निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में यह स्पष्ट किया कि अगर कोई व्यक्ति पहले अपनी याचिका बिना शर्त वापस ले लेता है, तो भी वह दोबारा कोर्ट आ सकता है, खासकर जब मामला मजदूरी और जीविका से जुड़ा हो।
यह मामला दो दैनिक मज़दूरी करने वालों का था जिन्होंने बिहार सरकार के विधि विभाग में कुछ समय तक काम किया था। बाद में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। उन्होंने 2006 में पटना हाई कोर्ट में मजदूरी की मांग को लेकर याचिका दायर की थी, लेकिन 2012 में वह याचिका बिना किसी अनुमति के वापस ले ली गई।
2019 में उन्होंने फिर से मजदूरी की मांग को लेकर नई याचिका दायर की। राज्य सरकार ने कहा कि चूंकि पहले की याचिका बिना शर्त वापस ले ली गई थी, इसलिए वही मांग लेकर दोबारा कोर्ट आना कानूनन गलत है। इसके लिए सरकार ने महंथ रामकिंकर दास बनाम बिहार राज्य (2017) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बिना शर्त वापस ली गई याचिका के बाद दूसरी याचिका नहीं की जा सकती।
लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि हर मामले के तथ्य अलग होते हैं और यदि न्यायहित में आवश्यक हो, तो दूसरी याचिका की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले याचिका शायद इसीलिए वापस ली गई हो क्योंकि दस्तावेज़ अधूरे थे या अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि मजदूरी मिल जाएगी।
कोर्ट ने माना कि पहले याचिका भले ही वापस ले ली गई हो, लेकिन सरकार ने 2014 तक खुद मामले पर विचार किया और जून 2019 तक याचिकाकर्ताओं से प्रतिनिधित्व भी मंगवाया। इसका मतलब यह था कि मामला खत्म नहीं हुआ था।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी से काम लेकर मजदूरी न देना पूरी तरह अनुचित है, चाहे वह अस्थायी कर्मचारी ही क्यों न हो। केवल तकनीकी कारणों से किसी की जीविका का अधिकार खत्म नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा – “कानून अच्छा है, लेकिन न्याय उससे बेहतर।”
इसलिए कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता 4 सप्ताह के भीतर संबंधित विभाग को आवेदन दें, और सरकार 8 सप्ताह के भीतर इस पर विचार कर निर्णय ले।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला गरीब और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों के लिए एक बड़ी राहत है। इससे यह संदेश जाता है कि:
- यदि किसी ने पहले याचिका वापस ले ली हो, तो भी न्याय के लिए दोबारा कोशिश की जा सकती है, खासकर जब मामला मजदूरी और जीविका से जुड़ा हो।
- सरकार यदि खुद मामले पर विचार करती रही हो, तो उसे केवल तकनीकी आधार पर मजदूरी देने से इनकार करने का अधिकार नहीं है।
- किसी से काम लेकर उसे मजदूरी न देना गैरकानूनी है – भले ही वह स्थायी हो या अस्थायी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिना अनुमति के पहले याचिका वापस लेने के बाद नई याचिका दायर की जा सकती है?
✔ हाँ, यदि मामला न्यायहित में हो और विशेष परिस्थितियाँ हों। - क्या याचिकाकर्ताओं ने मजदूरी का अधिकार छोड़ा था?
❌ नहीं। राज्य सरकार ने भी बाद में इस पर विचार किया, जिससे मामला जीवित बना रहा। - क्या सरकार मजदूरी देने से केवल तकनीकी आधार पर इनकार कर सकती है?
❌ नहीं। काम कराने के बाद मजदूरी देना अनिवार्य है। - कोर्ट ने क्या निर्देश दिया?
✔ याचिकाकर्ता 4 सप्ताह में आवेदन करें, और सरकार 8 सप्ताह में उस पर निर्णय लेकर सूचित करे।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Ahmedabad Mfg. Co. v. Workmen, (1981) 2 SCC 663
- V.D. Barot v. State of Gujarat, (2002) 10 SCC 668
- Sarguja Transport Service v. STAT, (1987) 1 SCC 5
- Sarva Shramik Sanghatana v. State of Maharashtra, (2008) 1 SCC 494
- Daryao v. State of U.P., AIR 1961 SC 1457
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- महंथ रामकिंकर दास बनाम बिहार राज्य, (2017) 1 PLJR 909
- रीता मिश्रा बनाम प्रारंभिक शिक्षा निदेशक, बिहार, (1987) PLJR 1090
- किशोरी सिंह बनाम बिहार राज्य, AIR 1985 Patna 298
मामले का शीर्षक
Arun Kumar Singh & Anr. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
CWJC No. 14797 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(1)PLJR 98
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशुतोष कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अमीश कुमार एवं श्री प्रभाकर ठाकुर – याचिकाकर्ताओं की ओर से
श्री मनीष कुमार (G.P.-4) – राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTQ3OTcjMjAxOSMxI04=-9iVfNswMqKE=
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