निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक पुराने आपराधिक मामले में आरोपी की सजा को संशोधित करते हुए केवल पहले से बिताई गई जेल की अवधि को ही सजा माना और ₹1,000 का जुर्माना लगाया। यह मामला वर्ष 1989 का है, जब एक 8 साल की बच्ची के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था।
मूल रूप से आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376/511 (बलात्कार का प्रयास) के तहत मामला चला था, लेकिन ट्रायल कोर्ट (द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश, मुंगेर) ने उसे IPC की धारा 354 (शारीरिक छेड़छाड़) के तहत दोषी ठहराया और एक वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
यह घटना 14 नवम्बर 1989 को सुबह 10 बजे की थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने बच्ची को बाजार स्थित एक चाय की दुकान से सब्जी के पत्ते चुनवाने के बहाने अपने साथ ले जाकर गलत इरादा दिखाया। लेकिन मामला मुख्य रूप से पीड़िता के बयान पर आधारित था, जो उस समय केवल 8 वर्ष की थी और घटना के कई विवरण उसे याद नहीं थे।
हाई कोर्ट ने कुछ अहम बिंदुओं पर विचार किया:
- पीड़िता घटना की पूरी जानकारी ठीक से नहीं बता पाई।
- बाकी सभी गवाह केवल सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे।
- बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आरोपी और पीड़िता के नाना के बीच रेलवे की घास काटने के ठेके को लेकर प्रतिस्पर्धा थी और इसी कारण झूठा फंसाया गया।
हाई कोर्ट ने माना कि:
- आरोपी 3 महीने 6 दिन जेल में पहले ही रह चुका है।
- वर्ष 1993 में उसकी उम्र लगभग 60 साल थी और 2009 में जब यह अपील सुनी गई तब उसकी उम्र 75 वर्ष के पार थी।
- इतने लंबे समय और उम्र को देखते हुए अब उसे और जेल भेजना न्यायोचित नहीं होगा।
इसलिए कोर्ट ने सजा में संशोधन करते हुए जेल में बिताई गई अवधि को ही अंतिम सजा माना और ₹1,000 का जुर्माना लगाया, जो पीड़िता को दिया जाएगा। जुर्माना न भरने की स्थिति में दो महीने की अतिरिक्त कारावास दी जाएगी।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला दिखाता है कि न्यायालय पुराने मामलों में सजा तय करते समय मानवीय पक्ष को भी महत्व देता है, खासकर जब दोष सिद्ध हो चुका हो लेकिन काफी समय बीत चुका हो और आरोपी वृद्ध हो चुका हो।
हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि बच्चों के साथ अपराधों को गंभीरता से लिया जाता है और दोष सिद्ध होने पर उसे रद्द नहीं किया जाता, लेकिन सजा का स्वरूप परिस्थितियों के आधार पर बदला जा सकता है।
यह निर्णय आम जनता के लिए यह संदेश है कि ऐसे मामलों में न्याय होगा, लेकिन न्याय में दया, उम्र, और समय जैसे कारकों का भी समुचित स्थान है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या धारा 354 IPC के तहत दोष सिद्ध सही था?
✔️ हाँ, सबूतों के आधार पर दोष सिद्ध को बरकरार रखा गया। - क्या इतने वर्षों बाद और उम्रदराज होने के बावजूद दोबारा जेल भेजा जाना चाहिए?
❌ नहीं, कोर्ट ने इसे अनुचित माना और सजा को सीमित किया। - क्या आरोपी को पूरी तरह बरी किया जा सकता था?
❌ नहीं, कोर्ट ने दोष सिद्ध में कोई त्रुटि नहीं पाई। - अंतिम निर्णय:
- सजा को पहले बिताए गए जेल समय तक सीमित किया गया। ₹1,000 का जुर्माना लगाया गया।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
❌ कोई उल्लेख नहीं
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
❌ कोई उल्लेख नहीं
मामले का शीर्षक
लटन यादव बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (S.J.) No. 350 of 1993
(Sessions Trial No. 394 of 1990)
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 84
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति सीमा अली खान
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- अपीलकर्ता की ओर से: श्री एस. एन. प्रसाद, न्यायालय द्वारा नियुक्त वकील
- राज्य की ओर से: श्री आर. एन. झा, एपीपी
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MjQjMzUwIzE5OTMjMSNP-kvoduHEZuEg=
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