्यम से अस्थाई ट्रेनिंग की व्यवस्था की जा सकती है। लेकिन बिहार सरकार और जिला प्रशासन ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
कोर्ट ने माना कि जब कोई ट्रेनिंग प्रक्रिया मौजूद ही नहीं थी, तो याचिकाकर्ता से ट्रेनिंग सर्टिफिकेट मांगना अन्यायपूर्ण था। साथ ही, कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को केवल चार दिन पहले सूचना दी गई थी कि उन्हें सर्टिफिकेट देना है — जो व्यावहारिक रूप से असंभव था।
न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह ने अपने फैसले में कहा कि इस प्रकार का व्यवहार “कानून के राज” की अवहेलना है और इससे जनता का भरोसा सिस्टम से उठ सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन हजारों नागरिकों के लिए मिसाल है जो सरकारी कार्यालयों में लापरवाही और अनदेखी का शिकार होते हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि:
- नियमों का पालन तभी संभव है जब सरकार स्वयं उसकी व्यवस्था करे।
- नागरिकों को उन नियमों के तहत दंडित नहीं किया जा सकता जो या तो अधूरे हैं या लागू ही नहीं हुए।
- सरकारी अधिकारी कोर्ट के आदेशों की अनदेखी नहीं कर सकते, अन्यथा व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी माने जाएंगे।
यह फैसला न केवल व्यक्तिगत न्याय का उदाहरण है, बल्कि पूरे राज्य के प्रशासनिक सिस्टम को चेतावनी भी है कि वे जनता के अधिकारों को नज़रअंदाज़ न करें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या 2016 के नए नियम के तहत ट्रेनिंग सर्टिफिकेट न देने पर आवेदन रद्द किया जा सकता है?
- नहीं। क्योंकि केंद्र सरकार ने अभी तक ट्रेनिंग की प्रक्रिया या तारीख घोषित नहीं की है, और न ही बिहार सरकार ने ट्रेनिंग की व्यवस्था की है।
- क्या जिला पदाधिकारी ने हाई कोर्ट के 2015 के आदेश की अवहेलना की?
- हां। कोर्ट ने दो महीने में निर्णय देने का आदेश दिया था, जो तीन साल तक लंबित रहा।
- क्या पुराने आवेदनकर्ताओं पर नया कानून तत्काल लागू किया जा सकता है?
- नहीं। कोर्ट ने माना कि यह अव्यावहारिक और अन्यायपूर्ण है।
- कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?
- याचिकाकर्ता को ट्रेनिंग और सर्टिफिकेट प्राप्त करने का पूरा मौका दिया जाए।
- बिहार सरकार को केंद्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार ट्रेनिंग प्रक्रिया तुरंत शुरू करनी होगी।
- जिला पदाधिकारी को ₹10,000 की क्षतिपूर्ति याचिकाकर्ता को देनी होगी।
- संबंधित अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई पर विचार हो।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- कोई विशेष निर्णय उद्धृत नहीं किया गया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- पटना हाई कोर्ट का अपना पूर्व आदेश — CWJC No. 14628 of 2013 दिनांक 28.09.2015
- केंद्र सरकार द्वारा जारी स्पष्टीकरण पत्र दिनांक 07.07.2017 (Arms Rules, 2016 के संदर्भ में)
मामले का शीर्षक
Rameshwar Nath Mishra v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 22187 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 23
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री निखिल कुमार अग्रवाल, सुश्री अदिति हंसरिया
- राज्य की ओर से: श्री शिव शंकर प्रसाद (SC8), श्री अनिल कुमार (AC to SC8)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/vieworder/MTUjMjIxODcjMjAxOSM0I04=-alYJYTAyVmM=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।